Janmashtami Special 2025: बच्चों को राधा-कृष्णा (Radha-Krishna) बनाना धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से कितना सही?
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भारत के प्रमुख और पावन त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे देश में भक्तिमय वातावरण और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों और घरों में विशेष सजावट, झूलनोत्सव, भजन-कीर्तन, व्रत-पूजा और भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का भव्य उत्सव आयोजित किया जाता है।
एक विशेष परंपरा, जो कई वर्षों से निभाई जा रही है, वह है बच्चों को राधा और कृष्ण के रूप में सजाना। यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है बल्कि इसमें गहरी भक्ति भावना भी निहित है।
जन्माष्टमी 2025 की तिथि और महत्व
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र में, मध्यरात्रि के समय हुआ था।
अष्टमी तिथि शुक्रवार की रात 11:48 बजे शुरू होगी, लेकिन उदय तिथि के अनुसार पर्व का आयोजन 16 अगस्त को होगा। इस दिन भरणी, कृतिका और रोहिणी नक्षत्र का योग जन्माष्टमी को और भी विशेष बनाता है।
बालकृष्ण और राधारानी का धार्मिक महत्व
बालकृष्ण का रूप: बालकृष्ण को नटखट, लीलामय और अत्यंत आकर्षक माना जाता है। बांसुरी बजाना, माखन चुराना और गोपियों के संग रास रचाना उनकी विशेष लीलाएं हैं।
राधारानी का रूप: राधा प्रेम, भक्ति और सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं। बच्चों को राधा के रूप में सजाना उस पवित्र प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, जो राधा-कृष्ण के संबंध में झलकता है।
क्या यह धार्मिक रूप से सही है?
धार्मिक दृष्टि से यह परंपरा पूर्णतः सही और शुभ मानी जाती है। शास्त्रों में बच्चों को देवत्व का रूप धारण करने में कोई दोष नहीं बताया गया है।
बल्कि, यह परंपरा बच्चों के मन में छोटी उम्र से ही धर्म, भक्ति और संस्कृति के प्रति प्रेम जगाने का एक सशक्त माध्यम है।
सजावट में किन बातों का रखें ध्यान
सुरक्षा: बच्चों की त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले रंग या मेकअप का इस्तेमाल न करें।
आरामदायक वेशभूषा: कपड़े हल्के, आरामदायक और बच्चों की उम्र के अनुसार हों।
अध्यात्मिक महत्व: इसे केवल दिखावे या प्रतियोगिता के रूप में न देखें, बल्कि इसके पीछे छिपी धार्मिक भावना को बच्चों को समझाएं।
सांस्कृतिक और धार्मिक संदेश
जन्माष्टमी पर बच्चों को राधा-कृष्ण के रूप में सजाना, त्योहार की शोभा बढ़ाने के साथ-साथ नई पीढ़ी को भारतीय परंपराओं और आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ने का सुंदर माध्यम है। यह प्रेम, भक्ति और सांस्कृतिक गौरव का संदेश देता है, जो हमारे समाज की जड़ों को मजबूत करता है।