₹1.51 करोड़ के नोटों से सजा उदयपुर चा राजा, गणेश उत्सव में श्रद्धालुओं का जनसैलाब

भीड़ को संभालने के लिए स्वयंसेवकों और सुरक्षा दल की तैनाती, पीने का पानी, प्राथमिक उपचार और साफ-सफाई की व्यवस्था के साथ आरामदायक दर्शन का अनुभव, जिससे श्रद्धालु संतुष्ट नजर आए।

₹1.51 करोड़ के नोटों से सजा उदयपुर चा राजा, गणेश उत्सव में श्रद्धालुओं का जनसैलाब

शहर में Ganesh Utsav 2025 की धूम अपने चरम पर है। इस बार चर्चा में रहा ‘उदयपुर चा राजा’, जहां पंडाल और पूजा व्यवस्था को देखकर हर कोई दंग रह गया। आयोजकों के अनुसार गणपति बप्पा का श्रृंगार बेहद अनोखा रखा गया, और इसी वजह से यहां देर रात तक भक्तों का सैलाब दिखाई दिया। माहौल में ढोल-ताशों की थाप, फूलों की खुशबू और “गणपति बप्पा मोरया” के नारे गूंजते रहे।

उदयपुर की गलियों में Ganesh Utsav का रंग, ‘उदयपुर चा राजा’ के पंडाल पर दिन-रात लगी रही श्रद्धालुओं की कतार

उदयपुर की तंग और रंगीन गलियों में इस बार गणेशोत्सव का रंग कुछ अलग ही दिखा। सुबह की आरती से लेकर रात की महाआरती तक, हर पल लोगों का उत्साह बना रहा। परिवार, बच्चे और बुजुर्ग—सबने मिलकर बप्पा के दर्शन किए। व्यवस्था ऐसी थी कि भीड़ होने के बावजूद लोगों को आराम से दर्शन मिलें। पंडाल के बाहर सुरक्षाकर्मियों और स्वयंसेवकों ने रास्ता बनाकर भीड़ को संभाला।

 

1.51 करोड़ रुपये के नोटों से बना आकर्षक श्रृंगार, ‘उदयपुर चा राजा’ की सजावट ने खींची सबकी नज़र

आयोजकों के मुताबिक इस बार श्रृंगार की थीम समृद्धि और सद्भाव पर आधारित रही। पंडाल में रोशनी, फूलों और सजावटी तत्वों का अनोखा मेल दिखा। चर्चा यह भी रही कि गणपति का आसन और बैकड्रॉप नोटों की डिजाइन थीम पर तैयार किया गया, जिसे देखने लोग दूर-दूर से आए। इस भव्य प्रस्तुति का उद्देश्य दिखावा नहीं, बल्कि श्रद्धा के साथ सामुदायिक सहभागिता को मजबूत करना बताया गया।

 

सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन संध्या और महाप्रसाद, Ganesh Utsav 2025 को बना गए यादगार

दर्शन के साथ रोजाना शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। भजन मंडलियों ने पारंपरिक और नए भजनों से समां बांध दिया। बच्चे नृत्य और लघुनाटिका लेकर आए, जिनका विषय था स्वच्छता, शिक्षा और पर्यावरण। दर्शन के बाद महाप्रसाद का वितरण भी निरंतर चला। कई श्रद्धालुओं ने बताया कि ऐसे आयोजनों में मिलने वाली शांति और अपनापन उन्हें हर साल खींच लाता है।

भक्तों की आवाज़: “इतनी भीड़ में भी अपनापन, ‘उदयपुर चा राजा’ के दर्शन ने दिल जीत लिया”

लंबी कतार में खड़े परिवारों से बातचीत में एक ही बात सामने आई—थकान से ज्यादा खुशी। कई लोगों ने कहा कि सजावट के साथ सेवा भी वैसी ही होनी चाहिए, और यहां दोनों का सुंदर संतुलन दिखा। बुजुर्गों के लिए बैठने की व्यवस्था, पेयजल, और फर्स्ट-एड की टीम मौजूद रही। रात गहराती रही, मगर दर्शन की उत्सुकता कम नहीं हुई।

 

सुरक्षा, ट्रैफिक और सफाई पर खास ध्यान, Ganesh Utsav 2025 में अनुशासन का भी दिखा अद्भुत उदाहरण

इतनी बड़ी भीड़ के बीच प्रशासन और आयोजक समूहों ने मिलकर सुंदर तालमेल दिखाया। ट्रैफिक डाइवर्जन के कारण मुख्य मार्गों पर जाम कम लगा। पंडाल के भीतर अग्निशमन और आपातकालीन निकास के संकेत साफ़-साफ़ लगाए गए। सफाई पर विशेष ध्यान रहा ताकि भक्तों को असुविधा न हो और आसपास का इलाका स्वच्छ बना रहे।

