Bihar siwan : कोर्ट का बड़ा फैसला पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड में तीन दोषियों को उम्रकैद

सीवान कोर्ट ने पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड पर सात साल बाद सुनाया बड़ा फैसला, तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा, कोर्ट परिसर और शहर में मिला मिला-जुला जनसमर्थन और प्रतिक्रिया।

Bihar siwan :  कोर्ट का बड़ा फैसला पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड में तीन दोषियों को उम्रकैद

बिहार के सीवान से आज फिर एक बड़ी खबर आई है। सात साल पहले स्टेशन रोड पर गोली चला कर मार दिए गए दैनिक हिंदुस्तान के ब्यूरो प्रमुख पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड में अदालत ने तीन आरोपियों को उम्रभर जेल में रखने का आदेश दिया है। यह वही केस है जिसने 2016 में पूरे राज्य की राजनीति, अपराध जगत और पत्रकारिता की दुनिया को हिला दिया था। सुबह से ही जिला व सत्र न्यायालय परिसर में भीड़ लगी रही। जैसे-जैसे फैसला पढ़ा गया, बाहर खड़े लोग एक-दूसरे से खुसर-पुसर करते दिखे—“कहीं अब फिर से कोई दबाव तो नहीं पड़ेगा?”

 

सात साल पुराने केस का इनसाफ आखिर हुआ

मामला 13 मई 2016 का है। ऑफिस से घर लौटते वक़्त राजदेव रंजन पर सीवान स्टेशन के पास बाइक सवार शूटर्स ने पांच राउंड फायरिंग की थी। गोली सीने और गर्दन में लगी थी; अस्पताल पहुंचते-पहुंचते उनकी सांसे थम गई थीं। उस दिन से परिवार, साथी पत्रकार और शहर के लोग बस एक ही सवाल पूछ रहे थे—“कब मिलेगा न्याय?” सात साल बाद आज अदालत ने यह इंतजार खत्म कर दिया। जज ने फैसला सुनाते हुए कहा, “सबूतों की कड़ी साफ है; अपराध सिद्ध होता है, लिहाज़ा तीनों अभियुक्त उम्रकैद भुगतेंगे।” कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया, फिर हल्की सराहना की आवाज़ें उभरती रहीं।

 

अदालत ने दोषियों की सजा पर क्या कहा

फैसले में अदालत ने साफ लिखा कि हत्या पूर्व-नियोजित थी, जिसका मकसद रिपोर्टर की आवाज़ दबाना था। अभियोजन ने 25 से ज़्यादा गवाह पेश किए। फोरेंसिक रिपोर्ट, कॉल-डिटेल और चश्मदीद बयानों ने कहानी जोड़ी। बचाव पक्ष ने “गलत पहचान” और “राजनीतिक साज़िश” का तर्क दिया, पर जज ने इसे नकार दिया। तीनों दोषियों पर अलग-अलग 25-25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। अगर जुर्माना नहीं भरा तो एक-एक साल की अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी। सुनवाई के दौरान पुलिस सुरक्षा कड़ी रही; कोर्ट के बाहर दंगा-नियंत्रक दस्ता भी तैनात था।

 

शहाबुद्दीन का केस में नाम क्यों आया

केस की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन का नाम चर्चा में आया। सीबीआई ने आरोपपत्र में कहा कि शूटर्स ने घटना से ठीक पहले शहाबुद्दीन के गुर्गों से मुलाकात की थी। हालांकि उनके खिलाफ पुख्ता डिजिटल सबूत नहीं मिलने के कारण अदालत ने उन्हें मुख्य अभियुक्त नहीं माना। फिर भी फैसले में यह नोट किया गया कि “शहाबुद्दीन का प्रभाव क्षेत्र और सत्ता में पकड़” ने जांच को जटिल बनाया। 2021 में उसकी जेल में मौत हो चुकी है, लेकिन पीड़ित परिवार अब भी मानता है कि “मुख्य साज़िश वहीं बुनाई गई थी।”

 

मृतक पत्रकार का परिवार क्या कहता है

फैसले के बाद राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन ने मीडिया से बहुत शांत लहजे में कहा, “न्याय मिला, पर पति की जगह तो कोई नहीं ले सकता।” उनका बड़ा बेटा अब कॉलेज में है, छोटा दसवीं में पढ़ रहा है। आशा का कहना है कि दोनों बेटे पत्रकार बनने का सपना देख रहे थे, पर अब वह उन्हें किसी सुरक्षित पेशे में भेजना चाहती हैं। परिवार को राज्य सरकार से मुआवज़े के अलावा सुरक्षा भी मिली थी, जो आज तक जारी है। पर आशा साफ कहती हैं, “सुरक्षा से ज़्यादा हमें सुबूतों की जीत का भरोसा चाहिए था, जो आज मिला।”

