Emergency weapon: एक साल में सप्लाई अनिवार्य, देरी पर करार रद्द और सेना की तैयारी पर फोकस

सरकार ने रक्षा आपूर्ति को तेज बनाने के लिए नया नियम लागू किया है, जिसके तहत आपातकालीन खरीद के सभी हथियार और सैन्य उपकरण एक साल के भीतर फोर्स तक पहुँचाना अनिवार्य कर दिया गया है।

Emergency weapon: एक साल में सप्लाई अनिवार्य, देरी पर करार रद्द और सेना की तैयारी पर फोकस

रक्षा तैयारियों को तेज रफ्तार देने के लिए सरकार ने आपूर्ति समयसीमा पर सख्त रुख अपनाया है। अब आपातकालीन जरूरतों के तहत खरीदे गए सभी सैन्य उपकरण और हथियार एक निश्चित अवधि के भीतर मिलिट्री को सौंपना अनिवार्य माने जाएंगे। रिपोर्टों के मुताबिक, आपातकाल में खरीदे गए हथियार एक साल के भीतर डिलीवर नहीं हुए तो संबंधित करार रद्द किया जा सकता है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि जंग जैसे हालात में फौरन इस्तेमाल लायक सिस्टम समय पर उपलब्ध रहें।

 

क्यों लिया गया सख्त फैसला: मिशन-क्रिटिकल सप्लाई में देरी से खत्म हो जाता है इमरजेंसी खरीद का उद्देश्य

पिछले वर्षों में सीमाओं पर तनाव और आकस्मिक स्थितियों के दौरान कई बार ऐसा हुआ कि इमरजेंसी रूट से ऑर्डर किए गए सिस्टम समय पर नहीं पहुंचे। परिणामस्वरूप, जिस तेजी के लिए यह रूट बनाया गया था, उसी का उद्देश्य कमजोर पड़ गया। नई व्यवस्था कहती है कि फास्ट-ट्रैक से खरीदे जाने वाले प्लेटफॉर्म तभी चुने जाएं जब वे अगले 12 महीनों में फोर्स तक पहुंच सकें।

 

क्या बदलेगा अब: बाजार में तुरंत उपलब्ध सिस्टम को प्राथमिकता, लंबी टेस्टिंग-इंटीग्रेशन वाले प्लेटफॉर्म बैकफुट पर

नई सोच यही है कि ऑफ-द-शेल्फ या पहले से सर्विस में मौजूद सिस्टम पर जोर दिया जाए। इससे फील्डिंग और ट्रेनिंग में समय बचेगा और सैनिक यूनिट्स इन्हें तुरंत अपनाकर तैनात कर सकेंगी। जहां लंबे इंटीग्रेशन या प्रोडक्शन लाइन की जरूरत है, वे सौदे सामान्य प्रक्रिया से ही आगे बढ़ेंगे।

 

एक साल की टाइमलाइन कैसे काम करेगी: कॉन्ट्रैक्ट साइनिंग से काउंटडाउन, क्लॉज के हिसाब से पेनल्टी और रद्दीकरण

कॉन्ट्रैक्ट पर सिग्नेचर होते ही टाइमलाइन चालू मानी जाएगी। सप्लायर को माइलस्टोन-वार सप्लाई शेड्यूल देना होगा—जैसे पहले बैच की डिलीवरी, ट्रेनिंग, स्पेयर, और फाइनल हैंडओवर। तय समय पर बैच नहीं पहुंचे तो पेनल्टी क्लॉज एक्टिव होंगे और गंभीर देरी पर करार रद्द भी किया जा सकता है।

 

फोर्सेस के लिए क्या फायदा: त्वरित तैनाती, भरोसेमंद भंडार और ऑपरेशनल गैप्स को तेजी से भरना

मौजूदा सुरक्षा माहौल में त्वरित तैनाती निर्णायक साबित होती है। एक साल की सीमा से यूनिट्स के पास समय पर प्लेटफॉर्म पहुंचेंगे, स्पेयर और गोला-बारूद का स्टॉक तय स्तर पर रहेगा और ऑपरेशनल गैप्स जल्दी भरे जा सकेंगे। इससे लॉजिस्टिक्स प्लानिंग और रोटेशन भी आसान होगा।

 

इंडस्ट्री पर असर: सप्लायर्स को रियलिस्टिक डिलीवरी प्लान, फर्म कैपेसिटी और वैकल्पिक सप्लाई-चेन दिखानी होगी

इंडस्ट्री को अब क्षमता और कैपेबिलिटी का सटीक रोडमैप देना होगा। उत्पादन लाइन, सब-वेंडर नेटवर्क और क्रिटिकल कंपोनेंट्स के वैकल्पिक स्रोत तैयार रखना अनिवार्य होगा। जो कंपनियां समय पर डिलीवर कर सकती हैं, उन्हें फास्ट-ट्रैक कॉन्ट्रैक्ट्स का फायदा मिलेगा।

 

क्वालिटी और टेस्टिंग: ‘जितनी जल्दी, उतना अच्छा’ के साथ ‘जितनी भरोसेमंद, उतना जरूरी’

फास्ट-ट्रैक में भी गुणवत्ता से समझौता नहीं होगा। अगर कोई सिस्टम मित्र राष्ट्र की सेनाओं में पहले से सर्विस में है, तो परीक्षण का दायरा सीमित किया जा सकता है। लेकिन क्रिटिकल सेफ्टी और इंटरऑपरेबिलिटी चेक अनिवार्य रहेंगे ताकि फील्डिंग में जोखिम न बढ़े।

