हिन्दू मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर श्री नारायण के योग निद्रा मे जाते ही चतुर्मास लग जाता है इस चतुर्मास के दौरान हिन्दू धर्म के सभी शुभ मांगलिक कार्य बंद रहते है.कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जब विष्णु भगवान योग निद्रा से जागते है तो शुभ व मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते है ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष मार्ग का प्रशस्त होता है. तो आइये अब हम जानते है कि इस साल किस दिन है देवउठनी एकादशी।
कब है देवउठनी एकादशी
इस साल कार्तिक शुक्ला एकादशी 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी और ये 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। तो ऐसे में उदय तिथि को ध्यान में रखते हुए देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को ही मानी जाएगी।
क्या है देवउठनी एकादशी के व्रत नियम
यह व्रत निर्जल तथा केवल फल और जल ग्रहण कर किया जाता है.बुजुर्ग या अस्वस्थ व्यक्ति फलाहारी व्रत भी कर सकते है अगर यदि ये संभव नहीं हो पा रहा है तो इस दिन कम से कम चावल और नमक का सेवन नहीं करना चाहिये। तमोगुण संबंधी भोजन से भी परहेज करना चाहिये
देवउठनी एकादशी की पूजन विधि
देवउठनी एकादशी के दिन सर्वप्रथम गन्ने का मंडप तैयार करे इसके बाद चौक लगाकर भगवान श्री नारायण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करे। इस दिन भगवान विष्णु के चरण चिह्न भी बनाये जाते है जिनको हमें उन्हें ढककर रखना चाहिए।इस दिन भगवान विष्णु को गन्ना, सिंघाड़ा,फल और मिठाई अर्पित की जाती है। संध्या काल में घी का दीपक जलाये और उसे रातभर प्रज्वलित रहने दे अगले दिन सुबह चरणों का अनावरण कर विधिवध पूजा करे. शंखनाद ,घंटी और भजन कीर्तन के साथ भगवान विष्णु को जाग्रत करे अंत में कथा सुने और मांगलिक कार्य आरंभ करे
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देवउठनी एकादशी वाले दिन क्या करे और क्या न करे
इस दिन तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए।तुलसी माता को लाल चुनरी उड़ाये और उनके पास दीप प्रज्वलित करे इस दिन चावल का सेवन वर्जित माना गया है तो चावल का सेवन न करे इस दिन घर में लहसुन प्याज का सेवन भी वर्जित है देवउठान पर मन को शांत रखे और अपने घर का वातावरण सकारात्मक बनाये यदि किसी कुंवारे लड़के या लड़की के विवाह में बाधा आ रही है तो तुलसी माता का पीले वस्त्रो में सोलह श्रृंगार करना चाहिये देवउठनी एकादशी के दूसरे दिन तुलसी तथा शालिग्राम की प्रतिमा का भी विवाह कराया जाता है












