Zelensky ne Putin का न्यौता ठुकराया, वजहें जंग के बीच साफ हुईं
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने साफ कहा कि वे मॉस्को नहीं जा सकते क्योंकि उनका देश रोज़ मिसाइल और ड्रोन हमलों का सामना कर रहा है, ऐसे हालात में “आतंक फैलाने वाले” की राजधानी में जाकर बैठक करना संदेश गलत देगा, इसलिए उन्होंने मॉस्को के न्यौते को ठुकरा दिया और कहा—पुतिन अगर ईमानदार हैं तो कीव आकर बात करें, यही सही जगह और सही संकेत होगा ।
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जेलेंस्की का तर्क है कि जब युद्ध जारी है और यूक्रेनी शहरों पर गोलाबारी हो रही है, तब मॉस्को की मेजबानी असल बातचीत नहीं, बल्कि दबाव की राजनीति लगती है; उन्होंने अमेरिकी मीडिया से बातचीत में दोहराया कि वे मॉस्को नहीं जा सकते और पुतिन चाहें तो कीव आ सकते हैं, यह प्रस्ताव उन्होंने सीधा ऑन-रिकॉर्ड रखा है ताकि बातचीत की नीयत पर कोई शक न रहे । इस बीच क्रेमलिन ने कहा कि मॉस्को का निमंत्रण समर्पण के लिए नहीं, बातचीत के लिए था, मगर यूक्रेनी पक्ष इसे “अनरीयलिस्टिक लोकेशन” कह रहा है; अंतर यह है कि एक पक्ष राजधानी में सुरक्षा व नियंत्रण दिखाना चाहता है, जबकि दूसरा पक्ष वार्ता को पीड़ित देश की जमीन पर, यानी कीव में, नैतिक संदर्भ के साथ रखना चाहता है ।
कीव को वार्ता स्थल बनाने का संकेत
कीव का प्रस्ताव केवल जगह बदलने की बात नहीं, यह युद्ध की वास्तविकता और जिम्मेदारी को स्वीकार करने का प्रतीक है; जेलेंस्की चाहते हैं कि अगर बातचीत हो तो वहां हो जहां मिसाइलें गिरती हैं, जहां लोग शेल्टर में रहते हैं—इससे वार्ता में मानवीय पक्ष पहले आए और फैसले जमीन की सच्चाई देखकर हों, न कि ताकत के प्रदर्शन से ।
उन्होंने पहले भी कहा है कि वे तटस्थ या तीसरे देश में मिलने को तैयार रहे हैं, जैसे इस्तांबुल जैसे विकल्प पहले आए थे, लेकिन मॉस्को उन्हें बातचीत रोकने की रणनीति लगता है; कीव का विकल्प देकर उन्होंने गेंद पुतिन के पाले में डाल दी—जो मिलना चाहता है, वह प्रतिद्वंद्वी के दर्द को देखने से पीछे नहीं हटता । स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री फिको ने भी कहा कि पुतिन ने मॉस्को के बाहर मिलने की रुचि दिखाई, फिर भी जेलेंस्की का नया सार्वजनिक रुख साफ है—अगर सच्चा इरादा है तो कीव आइए; यह लाइन यूक्रेन की कूटनीतिक रणनीति को मजबूत करती है कि बातचीत शर्तों नहीं, वास्तविकता से चले ।
पुतिन का प्रस्ताव और उसके पीछे की राजनीति
पुतिन ने कहा कि वे मुलाकात से कभी नहीं भागे और अगर जेलेंस्की तैयार हों तो मॉस्को आ जाएं, उन्होंने यह भी जोड़ा कि बैठक “अच्छी तैयारी” के साथ होनी चाहिए और परिणाम रचनात्मक हों; यह संदेश उन्होंने चीन दौरे और अंतरराष्ट्रीय मंचों के बीच दिया, जहां वे बार-बार दिखाना चाहते हैं कि वे कूटनीति के लिए खुले हैं, पर शर्तें उनकी हों ।
रूस ने पहले भी वार्ता की कसौटियां रखी हैं—नाटो में यूक्रेन की सदस्यता रोकना और डोनेत्स्क-लुहान्स्क पर व्यापक नियंत्रण जैसे अधिकतम मांगें, जिन पर कीव और उसके साझेदार सहमत नहीं; इसलिए मॉस्को में मुलाकात का विचार यूक्रेन को असमान स्थिति में धकेलने जैसा प्रतीत होता है ।संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की हाल की बहसों में भी कई देशों ने मॉस्को की पहल को संदेह की नजर से देखा, कहा कि असली मुद्दा हवाई हमले और नागरिकों पर असर है, ऐसे में “वार्ता का निमंत्रण” तभी अर्थपूर्ण होगा जब हमले रुकें; यूक्रेन इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाता है और कीव में बातचीत की बात उसी का विस्तार है ।