 

पत्रकारिता पर ऐसे हमलों का असर

सीवान की यह घटना अकेली नहीं है। पिछले दस साल में देशभर में दर्जनों पत्रकार धमकियों और हमलों का शिकार हुए हैं। प्रेस की आज़ादी सूचकांक में भारत की रैंक लगातार गिरती रही। स्थानीय रिपोर्टरों पर दबाव और बढ़ जाता है क्योंकि वह अपराध और राजनीति की जड़ तक पहुंचते हैं। राजदेव रंजन की हत्या के बाद कई छोटे शहरों के पत्रकारों ने मुश्किल बीट छोड़ दी थी। पर कुछ ने इसे चुनौती भी माना और “हम लिखेंगे, डरेंगे नहीं” जैसे अभियान चलाए। आज का फैसला उन सभी के लिए हौसला बढ़ाने वाला संकेत माना जा रहा है।

 

सीवान की सड़कों पर लोगों की प्रतिक्रिया

फैसले के तुरंत बाद बाजार में चर्चा तेज हो गई। स्टेशन चौक पर सब्जी बेचने वाले रामआशीष ने कहा, “हम समझते थे ये लोग बच जाएंगे, लेकिन देखिए कानून भी ताकतवर है।” वहीं कॉलेज के छात्र विक्रम का मानना है कि “अगर शुरुआत में ही जांच में रुकावट न आती तो फैसला पहले हो जाता।” शाम तक शहर के कुछ हिस्सों में पटाखे भी फोड़े गए। सोशल मीडिया पर स्थानीय पत्रकारों ने JusticeForRajdev टैग के साथ लाइव अपडेट डालते रहे।

 

सरकार और पुलिस से आगे की उम्मीदें

जानकार मानते हैं कि यह फैसला तभी असरदार होगा जब राज्य सरकार फील्ड-लेवल सुरक्षा व्यवस्था और तेज करे। पत्रकार संगठन मांग कर रहे हैं कि जिला स्तर पर “मीडिया प्रोटेक्शन सेल” बने, जहां धमकियों की तुरंत रिपोर्ट हो सके। दूसरी तरफ पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि अब वे लंबित पत्रकार-हमला मामलों पर फास्ट-ट्रैक कार्रवाई शुरू करेंगे। गृह विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमारी कोशिश है कि जांच में राजनीतिक दखल कम से कम हो, तभी सच बाहर आता है।”

सीवान कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर दिखा दिया कि न्याय की राह भले लंबी हो, पर अगर सबूत पक्के हों तो इंसाफ मिलता ज़रूर है। राजदेव रंजन की कलम रुक गई, लेकिन उनकी खबरों की रोशनी नए पत्रकारों का रास्ता दिखा रही है। शहर के अखबार-स्टॉल पर आज भी उनका पुराना कॉलम कई पाठक संभाल कर रखते हैं। शायद यह याद दिलाने के लिए कि सच लिखने की कीमत भले बड़ी हो, पर सच की जीत सबसे बड़ी होती है।

पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या कब और कहाँ हुई थी?
राजदेव रंजन की हत्या 13 मई 2016 को बिहार के सीवान स्टेशन रोड पर की गई थी।
हत्या के मामले में कितने लोगों को सजा सुनाई गई है?
कोर्ट ने तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
इस केस में शहाबुद्दीन का नाम क्यों आया था?
जांच के दौरान शहाबुद्दीन का नाम सामने आया था, लेकिन सबूत पुख्ता नहीं होने के कारण उन्हें मुख्य आरोपी नहीं बनाया गया।
पीड़ित परिवार का इस फैसले पर क्या कहना है?
परिवार ने कहा कि उन्हें न्याय मिला है, लेकिन राजदेव रंजन की कमी हमेशा बनी रहेगी।
इस फैसले का पत्रकारिता जगत पर क्या असर होगा?
फैसला पत्रकारों के लिए हौसला बढ़ाने वाला है और पत्रकार सुरक्षा की मांग को और मजबूत करेगा।