 

कॉन्ट्रैक्टिंग में पारदर्शिता: क्लियर क्लॉज, माइलस्टोन-आधारित भुगतान और परफॉर्मेंस बैंक गारंटी

नई शर्तें माइलस्टोन-आधारित भुगतान को बढ़ावा देंगी ताकि सप्लाई के साथ-साथ फाइनेंसिंग भी ट्रैक पर रहे। परफॉर्मेंस बैंक गारंटी और कड़े LD (लिक्विडेटेड डैमेज) क्लॉज समयपालन को अनुशासित बनाएंगे। इससे छोटी-बड़ी दोनों कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, पर जिम्मेदारी भी स्पष्ट रहेगी।

 

स्वदेशी सिस्टम पर फोकस: उपलब्ध प्लेटफॉर्म्स, तेज सप्लाई-चेन और आफ्टर-सेल्स सपोर्ट का लाभ

जहां संभव हो, स्वदेशी प्लेटफॉर्म्स पर जोर से सप्लाई टाइम घटेगा और लाइफ-साइकिल सपोर्ट बेहतर रहेगा। घरेलू उद्योग के साथ क्लोज-लूप सपोर्ट से स्पेयर, रिपेयर और अपग्रेड्स भी समय पर मिलेंगे, जिससे ऑपरेशनल रेडीनेस ऊंची रहेगी।

 

चुनौतियाँ क्या हैं: वैश्विक सप्लाई-चेन जोखिम, क्रिटिकल इलेक्ट्रॉनिक्स और इम्पोर्टेड सबसिस्टम की उपलब्धता

सेमीकंडक्टर, सेंसर और उच्च-शुद्धता मटेरियल जैसे घटकों की वैश्विक कमी कभी-कभी समयसीमा पर खतरा डाल सकती है। ऐसे में मल्टी-सोर्सिंग, बफर स्टॉक्स और लॉन्ग-लीड आइटम्स के लिए अग्रिम ऑर्डर मददगार होंगे।

नया नियम क्या कहता है?
आपातकाल में खरीदे गए हथियार और सैन्य उपकरण कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के एक साल के भीतर सप्लाई करना अनिवार्य है; तय समयसीमा में डिलीवरी नहीं हुई तो करार रद्द किया जा सकता है।
यह समयसीमा कब से गिनी जाएगी?
समयसीमा कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर की तारीख से शुरू मानी जाएगी। इसी दिन से सप्लायर का डिलीवरी शेड्यूल और माइलस्टोन ट्रैक किया जाएगा।
देरी होने पर क्या-क्या कार्रवाई हो सकती है?
पहले पेनल्टी/LD क्लॉज लागू हो सकते हैं। गंभीर/लगातार देरी या माइलस्टोन फेल होने पर कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने का प्रावधान है।
इमरजेंसी रूट से किन तरह के हथियार खरीदे जाएंगे?
मुख्यत: वही प्लेटफॉर्म/उपकरण जिनकी बाजार में तुरंत उपलब्धता हो और जिन्हें एक साल में फील्ड किया जा सके—जैसे ड्रोन, काउंटर-ड्रोन सिस्टम, एयर-डिफेंस, राडार, गोला-बारूद आदि।
यह सख्ती क्यों जरूरी मानी गई?
इमरजेंसी खरीद का उद्देश्य “तुरंत तैनाती” है। देरी से इमरजेंसी रूट का मकसद खत्म हो जाता है और ऑपरेशनल गैप बने रहते हैं; इसलिए समयसीमा बाध्यकारी की गई।
क्या गुणवत्ता/ट्रायल से समझौता होगा?
नहीं। क्रिटिकल सेफ्टी, इंटरऑपरेबिलिटी और स्वीकार्यता जांच अनिवार्य रहेंगी। जहां सिस्टम पहले से मित्र देशों में सर्विस में हो, वहाँ सीमित/त्वरित ट्रायल का उपयोग किया जा सकता है।
इंडस्ट्री/वेंडर पर क्या असर पड़ेगा?
सप्लायर्स को यथार्थवादी डिलीवरी प्लान, उत्पादन क्षमता, वैकल्पिक सब-वेंडर और क्रिटिकल कंपोनेंट्स के मल्टी-सोर्स की तैयारी दिखानी होगी; अन्यथा बिड जोखिम में रहेगी।
क्या स्वदेशी सिस्टम को प्राथमिकता मिलेगी?
जहां संभव हो, स्वदेशी प्लेटफॉर्म को बढ़त मिलेगी क्योंकि सप्लाई-चेन तेज, आफ्टर-सेल्स सपोर्ट बेहतर और लाइफ-साइकिल लागत नियंत्रित रहती है।
सामान्य (नॉन-इमरजेंसी) खरीद प्रक्रियाओं में भी बदलाव होंगे?
प्रयास है कि सामान्य डिफेंस प्रोक्योरमेंट का कुल चक्र घटे—फील्ड ट्रायल, मूल्यांकन और अनुमोदन चरणों के लिए स्पष्ट टाइमलाइन निर्धारित की जा रही है।
फोर्सेज के लिए तत्काल लाभ क्या होगा?
समय पर हथियार/उपकरण, स्पेयर और ट्रेनिंग पैकेज मिलने से त्वरित तैनाती संभव होगी, ऑपरेशनल गैप्स जल्दी भरेंगे और मिशन-रेडीनेस ऊंची बनी रहेगी।