अमेरिका की भूमिका और ट्रंप फैक्टर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में पुतिन से अलास्का में मुलाकात के बाद दोनों नेताओं की आमने-सामने बातचीत की वकालत की, यहां तक कि त्रिपक्षीय बैठक की बात भी आई; ट्रंप की सक्रियता के बाद पुतिन ने कहा कि वे मॉस्को में मिलने को तैयार हैं, जबकि जेलेंस्की ने सार्वजनिक रूप से जवाब दिया—“वह कीव आ सकते हैं” ।
जेलेंस्की का कहना है कि कुछ कदमों ने पुतिन को वही दिया जो वे चाहते थे, इसलिए मंच और शर्तें बेहद मायने रखती हैं; अगर मंच मॉस्को है, तो कथा रूस नियंत्रित करेगा, अगर मंच कीव है, तो पीड़ित पक्ष की आवाज़ और नुकसान सामने रहेंगे—यही वजह है कि लोकेशन पर जोर देखा जा रहा है । रूसी पक्ष ने भी पॉलिटिकल मैसेजिंग की—विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने जेलेंस्की की वैधता पर सवाल उठाने वाली लाइनें दोहराईं, जिससे मुलाकात टलती दिखे; ऐसे में ट्रंप के मध्यस्थता प्रयासों के बावजूद, जमीन पर हमलों और सख्त शर्तों के चलते वार्ता की राह टेढ़ी बनी हुई है ।
जमीनी हालात: हमले, कैदी अदला-बदली और युद्ध की थकान
इसी साल तुर्की में दोनों पक्षों के प्रतिनिधि मिले थे, जहां बड़े पैमाने पर युद्धबंदियों की अदला-बदली पर सहमति बनी, मगर सीजफायर पर ठोस बात नहीं निकल सकी; यह दिखाता है कि मानवीय मुद्दों पर सीमित प्रगति संभव है, पर राजनीतिक शर्तों पर दोनों पक्ष दूर-दूर हैं ।
रूस ने कई बार कहा कि अगर “कॉमन सेंस” हावी हुआ तो बातचीत से हल हो सकता है, पर साथ ही ताकत से हल करने की चेतावनी भी दी, जो मैदान पर दबाव बढ़ाने की रणनीति को दर्शाती है; यूक्रेन इसे “अवास्तविक शर्तें” कहकर खारिज करता है, इसलिए वार्ता का सच वहीं अटका है—हमले कब रुकें और किस आधार पर रुकें ।
इधर यूरोप और साझेदार देशों में भी बहस तेज है कि सुरक्षा गारंटी क्या हों और कौन देगा; कई राजधानियों में यह राय बन रही है कि बिना हमले कम किए बातचीत का मंच खोखला रहेगा—यही पृष्ठभूमि जेलेंस्की के कीव-आमंत्रण की है, ताकि बातचीत में युद्ध की सच्चाई का सामना हो ।
आगे की राह: कीव बनाम मॉस्को और असली परीक्षा
अब असली सवाल यह है कि क्या पुतिन कीव आकर बातचीत को नई दिशा देंगे या फिर लोकेशन को बहाना बनाकर यह प्रक्रिया और खिंचती जाएगी; जेलेंस्की का पत्ता सीधा है—अगर वार्ता ईमानदार है तो कीव में मिलिए, इससे भरोसा बनेगा और दुनिया को संकेत मिलेगा कि बातचीत दिखावे की नहीं, समाधान की ओर है ।[3][1][2]अगर तीसरे देश में बैठक तय हो, तो भी शर्तें और हमलों की रफ्तार असल पैमाना होंगी; जब तक नाटो, सीमाओं और नियंत्रित इलाकों पर रूस की अधिकतम मांगें नरम नहीं होतीं, और यूक्रेन की सुरक्षा आश्वासनों पर ठोस ढांचा नहीं बनता, तब तक किसी भी शिखर वार्ता से त्वरित शांति मुश्किल दिखती है ।
फिलहाल इतना निश्चित है कि “मॉस्को नहीं, कीव आइए” वाला संवाद रूस-यूक्रेन वार्ता को नई परिभाषा दे रहा है; यह संदेश युद्ध की थकान, पीड़ित नागरिकों और कूटनीति की साख को जोड़ने की कोशिश है—यही वजह है कि कीव को वार्ता का मंच बनाने की मांग अब वैश्विक चर्चा में केंद्र में है ।
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