भाजपा का 180 डिग्री मोड़ सीपी राधाकृष्णन बनाम जगदीप धनखड़
भाजपा ने राज्यसभा की राजनीति में एक बड़ा बदलाव करते हुए जगदीप धनखड़ की जगह सीपी राधाकृष्णन को आगे किया है। यह परिवर्तन सिर्फ़ एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति का नहीं, बल्कि भाजपा की रणनीति और शैली में 180 डिग्री का मोड़ है।
जगदीप धनखड़ को 2022 में राज्यसभा का सभापति चुना गया था। उनकी नियुक्ति को उस समय जाट समुदाय के लिए एक राजनीतिक संदेश माना गया था — यह जताने के लिए कि राष्ट्रीय सत्ता संरचना में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित है।
लेकिन धनखड़ की छवि हमेशा से एक आक्रामक वकील और टकरावप्रिय नेता की रही। बंगाल के राज्यपाल रहते हुए ममता बनर्जी सरकार से उनकी लगातार टकराहट सुर्खियों में रही। राज्यसभा में भी उनकी कार्यशैली तीखे हस्तक्षेप और कानूनी तर्कों से भरी रही, जिससे अक्सर विपक्ष के साथ आम सहमति बनाना कठिन हो जाता था।
विपक्ष उन्हें धीरे-धीरे एक पक्षपाती चेहरा मानने लगा, जिसने अपने पद की पारंपरिक निष्पक्षता को कमजोर किया।
इसके ठीक उलट, सीपी राधाकृष्णन को एक सौम्य और संतुलित नेता माना जाता है। वे भाजपा और संघ की वैचारिक परंपरा से गहराई से जुड़े हैं — उनका रिश्ता आरएसएस और जनसंघ से 17 वर्ष की उम्र से ही रहा है।
राधाकृष्णन को एक ऐसे नेता के तौर पर देखा जाता है जो टकराव नहीं, बल्कि समझौते और सहमति का रास्ता चुनते हैं। यही कारण है कि उन्हें राज्यसभा के संचालन के लिए अधिक उपयुक्त माना गया।
राधाकृष्णन की नियुक्ति एक और बड़ी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा लंबे समय से दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश कर रही है। कर्नाटक को छोड़कर पार्टी यहाँ अब तक बड़े स्तर पर पैर नहीं जमा पाई है।एक दक्षिण भारतीय और ओबीसी नेता के रूप में राधाकृष्णन की पहचान इस विस्तार योजना के लिहाज़ से अहम है। वे न सिर्फ़ वैचारिक रूप से पार्टी से जुड़े हैं, बल्कि विपक्ष पर अपनी सौम्य और सटीक टिप्पणियों से भी ध्यान खींच चुके हैं।
धनखड़ की मुखर शैली के कारण संसद का माहौल अक्सर टकराव से भर जाता था। इसके विपरीत राधाकृष्णन की छवि समावेशी और संवादप्रिय नेता की है।
उन पर कोई राजनीतिक बोझ नहीं है और उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जा रहा है जो विपक्ष के साथ भी पुल का काम कर सकते हैं।
गौरतलब है कि जगदीप धनखड़ ने इस संसद सत्र की शुरुआत में ही अचानक इस्तीफ़ा दे दिया। आधिकारिक तौर पर उन्होंने कहा कि यह फैसला उन्होंने अपने स्वास्थ्य कारणों से लिया। लेकिन सूत्र बताते हैं कि विपक्ष द्वारा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार करने के कुछ ही घंटों बाद उनका इस्तीफ़ा सामने आया, जिसने सत्तारूढ़ दल को भी चौंका दिया।