भारत की ताकत और गौरव का प्रतीक बने तेजस फाइटर जेट अब एक नई रफ्तार पकड़ चुके हैं। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने आधिकारिक तौर पर जानकारी दी है कि 10 तेजस एमके-1ए डिलीवरी के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। इनमें से दो जेट्स को नए इंजन के साथ लगाया गया है, जो इन्हें और ज्यादा मजबूत और भरोसेमंद बनाते हैं। यह खबर ऐसे समय आई है जब भारतीय वायुसेना लगातार अपनी ताकत और बेड़े को बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
भारतीय वायुसेना के लिए तेजस सिर्फ एक विमान नहीं बल्कि आत्मनिर्भर भारत की एक जीवंत पहचान है। यह हल्के लड़ाकू विमान न सिर्फ हमारे पड़ोसियों को संदेश देते हैं कि भारत हर हाल में तैयार है बल्कि यह भी बताते हैं कि देश अब विदेशी तकनीक पर पूरी तरह निर्भर नहीं है। HAL का कहना है कि हमारी वार्षिक उत्पादन क्षमता 24 विमानों की है और आने वाले समय में इसे और बढ़ाया जाएगा। इस डिलीवरी के साथ भारत के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को एक बड़ा सहारा मिलेगा।
24 फ्यूजलेज अलग-अलग स्टेज पर और उत्पादन का बढ़ता दायरा
HAL के अधिकारियों के मुताबिक 24 अन्य फ्यूजलेज अभी अलग-अलग चरणों में तैयार हो रहे हैं। इसका मतलब है कि आने वाले महीनों में और भी तेजस जेट वायुसेना के बेड़े में शामिल होंगे। यह प्रक्रिया काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि हर जेट को तैयार करने के लिए कई महीनों का वक्त और बहुत बारीकियों पर ध्यान देना पड़ता है।
प्रत्येक फ्यूजलेज पर अलग-अलग इंजीनियर और तकनीकी टीम काम कर रही है। यह चरणबद्ध निर्माण प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि हर विमान अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरे। भारतीय वायुसेना ने साफ कहा है कि आने वाले वर्षों में उन्हें सैकड़ों तेजस जेट्स की जरूरत होगी और इस दिशा में HAL पूरी लगन से काम कर रहा है। यही वजह है कि आज की तारीख में तेजस फाइटर जेट भारत की सुरक्षा नीति का अहम हिस्सा बन चुका है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पहले तेजस परियोजना को लेकर सवाल उठाए जाते थे कि क्या यह समय पर पूरी हो पाएगी या नहीं। लेकिन अब जब हम जमीन पर तैयार जेट्स और प्रोडक्शन लाइन को देखते हैं तो यह स्पष्ट है कि भारत ने इस क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई है।
सप्लाई चेन की दिक्कतें और उत्पादन में आई देरी
तेजस की डिलीवरी भले ही अब तेज रफ्तार से हो रही हो लेकिन यह भी सच है कि सप्लाई चेन की दिक्कतों ने इस प्रक्रिया को धीमा किया है। कोविड महामारी और वैश्विक स्तर पर पुर्जों की कमी की वजह से कई बार काम रुक-रुक कर हुआ। विदेशी कंपनियों से आने वाले कुछ अहम उपकरण समय पर नहीं मिल पाए।
HAL के अधिकारियों ने साफ किया कि इन दिक्कतों के बावजूद उन्होंने उत्पादन की रफ्तार को बनाए रखने की कोशिश की। यह चुनौतियाँ केवल भारत के सामने नहीं थीं, बल्कि दुनिया भर की एयरोस्पेस इंडस्ट्री ने इसी तरह की समस्याओं का सामना किया। इसके बावजूद आज 10 तेजस जेट्स तैयार हैं, जो इस बात का सबूत है कि हमारी इंजीनियरिंग और प्रबंधन क्षमता कितनी मजबूत है।
इन दिक्कतों से एक और बड़ा सबक मिला कि भारत को अपनी सप्लाई चेन को भी आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देना होगा। रक्षा उत्पादन केवल विमान बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि हर छोटे से छोटे पुर्जे पर निर्भर करता है। अगर भारत इसमें सफल हो जाता है तो आने वाले सालों में हमें किसी भी बाहरी दबाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।
तेजस से बढ़ी आत्मनिर्भरता और भविष्य की राह
तेजस फाइटर जेट की सबसे बड़ी सफलता यह है कि यह भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की मेहनत से तैयार हुआ है। यह पूरी तरह से भारत की तकनीक और इंजीनियरिंग क्षमता पर आधारित विमान है। इसके डिजाइन से लेकर उत्पादन तक का सफर हमें यह भरोसा देता है कि भारत अब रक्षा क्षेत्र में बड़े सपने देख सकता है।
भारतीय वायुसेना के पायलट भी तेजस की उड़ान से बेहद संतुष्ट हैं। हल्का और तेज होने की वजह से यह विमान हवाई मुकाबलों में अहम भूमिका निभा सकता है। आने वाले सालों में जब इसकी संख्या और बढ़ेगी तो भारत के पास एक मजबूत बेड़ा होगा, जो किसी भी खतरे से निपटने में सक्षम होगा।
भविष्य की योजना के तहत HAL न सिर्फ तेजस एमके-1ए बना रहा है बल्कि एमके-2 और एडवांस वर्जन पर भी काम हो रहा है। इसका मतलब है कि आने वाले दशक में भारत के पास ऐसा लड़ाकू विमान होगा, जो दुनिया की बड़ी ताकतों को टक्कर दे सकेगा। यही वजह है कि आज तेजस सिर्फ एक विमान नहीं बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता और तकनीकी ताकत का प्रतीक बन चुका है।