 

देसी-आधुनिक का संगम: पारंपरिक आरती के साथ हाई-टेक लाइटिंग, ‘उदयपुर चा राजा’ बना फोटोजेनिक स्पॉट

पंडाल की लाइटिंग और रंग संयोजन ने माहौल को दिव्य बना दिया। दिन में पारंपरिक साज-सज्जा साफ दिखती, जबकि रात में रोशनी का खेल पंडाल को किसी फिल्मी सेट जैसा बना देता। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने बड़ी संख्या में तस्वीरें साझा कीं। कई फोटोग्राफर्स ने कहा कि यह सजावट और रोशनी उनके लिए भी यादगार फ्रेम छोड़ गई।

 

सेवा और दान का भाव, Ganesh Utsav 2025 में सामाजिक संदेशों पर भी जोर

श्रद्धा के साथ सेवा का भाव भी दिखा। रक्तदान शिविर, पौधारोपण का संकल्प, और शिक्षा के लिए पुस्तक संग्रह जैसे कार्यक्रम हुए। आयोजकों ने बताया कि त्योहार का असली अर्थ वही है जो समाज के काम आए। इस बार कुछ हिस्सा सामाजिक कार्यों के लिए अलग रखा गया, ताकि त्योहार के बाद भी इसका असर बना रहे।

उदयपुर चा राजा’ क्या है?
उदयपुर चा राजा’ उदयपुर में आयोजित गणेशोत्सव का लोकप्रिय सार्वजनिक पंडाल है, जहाँ भव्य सजावट, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामुदायिक सेवा के साथ गणपति बप्पा की स्थापना की जाती है
1.51 करोड़ के नोटों के श्रृंगार की बात क्यों चर्चा में है?
इस बार सजावट को लेकर बड़ी चर्चा इसलिए है क्योंकि पंडाल में नोट-थीम या मुद्रा-प्रेरित बैकड्रॉप/डेकोर की बात सामने आई, जिसे प्रतीकात्मक समृद्धि और दान-सेवा से जोड़ा गया बताया जाता है।
दर्शन का समय क्या रहता है और भीड़ कब सबसे ज्यादा होती है?
सुबह आरती से रात की महाआरती तक दर्शन जारी रहते हैं; सबसे ज्यादा भीड़ शाम के बाद होती है, जब सांस्कृतिक कार्यक्रम और विशेष पूजन के साथ महाप्रसाद भी मिलता है।
पंडाल तक पहुँचने के लिए क्या ट्रैफिक व्यवस्था रहती है?
भीड़ को देखते हुए कई मार्गों पर डायवर्जन और पैदल रूट बनाए जाते हैं। पास के पार्किंग ज़ोन से पैदल या शटल की सुविधा स्थानीय स्तर पर बताई जाती है।
सुरक्षा और सुविधाएँ कैसी मिलती हैं?
बड़े पंडालों में बैरिकेडिंग, सीसीटीवी, प्रथम उपचार, पेयजल और बुजुर्गों/बच्चों के लिए सहायता डेस्क जैसे इंतज़ाम रखे जाते हैं। स्वयंसेवक कतार और आपातकालीन निकास में मदद करते हैं।
यहां कौन-कौन से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं?
भजन संध्या, नृत्य-नाटक, बाल कलाकारों के प्रस्तुतिकरण, सामाजिक संदेशों पर लघु नाटक, और पारंपरिक आरती के साथ सामुदायिक सेवाओं की घोषणाएँ आमतौर पर शामिल रहती हैं।
महाप्रसाद में क्या मिलता है और समय कब होता है?
प्रसाद में मॉडक/लड्डू, नारियल-खीर या खिचड़ी/पुलाव जैसे व्यंजन स्थानीय परंपरा के अनुसार वितरित होते हैं। शाम की आरती के बाद से देर रात तक वितरण जारी रहता है।
क्या परिवार और बच्चों के लिए अनुकूल है?
: हाँ, परिवारों के लिए अनुकूल वातावरण रहता है। बच्चों के लिए विश्राम क्षेत्र, पीने का पानी और साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
पर्यावरण के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं?
ईको-फ्रेंडली सजावट, प्लास्टिक-फ्री जोन, सूखे-गीले कचरे का पृथक्करण, और विसर्जन के समय पर्यावरण मानकों का पालन करने पर ज़ोर दिया जाता है।
दान या सेवा में कैसे भाग लें?
पंडाल में अधिकृत दान काउंटर/क्यूआर मौजूद रहते हैं। रक्तदान, पुस्तक-संग्रह, भोजन वितरण और पौधारोपण जैसे अभियानों में स्वयंसेवक पंजीकरण के जरिए भागीदारी की जा सकती है।