सच कहूँ जिस क्षण यह बात दिखी कि शोधकर्ताओं ने करोड़ों नहीं अरबों व्हाट्सऐप से जुड़े फ़ोन नम्बर निकाल लिये मैं बस स्क्रीन को घूरता रह गया। भीतर एक छोटी सी घबराहट उठी। वैसी ही जैसे एक बार नई कार जाँच चलाते समय सड़क पर ही रुक गयी थी और तकनीकी लड़का बोला था साहब छोटी सी दिक्कत होगी। बाहर से हँसी आई थी पर अंदर कुछ चुभ गया था। यह व्हाट्सऐप वाली बात भी वैसी ही लगी।
व्हाट्सऐप अब घर का बैठक कमरा जैसा बन गया। डीलर की तस्वीरें। सर्विस की पर्चियाँ। परिवार की बातें। रात में भेजे गये फालतू संदेश। सब वहीं चलता रहता है। ऐसे में अगर इतनी बड़ी मात्रा में नम्बर बाहर चले जाएँ तो यह कोई हल्का स्पैम वाला मामला नहीं। यह ऐसा लगता है जैसे कोई आधा खुला दरवाज़ा थोड़ा सा धक्का देकर भीतर आ गया हो।
लीक का झमेला नया नहीं पर इस बार आकार बहुत भारी सा लग रहा
अरबों शब्द सुनते ही पेट में हल्की मरोड़ आती है। शोधकर्ता सही हों या थोड़ा ज़्यादा बोल गये हों यह कहना मुश्किल है। मगर इतना बड़ा ढेर इधर उधर घूम रहा हो यह सोच ही परेशान करती है।साल दो हज़ार उन्नीस का एक दृश्य याद आता है। बेंगलुरु में एक नई बिजली कार की परख चल रही थी। सब ठीक चल रहा था। अचानक पीछे बैठे एक पत्रकार ने कहा भाई तुम्हारी गाड़ी का पहचान क्रमांक किसी खुले मंच पर पड़ा है। पहले तो हँसी आई फिर बहुत अजीब लगा। तभी समझ आया कि कोई ताला पूरी तरह बंद नहीं होता। इस व्हाट्सऐप वाली ख़बर से वही पुरानी टीस लौट आई।

लोग सोचते हैं नम्बर लीक होने से क्या होगा पर असर बहुत गहरा होता है
आज फ़ोन नम्बर किसी चाबी की तरह है। ओटीपी। बैंक का काम। भुगतान। सब इसी पर टिका। अगर किसी के हाथ में बहुत बड़ी सूची आ जाए तो ठगी की पूरी दुकान चल पड़ती है। नकली कार बुकिंग। झूठी वारंटी। बनावटी सर्विस की याद दिलाना। कितने लोग इसमें फँस जाते हैं मैंने खुद देखा है।अब जब बात अरबों व्हाट्सऐप नम्बर की चल रही है तो मन में सवाल उठता है। अगर इतना बड़ा मंच ही सबकुछ सुरक्षित नहीं रख पाता तो छोटी मोटी कार कंपनियों के ऐप क्या सम्भालेंगे।
मेरी एक और छोटी सी घटना और इसमें थोड़ा झुंझलाहट भी है
दो वर्ष पहले एक डीलरशिप से लौटने के बाद मेरे व्हाट्सऐप पर अजीब संदेश आने लगे। साहब सबसे अच्छी वारंटी। साहब खास ऑफर। मैंने तो कोई पूछताछ भी नहीं की थी। बाद में वहीं के एक कर्मचारी ने धीरे से कहा साहब कभी कभी सूची सिस्टम से बाहर चली जाती। जैसे कुछ हुआ ही नहीं। तभी समझ गया था कि डेटा की इज़्ज़त कई जगह बस नाम की होती है। इसीलिए व्हाट्सऐप नम्बर लीक होने की खबर ने मुझे चौंकाया नहीं। बस संख्या ने हल्का धक्का दिया।
व्हाट्सऐप पर भरोसा अब थोड़ा ढीला सा लगने लगा
व्हाट्सऐप हमेशा कहता है कि संदेश सुरक्षित हैं। पर यह सुरक्षा सिर्फ बातचीत की होती है। नम्बर की कहानी अलग है। कंपनियाँ चाहे कुछ भी कहें असलियत थोड़ी नरम ही रहती है। और लोग भी लापरवाह। कहते हैं सिर्फ नम्बर है क्या बिगड़ेगा। यही सोच सबसे ख़तरनाक होती है। एक नम्बर से आदमी का पूरा डिजिटल रास्ता छोटी छोटी चीज़ें जोड़कर निकाला जा सकता है। और कई बार बहुत आसान सा लगता है।
अब क्या किया जाए
मैं कोई साइबर विशेषज्ञ नहीं पर ऑटो तकनीक में वर्षों घूमने के बाद एक बात समझ आई है। होशियार रहना पड़ता है। अनजान कॉल को मत उठाना। व्हाट्सऐप की तस्वीर सार्वजनिक मत रखना। कोई ओटीपी या बैंक से जुड़ी बात किसी को न देना चाहे वह कोई बड़ा अफ़सर बनकर ही क्यों बोले। उम्मीद है व्हाट्सऐप अपनी नम्बर पहचान वाली व्यवस्था को थोड़ा कड़ा करेगा। बड़े मंच पर ज़िम्मेदारी भी बड़ी होती है।
मेरी अंतिम साफ़ बात
दस साल के अनुभव ने मुझे एक चीज़ साफ समझाई है। जितनी स्मार्ट कोई व्यवस्था होती है उतने ही छोटे छोटे छेद उसमें निकल आते हैं। कारें। ऐप। चैट। कुछ भी पूरी तरह बंद नहीं होता। अब जब अरबों नम्बर बाहर होने की बातें घूम रही हैं इसे हल्का मत लेना। कल कोई ठग आपको सर्विस केंद्र बनकर संदेश भेज देगा और आप क्लिक भी कर देंगे क्योंकि आया तो व्हाट्सऐप पर है सुरक्षित ही होगा। यही गलती लोग बार बार कर बैठते हैं।


