Ujjain : में फिर गरजा बुलडोजर महाकाल मंदिर के बगल के 13 घर तोड़े गए
उज्जैन में महाकाल मंदिर के पास प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए 13 घर तोड़ दिए। बुलडोजर की गड़गड़ाहट से पूरा इलाका दहल गया, लोग बेघर होकर सड़क पर आ गए।
पहली किरण के साथ उठी धूल की दीवार, जब शहर ने देखा मोहन सरकार का बुलडोजर काम पर सुबह के ठीक पाँच बजते ही महाकाल मंदिर के दक्षिणी हिस्से में सड़क पर अचानक भारी हलचल दिखी। पुलिस की जीपें, नगर निगम की वैन और पीले रंग का वही बहुचर्चित मोहन सरकार का बुलडोजर लाइन से खड़े थे। लोग समझ नहीं पाए कि त्योहारों के मौसम में यह आपात अभियान क्यों शुरू किया गया। कुछ ही पलों में मशीन के दांत पुराने लखपति कॉलोनी की पहली दीवार पर चढ़ गए। पत्थर टूटे, शीशे बिखरे और धूल का बादल पूरा मोहल्ला ढक गया। मंदिर की पहली आरती चल ही रही थी; शंख-ध्वनि में घटनास्थल की चीखें मिलकर अजीब सा संगीत रच रही थीं। बुज़ुर्ग महिलाएँ दरवाज़े पर हाथ जोड़कर बैठ गईं, पर सरकारी दस्ते ने निगाह तक नहीं उठाई। दो घंटे में चार मकान समतल ज़मीन हो गए और बच्चों के स्कूल-बैग मलबे में दबे रह गए।
Related Articles
“मकानों पर अवैध कब्ज़ा था,” प्रशासन की दलील; निवासियों का सवाल—इतनी जल्दबाज़ी क्यों?
ज़िला कलेक्टर राहुल मिश्रा का दावा है कि ये तेरह मकान मंदिर परिसर की सीमा में अवैध रूप से घुस आए थे। विभाग ने तीन महीने पहले नोटिस भेजा, मगर लोगों ने जवाब नहीं दिया, इसलिए कार्रवाई ज़रूरी थी। दूसरी तरफ़ रहने वालों का कहना है कि नोटिस सुबह चिपकाया गया और दोपहर होते-होते घर ढहा दिया गया। राजेश गुप्ता, जिनका मकान भी ढहा, रोते हुए बोले, “हम चार पीढ़ियों से यहीं हैं, अब एक काग़ज़ पर लिखकर हमारा हक कैसे छिन गया?” आसपास के दुकानदारों का भी कहना है कि मंदिर विकास परियोजना के नाम पर ज़मीन खाली कराई जा रही है ताकि बड़े पार्किंग-कॉम्प्लेक्स और कॉमर्शियल प्लाज़ा बनाए जा सकें। सवाल यह है कि साधारण परिवारों को मुआवज़ा मिले बिना कैसे उजाड़ा जा सकता है।
तीन महीने, तेरह घर—कैसे बढ़ी उज्जैन की नई परिभाषा: विकास या विस्थापन?
महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर विस्तार योजना में कुल चार हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। बीते तीन महीनों में तेरह घर और छह छोटी दुकानें गिराई जा चुकी हैं। जिला प्रशासन का दावा है कि यह सब धार्मिक पर्यटन बढ़ाने और भीड़ नियंत्रण के लिए किया जा रहा है। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि कॉरिडोर की दूसरी तरफ़, यानी रामघाट रोड पर, निजी होटल चेन को ज़मीन आवंटित करने की तैयारी चल रही है। विकास की इस लंबी परिभाषा में स्थानीयों की रोज़ी-रोटी कहाँ है, यह सवाल कटघरे में है। विश्लेषकों का कहना है कि विश्व-स्तर के भक्तों को सुविधा देने की दौड़ में नगर ने अपने ही नागरिकों का दर्द अनसुना कर दिया। कई छात्र, जो ट्यूशन पढ़ाकर परिवार चलाते थे, अब किराये का कमरा ढूँढ रहे हैं।
कौन हैं मोहन और उनका बुलडोजर अभियान—राजनीति के नए पोस्टर-बॉय या कड़े प्रशासनिक अफ़सर?
