अमेरिका का H-1B वीजा लंबे समय से भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के लिए रोजगार और सपनों का सबसे बड़ा जरिया माना जाता रहा है। लेकिन अब इस वीजा पर एक बड़ा बदलाव लागू हो गया है। ट्रंप सरकार ने जिस नियम को लेकर महीनों से बहस चल रही थी, वह आज से लागू हो चुका है। इस नियम के तहत अब कंपनियों को हर H-1B वीजा के लिए एक लाख डॉलर का शुल्क देना होगा।
अमेरिका में नौकरी करने वालों के लिए क्यों अहम है H-1B वीजा और नया शुल्क
H-1B वीजा वह दस्तावेज है जिसकी मदद से भारतीय आईटी प्रोफेशनल, इंजीनियर, डॉक्टर और अन्य क्षेत्र के लोग अमेरिका में काम कर सकते हैं। खासकर भारत से हर साल हजारों लोग इस वीजा के जरिए अमेरिका जाते हैं। अब ट्रंप प्रशासन ने इसमें भारी शुल्क जोड़कर कंपनियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। पहले ही यह प्रक्रिया महंगी थी और अब एक लाख डॉलर का शुल्क और जोड़ दिया गया है।
व्हाइट हाउस ने क्या कहा और किन-किन भ्रमों को किया दूर
पिछले कुछ महीनों से यह सवाल उठ रहे थे कि क्या यह शुल्क केवल भारतीय कंपनियों पर लागू होगा या सभी पर। व्हाइट हाउस ने साफ कर दिया कि यह शुल्क हर उस कंपनी पर लागू होगा जो H-1B वीजा के लिए आवेदन करती है। यानी अब चाहे वह अमेरिका की कंपनी हो या किसी दूसरे देश की, सभी को बराबर का शुल्क चुकाना होगा।
भारतीय आईटी कंपनियों और कर्मचारियों पर इसका सीधा असर
भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो सालों से H-1B वीजा का इस्तेमाल करती रही हैं। हर साल हजारों इंजीनियर और आईटी विशेषज्ञ अमेरिका भेजे जाते हैं। नया नियम इन कंपनियों की लागत को और बढ़ा देगा। इस कारण कंपनियां या तो अपने कर्मचारियों की संख्या कम कर सकती हैं या फिर अमेरिकी बाजार में निवेश को लेकर सतर्क हो सकती हैं।
पिछले कुछ सालों में H-1B वीजा से जुड़े बदलाव और विवाद
H-1B वीजा को लेकर विवाद नया नहीं है। ट्रंप के कार्यकाल में पहले भी कई बार सख्ती की गई थी। कभी नियमों को कड़ा किया गया तो कभी आवेदन प्रक्रिया को लंबा किया गया। आलोचकों का कहना है कि यह कदम अमेरिकी चुनावी राजनीति से जुड़ा है क्योंकि इससे ट्रंप अपने देश के नागरिकों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वह अमेरिकी नौकरियों को बचाने के लिए कदम उठा रहे हैं।
भारतीय छात्रों और परिवारों की चिंताएं भी बढ़ीं
न सिर्फ आईटी कंपनियां बल्कि भारतीय छात्र और परिवार भी इस बदलाव से प्रभावित होंगे। कई युवा अमेरिका जाकर वहां काम करने और बसने का सपना देखते हैं। लेकिन नए शुल्क नियम के बाद यह सपना और महंगा होता दिख रहा है। जिन कंपनियों को भारी खर्च उठाना पड़ेगा, वे कम लोगों को ही नौकरी देंगी और इसका असर सीधे छात्रों और नौजवानों पर पड़ेगा।
क्या केवल ट्रंप सरकार जिम्मेदार है या इससे पहले भी रहे ऐसे कदम
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल ट्रंप को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है। अमेरिका में हर सरकार ने समय-समय पर H-1B वीजा के नियम बदले हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि ट्रंप ने इसे बेहद कठोर रूप में लागू किया है। पहले भी आवेदन शुल्क बढ़ा था लेकिन इतना बड़ा इजाफा पहली बार देखने को मिला है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर और भविष्य की चुनौतियां
भारत की आईटी इंडस्ट्री अरबों डॉलर की है और इसका बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है। अगर कंपनियों की लागत अचानक इतनी बढ़ेगी तो इससे उनकी कमाई पर असर होगा। लंबे समय में इसका असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी दिख सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब कंपनियों को नए बाजार तलाशने होंगे ताकि वे केवल अमेरिका पर निर्भर न रहें।
नए नियम के बाद कंपनियां और कर्मचारी क्या कर सकते हैं
अब सवाल यह है कि जब नया शुल्क लागू हो चुका है तो कंपनियां और कर्मचारी क्या कर सकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि कंपनियों को अमेरिकी कर्मचारियों को ज्यादा अवसर देना होगा। वहीं भारतीय कर्मचारियों के लिए भी जरूरी होगा कि वे सिर्फ अमेरिका पर निर्भर न रहें और यूरोप, एशिया या मिडिल ईस्ट जैसे अन्य देशों में भी नौकरी के विकल्प तलाशें।
भविष्य की तस्वीर और भारतीय युवाओं के सपनों पर असर
कई युवा अमेरिका को सपनों की धरती मानते हैं। लेकिन H-1B वीजा पर नया शुल्क नियम उनके लिए एक बड़ा झटका है। इससे उनके सपनों की कीमत और बढ़ गई है। हालांकि, कुछ लोग इसे सकारात्मक भी मानते हैं। उनका कहना है कि इससे भारतीय युवाओं को अपने ही देश में बेहतर अवसर बनाने और उद्यमिता की ओर बढ़ने का मौका मिलेगा।
क्या H-1B वीजा अब और मुश्किल हो जाएगा
ट्रंप का यह नया नियम साफ संकेत है कि आने वाले समय में अमेरिका में नौकरी पाना पहले जैसा आसान नहीं रहेगा। कंपनियों को ज्यादा सोचना होगा, कर्मचारियों को ज्यादा संघर्ष करना होगा और छात्रों को नए विकल्प तलाशने होंगे। H-1B वीजा अब भी भारतीय सपनों का बड़ा सहारा है, लेकिन इसकी राह पहले से कहीं ज्यादा कठिन हो चुकी है।