उपराष्ट्रपति चुनाव के बीच विपक्ष का हंगामा,लोकसभा में विवादित विधेयक पेश
20 अगस्त को संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में उस वक्त जबरदस्त हंगामा हुआ जब केंद्र सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने वाला विधेयक पेश किया। लेकिन हंगामा केवल इस मुद्दे पर नहीं था, असली विवाद उस प्रस्तावित संशोधन को लेकर हुआ जिसमें कहा गया है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी जनप्रतिनिधि किसी “गंभीर आपराधिक आरोप” में 30 दिनों से अधिक जेल में रहता है, तो उसे पद से हटा दिया जाएगा — भले ही मुकदमा अदालत में चल रहा हो या नहीं।
विपक्षी सांसदों ने इस विधेयक को सीधा-सीधा “असंवैधानिक” और “तानाशाही” की ओर ले जाने वाला कदम बताया। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि यह केवल भ्रष्टाचार विरोधी कानून का दिखावा है। उनके अनुसार, “कल किसी मुख्यमंत्री पर झूठा मामला दर्ज कर 30 दिन जेल में डाल दो, और बिना दोष सिद्ध हुए ही उसे हटा दो। यह न संविधान के मुताबिक है और न लोकतंत्र के।”कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा विपक्ष को हराने में असफल रही है, इसलिए वह अब इस तरह की साजिशों के जरिए सरकारें गिराने का रास्ता खोज रही है।
विपक्ष ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले का उदाहरण दिया। उन्हें शराब नीति घोटाले के आरोप में मार्च 2024 में गिरफ़्तार किया गया था और बिना मुकदमे के पाँच महीने जेल में रखा गया। अगर यह कानून तब लागू होता, तो गिरफ्तारी के 31वें दिन ही उनकी बर्खास्तगी हो जाती।इसी तरह तमिलनाडु में द्रमुक के मंत्री वी सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए विपक्ष ने आरोप लगाया कि केंद्रीय एजेंसियाँ गैर-भाजपा राज्यों को निशाना बना रही हैं।
एनके प्रेमचंद्रन (आरएसपी) “इसका गुप्त उद्देश्य केवल गैर-भाजपा शासित राज्यों को अस्थिर करना है।”
असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM) “भाजपा देश को पुलिस राज्य में बदलना चाहती है। सत्ता हमेशा किसी के पास स्थायी नहीं रहती।”
सुधाकर सिंह (राजद) “यह भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे हालात की ओर ले जाने वाला कदम है।”
दूसरी ओर, भाजपा का कहना है कि यह कानून जनता के हित में है और इसका मकसद उच्च पदों पर बैठे नेताओं को जवाबदेह बनाना है। कर्नाटक के भाजपा विधायक अरविंद बेलाड ने कहा कि यह स्वागत योग्य कदम है क्योंकि कई बार देखा गया है कि मुख्यमंत्री जेल से भी सत्ता चलाने की कोशिश करते हैं।भाजपा का दावा है कि मौजूदा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम केवल तभी अयोग्यता देता है जब किसी नेता को कम से कम दो साल की सजा हो। नया प्रस्तावित कानून इससे कहीं अधिक सख्त होगा और पद पर बैठे लोगों को जवाबदेह बनाएगा।