और हां एक बात और जब मैंने शशि थरूर का वो पोस्ट देखा जिसमें उन्होंने ट्रम्प मामदानी मीटिंग का जिक्र किया। सीधा बोलूँ तो पहली प्रतिक्रिया यही थी, अरे भाई ये पॉलिटिक्स का गेम काफी कॉम्प्लेक्स है। और फिर देखा BJP ने तुरंत थंब्स अप दिया। अब यहाँ मेरा नजरिया ये है कि पॉलिटिक्स और मीडिया का डांस कभी कभी इतना मिक्स हो जाता है कि आम आदमी कन्फ्यूज हो जाता है। सीधी बात कहूँ तो ये थंब्स अप एक तरह का सिग्नल भी है, हम एलाइन्ड हैं या बस शो ऑफ़ यूनिटी
पर्सनल टेक और अंदरूनी एंगल
जहाँ तक मेरा सवाल है, मेरे 10 साल के ऑटोमोबाइल और बाज़ार के अनुभव से मैं ये बोलता हूँ कि सरफेस लेवल रिएक्शंस ज्यादा मतलब नहीं रखते। एक बार मुझे एक EV डीलरशिप में घूमते वक्त याद है, एक सीनियर डीलर ने सीधा बोला, "जो पब्लिक देख रही है वो ज़्यादातर मार्केटिंग है, असली पिक्चर अलग है।" बिल्कुल वैसा ही सीन यहाँ भी है। मीडिया और पॉलिटिकल स्टेटमेंट्स का असली इम्पैक्ट कभी आसानी से समझ में नहीं आता
एक और पर्सनल बात याद आई। एक ऑटो एक्सपो में मुझे एक स्टार्टअप फाउंडर ने बताया कि कभी कभी प्रेस रिलीज़ और रियलिटी में 100 km का फ़र्क़ होता है रेंज के दावे में। कंपनी बोलती है 500 km पर रियल वर्ल्ड में 380। सीधा सीन। वो भी पॉलिटिक्स में लगभग वही होता है। बोल्ड स्टेटमेंट्स और रियल वर्ल्ड एलाइनमेंट हमेशा मैच नहीं करते
थंब्स अप का महत्व
सीधा बोलूँ, BJP का थंब्स अप सिर्फ एक एंडोर्समेंट नहीं है। ये एक सिग्नल है इंटरनल ऑडियंस के लिए। "देखो भाई हम भी ट्रैक पे हैं" लेकिन अंदरूनी नजरिए से मैं ये भी कहता हूँ कि ये थंब्स अप कभी-कभी स्ट्रैटेजी का हिस्सा होता है न कि सिर्फ कंटेंट का रिफ्लेक्शन पॉलिटिक्स में जैसे ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में कभी कभी हाइप क्रिएट करना प्रोडक्ट लॉन्च से पहले ज़रूरी होता है वही प्रिंसिपल अप्लाई होता है
क्रिटिक और रियलिटी चेक
अब सच बोलूँ, मैं क्रिटिकल भी हूँ। मीडिया और सोशल प्लेटफ़ॉर्म्स पर जो हाईलाइट्स होते हैं उनका असली इम्पैक्ट काफी लिमिटेड होता है थोड़ा पर्सनल पर्सपेक्टिव, एक बार मैंने देखा कि एक EV मॉडल के सॉफ़्टवेयर अपडेट के बाद कंप्लेंट्स बढ़ गई पर प्रेस रिलीज़ में सब स्मूथ दिखाया गया यही पॉलिटिक्स में भी होता है कुछ चीज़ें हाईलाइट होती हैं असली डिस्कशन हिडन रहती है
मुझे लगता है कि शशि थरूर का पोस्ट genuine था लेकिन BJP का थंब्स अप एक कैल्क्युलेटेड मूव है यहाँ का इंटरेस्टिंग एंगल ये है कि पब्लिक पर्सेप्शन और अंदरूनी रियलिटी काफी अलग हो सकती है और हां, सोशल मीडिया की स्पीड से डिसीज़न्स और स्टेटमेंट्स का इम्पैक्ट भी फास्ट ट्रैक हो जाता है जैसे ऑटोमोबाइल लॉन्च में हाइप साइकिल फास्ट होती है
निजी दृष्टिकोण और लेसन
मेरे प्वाइंट ऑफ़ व्यू से ये देखा गया है कि पॉलिटिकल एंडोर्समेंट्स और थंब्स अप का असली मक़सद हमेशा क्लियर नहीं होता एक अंदरूनी नजरिए से मैं कहता हूँ कि ये एक कॉम्बिनेशन है ऑप्टिक्स का और इंटरनल सिग्नलिंग का और हां जैसे ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में रिलायबिलिटी और कस्टमर ट्रस्ट मैटर करता है वैसे पॉलिटिक्स में भी कंसिस्टेंसी और पर्सेप्शन का वज़न ज़्यादा होता है
सीधा कहूँ मेरा पर्सनल ओपिनियन ये है कि थरूर का पोस्ट एक स्पार्क है कॉन्कर्शन का और BJP का थंब्स अप एक कैल्क्युलेटेड रिफ्लेक्शन पब्लिक को शायद बस हाईलाइट दिख रहा है लेकिन रियल स्ट्रैटेजी और रीज़निंग काफी डीपर है बिल्कुल वैसे ही जैसे एक नया EV मॉडल के दावे और रियल वर्ल्ड परफॉर्मेंस के बीच का गैप होता है मार्केटिंग और रियलिटी का इंटरप्ले
आख़िरी सोच
इंडरपर्सपेक्टिव से ये एक क्लासिक केस है ऑप्टिक्स सिग्नलिंग और पर्सेप्शन का पॉलिटिक्स में भी जैसे ऑटोमोबाइल वर्ल्ड में हर स्टेटमेंट हर थंब्स अप हर एंडोर्समेंट का इम्पैक्ट लेयर्ड होता है सीधी बात ये है कि ये थंब्स अप सिर्फ एक लेयर है असली गेम काफी गहरा है और अगर आप मेरे जैसे इंसाइडर से सुन रहे हैं तो मैं कहूँगा पब्लिक पर्सेप्शन को एनालाइज करना और रियल इम्प्लीकेशंस समझना दोनों अलग चीज़ें हैं


