"सोशल मीडिया के बिना जीवन कैसा होता?" ये सवाल शायद उन लाखों नेपाली युवाओं के लिए सबसे बड़ा बन गया, जिनके मोबाइल ऐप्स में अचानक फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप गायब हो गए, लेकिन TikTok अब भी चालू रहा। आखिर वो कौन-सी वजह थी, जिसने TikTok को नेपाल में बैन से बचा लिया? यही सवाल पिछले दिनों काठमांडू की जमीनी रिपोर्टिंग तक पहुंच गया। चलिए, इस पेचीदा सच्चाई से पर्दा उठाते हैं।
कहाँ से शुरू हुई सोशल मीडिया बैन की बहस?
साल 2023 के आखिर में नेपाल सरकार ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए TikTok को 'सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने' के आरोप में प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन 2024 की गर्मियों आते-आते नज़ारा बदल गया। प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सरकार ने सख्त सोशल मीडिया रजिस्ट्रेशन नीति लागू की। जैसे ही बड़ी टेक कंपनियाँ रजिस्ट्रेशन और लोकल ऑफिस के मुद्दे पर पीछे हटती गईं, सरकार ने 26 लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स – फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब समेत – को ब्लॉक कर दिया
TikTok कैसे अलग निकला?
जिस समय अन्य दिग्गज कंपनियां नेपाल की नई गाइडलाइन को लेकर असमंजस में थीं, TikTok ने तेज़ी से सरकार की शर्तें मान लीं। रजिस्ट्रेशन, लोकल ऑफिस, टैक्स और कंटेंट मॉनिटरिंग जैसे हर नियम पर TikTok ने औपचारिक रूप से स्वीकृति दी और संबंधित दस्तावेज़ भी मंत्रालय को सौंपे । इसका इनाम ये मिला कि TikTok का संचालन कानूनन वैध घोषित कर दिया गया।
क्या कानून सबके लिए एक सा?
यहाँ एक दिलचस्प सवाल है – "क्या कानून सबके लिए एक जैसा है?" दरअसल, नेपाल सरकार का तर्क था कि, "जो कंपनी हमारे कानूनों का सम्मान करेगी और देश में रजिस्टर होगी, वही चलेगी।" TikTok, Viber और कुछ अन्य ऐप्स ने स्थानीय नियमों को समय पर मान लिया, जिनमें से अधिकांश बड़ी कंपनियां जैसे Meta, Google, X (Twitter) इसमें चूक गईं[। इसीलिए, TikTok चालू रह गया।
लोगों की प्रतिक्रियाएँ – जनता क्या सोचती है?
काठमांडू, पोखरा और बिराटनगर में युवाओं से बातचीत में एक साझा चिंता यही थी – "अगर TikTok भी बंद हो जाता, तो रचनात्मकता और एक्सप्रेशन का एकमात्र तरीका भी छिन जाता।" 20 वर्षीय लक्ष्मी काफ्ले कहती हैं, "फेसबुक और इंस्टाग्राम तो विदेशियों के लिए होंगे, लेकिन TikTok ने नेपाली बोली और फोक गानों को नई पहचान दी है। क्या सरकार को हमारी पहचान और अभिव्यक्ति पर भी पाबंदी है?" जनआंदोलन की आवाज़ यहाँ तक गूंज रही थी – “भ्रष्टाचार का इलाज करो, हमारी आवाज़ मत दबाओ!
2023 में TikTok बैन तो हुआ था, फिर चालू कैसे हुआ?
