Ganesh Visarjan 2025: कब होगा गणपति विसर्जन, जानें शुभ मुहूर्त और परंपराएं

Ganesh Visarjan 2025 का पर्व 5 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन भक्त भगवान गणेश को नम आंखों से विदा करेंगे। जानें इसकी तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और परंपराओं का विवरण।

Ganesh Visarjan 2025: कब होगा गणपति विसर्जन, जानें शुभ मुहूर्त और परंपराएं

गणेशोत्सव पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दस दिनों तक घर-घर और पंडालों में बप्पा का आगमन होता है और पूजन अर्चन के बाद Ganesh Visarjan 2025 का आयोजन किया जाएगा। विसर्जन वह क्षण है जब भक्त भगवान गणेश को नम आंखों से विदा करते हैं और अगले वर्ष जल्दी आने की प्रार्थना करते हैं।

 

गणपति विसर्जन 2025 की तिथि

इस साल Ganesh Visarjan 2025 शुक्रवार, 5 सितंबर को होगा। भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी के दिन अनंत चतुर्दशी पर ही गणपति विसर्जन होता है। यह दिन शुभ अवसर माना जाता है और इसी दिन बप्पा को विदाई दी जाएगी।

 

गणपति विसर्जन का शुभ मुहूर्त

पंडितों के अनुसार 5 सितंबर 2025 को प्रातःकाल से लेकर रात्रि तक कई शुभ मुहूर्त रहेंगे जिनमें बप्पा को विदा किया जा सकता है। सुबह 6:00 बजे से 10:30 बजे तक का समय खास शुभ रहेगा। इसके अलावा दोपहर और संध्या समय भी विसर्जन किया जा सकता है। भक्त प्रायः घर या पंडाल की सुविधा और परंपरा के अनुसार समय चुनते हैं।

 

गणपति विसर्जन का महत्व

Ganesh Visarjan 2025 केवल धार्मिक प्रक्रिया नहीं है बल्कि आस्था और भावनाओं का प्रतीक है। यह पर्व सिखाता है कि हर शुरुआत का एक अंत होता है और जीवन अनित्य है। मिट्टी के गणेश जी का विसर्जन पानी में करने से यह संदेश मिलता है कि हम प्रकृति से आए हैं और प्रकृति में ही लौट जाना है।

 

गणपति विसर्जन से जुड़ी परंपराएं

विसर्जन से पहले लोग गणेश जी की विशेष पूजा करते हैं। ढोल-ताशों, भजनों और नारों के साथ बप्पा की शोभायात्रा निकाली जाती है। लोग फूल और मिठाइयां अर्पित करते हैं। पानी में प्रतिमा को विसर्जित करने से पहले “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” का जयघोष होता है।

 

गणपति विसर्जन 2025 में पर्यावरण का ध्यान

बीते कुछ वर्षों से पर्यावरण को सुरक्षित रखने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। इसलिए इस बार भी Ganesh Visarjan 2025 में बहुत से लोग मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनी प्रतिमाओं को ही अपनाएंगे। कृत्रिम रंग और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम हो रहा है। पानी प्रदूषित न हो इसके लिए स्थानीय प्रशासन ने भी कृत्रिम तालाब और टैंक बनाए हैं जहां विसर्जन किया जा सकता है।

 

भारत के अलग-अलग राज्यों में विसर्जन

महाराष्ट्र में इस दिन मुंबई की सड़कों पर भव्य शोभायात्रा होती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और उत्तर भारत के कई हिस्सों में भी विसर्जन धूमधाम से किया जाता है। बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। Ganesh Visarjan 2025 पर सभी प्रमुख शहरों में यातायात और सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की जाएगी।

 

समाज और संस्कृति पर प्रभाव

गणपति उत्सव केवल पूजा तक सीमित नहीं है बल्कि यह समाज को जोड़ने का माध्यम भी है। विसर्जन के अवसर पर लोग जाति और वर्ग भेद भूलकर एक साथ आते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत, नृत्य और भजन कीर्तन से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति की सामाजिक एकता को प्रदर्शित करता है।

 

घर पर विसर्जन की परंपरा

जो लोग घर पर गणेश जी की स्थापना करते हैं वे प्रायः बाल्टी या छोटे तालाब में पर्यावरण हितैषी प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। पूजा के बाद मूर्ति को पानी में डुबोकर प्राकृतिक तत्व में मिलाना विसर्जन कहलाता है। Ganesh Visarjan 2025 पर यह परंपरा भी अब पर्यावरण के अनुकूल तरीके से निभाई जा रही है।

Ganesh Visarjan 2025 कब होगा?
Ganesh Visarjan 2025 इस साल 5 सितंबर 2025 (शुक्रवार) को भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी यानी अनंत चतुर्दशी के दिन होगा।
Ganesh Visarjan 2025 का शुभ मुहूर्त क्या है?
पंडितों के अनुसार सुबह 6:00 बजे से 10:30 बजे तक पहला शुभ मुहूर्त रहेगा। इसके अलावा दोपहर और शाम को भी विसर्जन किया जा सकता है।
गणेश विसर्जन का महत्व क्या है?
गणेश विसर्जन जीवन के अनित्य होने का प्रतीक है। मिट्टी के गणेश को पानी में मिलाना यह बताता है कि हम प्रकृति से आए हैं और उसी में लौटना है।
विसर्जन की परंपराओं में क्या खास होता है?
भक्त विसर्जन से पहले बप्पा की विशेष पूजा करते हैं, ढोल-ताशे बजते हैं, शोभायात्रा निकाली जाती है और ‘गणपति बप्पा मोरया’ के जयकारों के साथ विदाई दी जाती है।
क्या विसर्जन घर पर भी किया जा सकता है?
हाँ, बहुत से लोग घर पर छोटे तालाब, बाथटब या बाल्टी में पर्यावरण अनुकूल प्रतिमा का विसर्जन करते हैं ताकि प्रकृति को नुकसान न पहुँचे।
पर्यावरण अनुकूल गणेश विसर्जन क्यों जरूरी है?
प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल वाले रंग पानी को प्रदूषित करते हैं। इसलिए मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनी प्रतिमाओं का विसर्जन करना ही सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।