जम्मू-कश्मीर के अखनूर क्षेत्र के चौकी चौरा इलाके में अचानक बादल फटने से भारी तबाही मच गई। देखते ही देखते पूरा इलाका पानी और मलबे से भर गया। इस आपदा में 200 से ज्यादा घर जलमग्न हो गए और कई लोग बेघर हो गए। बाढ़ जैसे हालात ने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया है। वहीं, इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी पहल हुई है, जिसने इस त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन और पर्यावरण असंतुलन से जोड़ते हुए गंभीरता से संज्ञान लिया है।
बादल फटने की घटना
शनिवार सुबह अखनूर के चौकी चौरा क्षेत्र में मौसम अचानक बिगड़ गया। तेज गर्जना और बारिश के बीच अचानक बादल फटने जैसी स्थिति बनी। कुछ ही घंटों में भारी जलप्रलय ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया। खेत, सड़कें, पुल और घर सभी डूब गए। अचानक आए इस प्रलय ने लोगों को संभलने का मौका तक नहीं दिया। ग्रामीण अपने घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर भागने लगे।
200 से ज्यादा घर प्रभावित
स्थानीय प्रशासन के अनुसार चौकी चौरा इलाके में 200 से ज्यादा घर पूरी तरह जलमग्न हो गए हैं। इससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। कई घरों की दीवारें और छतें गिर गई हैं, जबकि खेतों की फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। प्रभावित परिवार खुले आसमान तले रहने पर मजबूर हैं। प्रशासन ने राहत शिविर बनाए हैं, लेकिन लोगों को बड़ी मात्रा में सहायता की जरूरत है।
स्थानीय लोगों की पीड़ा
गांववालों का कहना है कि इतनी बड़ी त्रासदी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। अचानक घरों में पानी और मलबा भर गया। बच्चों और बुजुर्गों को बचाने के लिए लोग घंटों तक संघर्ष करते रहे। कई लोग भावुक होकर अपनी बरबादी को लेकर रो पड़े। उनका कहना है कि अब उनके पास खाने, रहने और भविष्य की कोई गारंटी नहीं बची है। यह केवल प्राकृतिक आपदा ही नहीं बल्कि उनके सपनों और जीवन की बर्बादी भी है।
प्रशासन और राहत कार्य
घटना के बाद प्रशासन और आपदा प्रबंधन दल तुरंत सक्रिय हो गए। सेना और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुंची और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। कई परिवारों को सुरक्षित निकाला गया और राहत शिविरों में पहुंचाया गया। वहां उन्हें खाने-पीने का सामान और इलाज की सुविधा दी जा रही है। स्कूलों और सामुदायिक भवनों को अस्थायी कैंप में बदला गया है। लेकिन राहत कार्य अभी पर्याप्त नहीं लग रहे हैं, क्योंकि प्रभावित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान
इस हादसे की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की आपदाएं केवल प्राकृतिक नहीं बल्कि विकास की असंतुलित गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन से भी जुड़ी हैं। कोर्ट ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जवाब मांगा है कि उन्होंने आपदा प्रबंधन और पर्यावरण सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हर हादसे में केवल राहत देने से काम नहीं चलेगा, बल्कि दीर्घकालिक नीतियां बनाना जरूरी है।
विशेषज्ञों की राय
जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं। हिमालयी क्षेत्र और जम्मू-कश्मीर जैसे इलाकों में बादल फटना और अचानक बाढ़ आना लगातार बढ़ रहा है। इसका मूल कारण वनों की कटाई, अनियंत्रित निर्माण कार्य और जलवायु परिवर्तन है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अभी से ठोस कदम न उठाए गए तो आने वाले सालों में ऐसी आपदाएं और भी व्यापक होंगी।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस आपदा पर राजनीतिक दलों ने भी अपनी राय रखी। विपक्ष ने सरकार को लापरवाह ठहराया और कहा कि प्रशासन के पास आपदा प्रबंधन की पर्याप्त तैयारी नहीं थी। वहीं सरकार का कहना है कि राहत कार्य युद्धस्तर पर चल रहे हैं और प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने भी घटनास्थल का दौरा किया और प्रभावितों को जल्द पुनर्वास का आश्वासन दिया।
लोगों की आशंकाएं
ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें डर है कि आने वाले दिनों में फिर ऐसा हादसा हो सकता है। मानसून अभी जारी है और पहाड़ी क्षेत्रों से पानी का दबाव लगातार बढ़ रहा है। लोग लगातार सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे हैं। कई परिवार अपने घर छोड़कर रिश्तेदारों या शहरों में शरण लेने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि केवल तात्कालिक राहत मददगार नहीं होगी, बल्कि उन्हें स्थायी समाधान चाहिए।
बचाव कार्यों की चुनौतियां
रेस्क्यू टीमों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। रास्ते ध्वस्त हो चुके हैं, पुल बह गए हैं और संचार व्यवस्था बाधित है। कई गांवों तक पहुंच बनाना बेहद मुश्किल हो गया है। सेना के हेलिकॉप्टरों की मदद ली जा रही है, लेकिन अभी भी सैकड़ों लोग फंसे हुए बताए जा रहे हैं। चिकित्सा सेवाएं भी पर्याप्त नहीं हैं और बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ रहा है।
राहत और पुनर्वास योजनाएं
सरकार ने घोषणा की है कि प्रभावित परिवारों को मुआवजा दिया जाएगा और उनके लिए स्थायी आवास बनाए जाएंगे। कृषि नुकसान की भरपाई करने के लिए विशेष बजट रखा जाएगा। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए अस्थायी स्कूल खोले जाएंगे। परंतु प्रभावित लोग मानते हैं कि घोषणा से ज्यादा महत्वपूर्ण है इन वायदों को सही समय पर पूरा करना।