बात 2023 की है, जब TikTok को 'social harmony' यानी सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने, आपत्तिजनक और अश्लील कंटेंट फैलाने के आरोप में ब्लॉक किया गया[web:4][web:8][web:9]। सरकार के साथ मुलाकात में TikTok ने रियल टाइम मॉडरेशन, अवांछित सामग्री की पहचान में सरकारी एजेंसियों की मदद और लोकल कर्मचारियों की नियुक्ति का आश्वासन दिया। ये समझौता होते ही अगस्त 2024 में TikTok पर से प्रतिबंध हटा लिया गया।
आर्थिक और सामाजिक असर
इस बैन-नॉनबैन खेल ने नेपाल के छोटे कारोबारियों, टूरिज्म इंडस्ट्री, गायक-कलाकार और स्थानीय स्टार्टअप्स को झटका दिया। इंटरनेट ऐक्टिविस्ट रामचन्द्र अधिकारी कहते हैं – "सोशल मीडिया अब सिर्फ गपशप का जरिया नहीं, रोज़गार और नेटवर्किंग का मजबूत प्लेटफॉर्म है। TikTok बचने से हजारों Nepali क्रिएटर्स की नौकरी पर बन आई।
क्या सरकार की नीयत पर सवाल?
सरकार का दावा था कि यह कदम "अराजकता रोकने और कानून पालन" के लिए जरूरी था, लेकिन आलोचकों का कहना है कि "इतनी सख्ती से असहमति की आवाज़ दबाई जा रही है।" सोशल एक्टिविस्ट पुष्पा गौतम पूछती हैं, "अगर हर कंपनी पर वही नियम थे, तो बाकी कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन से मना क्यों किया– और TikTok ने मान लिया?" क्या सरकार को अपनी ~70 प्रतिशत युवा आबादी की उम्मीदों का बोझ महसूस नहीं हो रहा?
प्रतिक्रियाओं का तूफ़ान
सोशल मीडिया बैन के विरोध में SaveOurVoice, StopTheBan जैसे हैशटैग नेपाल तक सीमित नहीं रहे। हर मोड़ पर नारे सुनाई देते – "आवाज़ दो, हमें आज़ादी दो!", "हमारा कंटेंट, हमारे नियम!" प्रोटेस्ट के दौरान कई जगह पुलिसिया कार्रवाई, कर्फ्यू और मौतें तक हो गईं। सवाल उठना लाज़िमी था – "क्या युवा असहमति की आवाज़ को यूं ही सड़क पर छोड़ देंगे?"
एक नज़र सार्वजनिक आंकड़ों पर
देश में 2.2 मिलियन से ज्यादा TikTok यूजर्स हैं विश्व बैंक की मानें तो 2024 में नेपाल के निजी प्रेषण (remittances) देश की जीडीपी का 33% हिस्सा थे। ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया किसी इमोशनल कनेक्शन से कहीं बढ़ कर है – अभिव्यक्ति, व्यापार और परिवार का माध्यम।
सरकार और TikTok में नई साझेदारी
सितंबर 2025 में नेपाल पर्यटन बोर्ड और TikTok के बीच पार्टनरशिप हुई है। दोनों मिलकर देश की प्राकृतिक खूबसूरती, त्यौहार और संस्कृति को प्रमोट करने का अभियान चला रहे हैं। इसी बहाने युवाओं और कारोबारियों को एक नई उम्मीद भी मिली।
भविष्य की राह: क्या TikTok हमेशा नेपाल में रहेगा?
कहावत है – "दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक के पीता है।" नेपाली यूजर अब TikTok पर एक्टिव ज़रूर हैं, पर साथ ही सरकार और कंपनियों के झगड़े का नया शिकार न बन जाएं, इसका डर भी कायम है। प्रधानमंत्री का बयान है, "कानून सबके लिए है, पर डिजिटल अभिव्यक्ति की सुरक्षा हमारी ज़िम्मेदारी है।" आगे क्या होगा, ये समय बताएगा – पर TikTok चलाने में अभी कोई कानूनी अड़चन नहीं है।
अगर आपके पास भी सवाल हैं...
सोचिए, अगर आप नेपाल में होते, क्या सरकार का ये कदम ज़रूरी लगता? या TikTok एक्टिव रहने से बच्चों-युवाओं को नया मंच मिला? क्या सोशल मीडिया इतनी जरूरी हो चुकी है, कि बैन का विरोध जान हथेली पर रखकर किया जाए?