तेजस्वी यादव का चुनाव आयोग पर हमला : बोले, जिनके पास कागज नहीं वो क्या करें? सुप्रीम कोर्ट से राहत, अब आधार कार्ड से भी बनेगा वोटर आईडी
बिहार चुनाव के पहले तेजस्वी यादव बोले, जिनके पास कागज नहीं वो क्या करें, ये आम जनता की सच्ची तकलीफ़ है। उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट से जो राहत मिली है, उससे अब उन लोगों की उम्मीद लौट आई है जो दस्तावेज़ ना होने के कारण वोट देने से वंचित थे।
तेजस्वी यादव बोले- जिनके पास कागज नहीं वो क्या करें? चुनाव आयोग पर हमला और सुप्रीम कोर्ट की राहत
तेजस्वी का हमला और जनता की आवाज
सुबह का वक्त था। पटना की हवा में चुनाव की गंध घुली हुई थी। तभी तेजस्वी यादव ने इंटरव्यू में कुछ ऐसा कहा कि राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई। वो बोले – “जो लोगों के पास डॉक्यूमेंट नहीं है, आप वो डॉक्यूमेंट मांग रहे हैं, तो इतना कम टाइम में कहाँ से लाएगा?” आवाज में बेचैनी थी, पर लहजा ठंडा।
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चुनाव आयोग की नई प्रक्रिया पर उठे सवाल
मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया यानी SIR अभी चल ही रही है। क़ागज़ों का झमेला, फॉर्म, दफ्तरों की दौड़। तेजस्वी को ये सब भारी लगा। उन्होंने कहा, आयोग जनता की जमीन वाली सच्चाई से दूर है। कोई गाँव में जाएगा तो समझेगा, हर किसी के पास बिजली बिल या कागज़ नहीं होता। “गाँव में लोग अपना नाम ढूंढते रह जाते हैं,” उन्होंने कहा, थोड़ी झुंझलाहट के साथ।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया जैसे राहत की सांस
और तभी खबर आई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा – अब आधार कार्ड से भी वोटर आईडी बनेगा। एक झटका सा लगा सबको, मगर अच्छे अर्थ में। जो लोग बरसों से दस्तावेज़ों के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे थे, उनके लिए ये राहत की बारिश जैसी खबर थी। लोग बोले, कम से कम अब वोट देने का अधिकार तो पक्का रहेगा।
बिहार चुनाव की गर्मी में जनता की चिंता
बिहार में अब हर तरफ पोस्टर, भाषण और शोर। लेकिन उस भीड़ के बीच कोई बूढ़ा आदमी पूछता है – “बाबू, हमार कार्ड अभी तक नहीं बना।” यही सवाल तेजस्वी यादव ने भी चुनाव आयोग से किया। उन्होंने कहा कि वोटर सूची का काम ईमानदारी से होना चाहिए। पर कहीं ना कहीं सिस्टम में देरी है। और देरी ही डर भी बना रही है।
गरीब की फाइल, लटकती रही कुर्सी पर
तेजस्वी बोले, “गरीब को लाइन में लगाकर परेशान किया जा रहा है।” उनकी बात में सच्चाई थी। जिनके पास ना बिजली बिल है, ना ज़मीन का कागज़, वो क्या करे। कई गाँवों में यही हाल है। एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “हम तो सिर्फ आधार से काम करते हैं।” और अब कोर्ट ने भी यही कहा — चलेगा।
महागठबंधन ने कहा, ये नियम जनता के खिलाफ
इस बात से महागठबंधन के बाकी नेता भी उबल पड़े। उन्होंने कहा, जब सबका आधार लिंक है, तो फिर बार-बार नए दस्तावेज़ क्यों माँगे जा रहे हैं? विपक्ष का स्वर अब तेज़ हो गया है। पटना के प्रेस क्लब में चल रही मीटिंग से निकलते ही नेता ने कहा, “आयोग को साफ बोलना चाहिए, आखिर किसके दबाव में ऐसे नियम लाए जा रहे हैं?”
चुनाव आयोग का पक्ष, बोले- सबके लिए बराबर नियम
चुनाव आयोग ने तुरंत बयान जारी कर दिया। कहा, सबके लिए एक ही नियम है। आधार जोड़े जा रहे हैं, सुविधा भी बढ़ रही है। लेकिन अंदरखाने से खबरें आईं कि कई जिलों में फील्ड ऑफिसर परेशान हैं। कुछ इलाकों में नेटवर्क नहीं है, कुछ जगह फॉर्म नहीं पहुँचे। यानि फीसद प्रयासों के बावजूद, सिस्टम लड़खड़ा रहा है।
राजनीतिक माहौल अब पूरी तरह गरम
अब माहौल गरम है। सोशल मीडिया में पोस्ट, रैली में भाषण और टीवी डिबेट में गर्मागर्मी। तेजस्वी यादव की बात लोगों में उतर रही है। वो बार-बार कहते हैं – “हम बस इतना चाहते हैं कि हर गरीब को अधिकार मिले।” वहीं सत्तापक्ष इसे राजनीतिक नाटक बता रहा है। दोनो तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का खेल ज़ोरों पर है।
आधार कार्ड से उम्मीद, अब रास्ता थोड़ा आसान
आधार कार्ड को कानूनी मान्यता मिलने के बाद कई चेहरे चमक उठे हैं। यह फैसला छोटे कस्बों और गाँवों में बहुत बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा। अब कोई दफ्तर के चक्कर नहीं काटेगा। एक कार्ड, एक पहचान, और एक अधिकार — यही भावना उभर रही है। बिहार के कई इलाकों में पंचायतों के बीच यह खबर तूफान की तरह फैल गई।
तेजस्वी बोले- अब हर गरीब की आवाज सुनी जाएगी
तेजस्वी यादव ने कहा, “यह गरीब की जीत है।” उनके शब्दों में भावनाएँ दिखीं। उन्होंने कहा कि अदालत ने जनता की पीड़ा सुनी है। अब कोई भी वोट देने के अधिकार से वंचित नहीं रहेगा। लोगों में भी उम्मीद जगी है कि इस बार बदलाव आएगा। और शायद यही बात राजनीति की असली धड़कन है – बदलाव की चाह।
भरोसे की लड़ाई, जो जारी है...
बिहार में चुनाव आने वाले हैं। जनता तैयार है। नेता तैयार हैं। पर भरोसे की लड़ाई अभी जारी है। चुनाव आयोग नियमों में बदलाव कर रहा है तो विपक्ष अपने सवालों से आग लगा रहा है। बीच में आम आदमी – जो बस चाहता है कि उसका नाम वोटर लिस्ट में हो। यही कहानी है आज के बिहार की, जहाँ हर नाम की अपनी लड़ाई है।
अंत में एक सच्चाई
तेजस्वी यादव का सवाल सीधा है। और सच्चा भी। जब हर नागरिक के पास आधार है, तो और क्या चाहिए पहचान के लिए? सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक कदम आगे है लोकतंत्र की दिशा में। पर असली परीक्षा अब शुरू हुई है — क्रियान्वयन की। अगर व्यवस्था ने साथ दिया तो इस बार शायद कोई नाम वोटर लिस्ट से नहीं कटेगा।
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