मध्यप्रदेश सरकार में राज्यमंत्री मोहन द्विवेदी बीते साल से लगातार सुर्खियाँ बटोर रहे हैं। सड़क किनारे अवैध निर्माण हटाने की उनकी शैली को मीडिया ने “बुलडोजर पॉलिटिक्स” नाम दिया है। समर्थकों का तर्क है कि शहर की खूबसूरती लौटाने के लिए कठोर कदम ज़रूरी हैं। विरोधी दल इस मुहिम को गरीब-विरोधी और वोट बैंक साधने का तरीका बताते हैं। दिलचस्प बात यह है कि मोहन सरकार का बुलडोजर अब महज़ एक मशीन नहीं, बल्कि राजनीतिक नारा बन चुका है। सोशल मीडिया पर हैशटैग चल रहा है | JusticeForUjjainFamilies’—और शाम तक पाँच लाख से ज़्यादा लोग पोस्ट कर चुके थे। फिर भी मंत्री का रुख़ सख्त है; वह कहते हैं, “कानून सबके लिए बराबर है, चाहे मकान मंदिर के पास हो या मुख्य बाज़ार में।”
ज़मीन पर तंबू, आसमान में उम्मीद—पुनर्वास का वादा और सच्चाई की दूरी
कार्रवाई के दस घंटे बाद जब मशीनें चली गईं, तब तक सूरज तेज़ हो चुका था और ज़मीन पर सिर्फ़ ईंट-पत्थर फैले थे। रात काटने के लिए नगर निगम ने देर से आकर दो तंबू गाड़े, लेकिन बारिश की बूँदें शाम से ही गिरने लगीं। महिलाओं ने मलबे से बची बोरियाँ जोड़कर दीवार बनाईं और छोटे-छोटे बच्चे भीगी रोटियाँ खाते रहे। प्रशासन कहता है कि जल्द ही किराये की सहायता शुरू होगी, पर कोई लिखित आदेश साइट पर चिपका नहीं। ज्यादातर परिवारों के पास रिश्तेदार भी नहीं जहाँ वे अस्थायी तौर पर जा सकें। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक मकान छिनना सिर्फ़ आर्थिक नुकसान नहीं होता; यह यादों, सुरक्षा और स्वाभिमान का टूटना है, जिसे कोई मुआवज़ा तुरंत जोड़ नहीं पाता।
अदालत का दरवाज़ा, जनआंदोलन या फिर एक और भोर में गरजता बुलडोजर?
क़ानूनी विशेषज्ञ बता रहे हैं कि पीड़ित परिवार हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। अगर कोर्ट ने स्टे दिया तो आने वाली कार्रवाई रुक सकती है, वरना कॉरिडोर का अगला चरण दो महीनों में शुरू होगा। शहर भर में छात्र संगठनों और व्यापारी संघों ने शांतिपूर्ण मार्च का आह्वान किया है। सवाल यह भी है कि क्या प्रशासन वैकल्पिक पुनर्वास की ठोस योजना बिना बुलडोज़र चलाए नहीं बना सकता था? उज्जैन के इतिहास में कई बार बाढ़, महामारी और दंगों ने शहर को चुनौती दी, पर नागरिकों ने मिलकर सब सँभाला। इस बार चुनौती अपने ही सिस्टम से है। अगर संवाद न हुआ तो महाकाल नगरी की महिमा पर राजनीति की धूल लंबे समय तक जमी रहेगी।
फिलहाल मंदिर की घंटियों की आवाज़ रोज़ की तरह जारी है, लेकिन पास के मैदान में ठहरे तंबू हर आगंतुक का ध्यान खींच रहे हैं। बच्चे मंदिर की ओर उठती रौशनी देखते हैं और शायद पूछते होंगे—“क्या अगली सुबह हमारा घर लौट आएगा?” उत्तर किसी के पास नहीं, पर एक सच साफ़ है: मोहन सरकार का बुलडोजर जब तक रुकता नहीं, उज्जैन की सड़कों पर धूल और दिलों में डर बना रहेगा।
ये भी पढ़ें
- Banana demand increased in Chhath Puja: हाजीपुर मंडी में रिकॉर्ड कारोबार, किसानों में खुशी की लहर
- ASEAN Summit: पीएम मोदी का वर्चुअल संबोधन आसियान 2025 में भारत की एक्ट ईस्ट नीति पर जोर
- Premanand Ji Maharaj: वृंदावन में संत प्रेमानंद महाराज के दर्शन को उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
- Cyclone Montha: चक्रवात मोंंथा क्या है और कौन-कौन से राज्यों में लाएगा भारी तबाही?
मैं हूँ मानसी आर्या, GCShorts.com की एडिटर। टेक-गियर, न्यूज़ कवरेज, ये सब मेरे जिम्मे है। कंटेंट की प्लानिंग से लेकर प्रोडक्शन तक सब कुछ देखती हूँ। डिजिटल मार्केटिंग और सोशल मीडिया की झलक भी है मेरे फैसलों में, जिससे खबरें जल्दी, बढ़िया और असली आपके पास पहुँचती रहें। कोई फालतू झंझट नहीं, बस काम की बातें।
-
Ujjain शिप्रा नदी में कार गिरने की घटना: रेस्क्यू ऑपरेशन जारी -
Difference between PM Shri and CM Shri Schools: जानें दोनों योजनाओं में क्या है फर्क और कैसे मिलेगा एडमिशन -
Banana demand increased in Chhath Puja: हाजीपुर मंडी में रिकॉर्ड कारोबार, किसानों में खुशी की लहर -
ASEAN Summit: पीएम मोदी का वर्चुअल संबोधन आसियान 2025 में भारत की एक्ट ईस्ट नीति पर जोर -
Premanand Ji Maharaj: वृंदावन में संत प्रेमानंद महाराज के दर्शन को उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ -
Cyclone Montha: चक्रवात मोंंथा क्या है और कौन-कौन से राज्यों में लाएगा भारी तबाही?