अक्टूबर के महीने में भारत और अफगानिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात होने जा रही है। इस मुलाकात से दोनों देशों के रिश्तों में एक नया मोड़ आ सकता है। अमीर खान मुत्ताकी जो कि अफगानिस्तान के वर्तमान विदेश मंत्री हैं, भारत की यात्रा करने वाले हैं। यह यात्रा 9 अक्टूबर 2025 को शुरू होगी और इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
कौन हैं अमीर खान मुत्ताकी
अमीर खान मुत्ताकी का नाम आज अफगानिस्तान की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण है। वे सिर्फ एक राजनेता नहीं हैं बल्कि एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनका अतीत काफी जटिल रहा है। तालिबान के शासनकाल में वे एक प्रमुख कमांडर के रूप में काम कर चुके हैं। अब वे अफगानिस्तान के विदेश मंत्री का पद संभाल रहे हैं।
मुत्ताकी की शिक्षा धार्मिक संस्थानों में हुई है। उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन तालिबान के साथ शुरू किया था। जब तालिबान ने दोबारा अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो उन्हें विदेश मंत्री का जिम्मा दिया गया। उनकी जिम्मेदारी अब अफगानिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाने की है।
महिलाओं के अधिकारों का मुद्दा
तालिबान की नीतियों को लेकर दुनिया भर में चर्चा होती रहती है। खासकर महिलाओं के अधिकारों के मामले में तालिबान का रुख बहुत सख्त रहा है। अफगानिस्तान में महिलाओं को काम करने, पढ़ने और बाहर निकलने में कई पाबंदियां लगाई गई हैं। यह बात अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को परेशान करती है।
संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं ने तालिबान की इन नीतियों की आलोचना की है। कई देशों ने तालिबान को मान्यता देने से इंकार कर दिया है। इन सब बातों के बावजूद भारत अब राजनयिक बातचीत का रास्ता अपना रहा है।
भारत की रणनीति समझना जरूरी
भारत की विदेश नीति हमेशा व्यावहारिक रही है। अफगानिस्तान भारत का पड़ोसी देश है और वहां की स्थिति का असर भारत पर भी पड़ता है। भारत सरकार का मानना है कि बातचीत के जरिए ही समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।
भारत-अफगानिस्तान संबंध का इतिहास बहुत पुराना है। दोनों देशों के बीच व्यापार, संस्कृति और लोगों के रिश्ते गहरे हैं। तालिबान के आने के बाद यह रिश्ता बाधित हो गया था। अब भारत इसे फिर से जोड़ने की कोशिश कर रहा है।
दुनिया की नजर में यह दौरा
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारत के इस कदम को बहुत ध्यान से देख रहा है। कुछ देशों का मानना है कि तालिबान से बात करना गलत है। वहीं कुछ का कहना है कि अफगानिस्तान में शांति के लिए यह जरूरी है।
अमेरिका और यूरोपीय देशों की तालिबान से बातचीत सीमित रही है। ऐसे में भारत का यह कदम एक नई दिशा देता है। यह बताता है कि भारत अपने हितों के लिए स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है।
आम लोगों को क्या फायदा होगा
इस राजनयिक मुलाकात से आम लोगों को भी फायदा हो सकता है। अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की मदद हो सकती है। व्यापारिक गतिविधियां फिर से शुरू हो सकती हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि दोनों देशों की जनता के बीच संपर्क बना रह सकता है।
अफगानिस्तान से भारत आने वाले छात्रों और कारोबारियों को भी सुविधा मिल सकती है। मानवीय सहायता के काम भी आसान हो सकते हैं। यह सब तभी संभव है जब दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला चलता रहे।
आगे का रास्ता क्या है
यह दौरा सिर्फ एक शुरुआत है। इससे यह पता चलेगा कि भविष्य में भारत-अफगानिस्तान के रिश्ते किस दिशा में जाएंगे। भारत सरकार को यह संतुलन बनाना होगा कि वह अपने हितों की रक्षा करते हुए मानवाधिकारों की आवाज भी उठाए।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण है। भारत न तो तालिबान की नीतियों का समर्थन कर रहा है और न ही उन्हें पूरी तरह नकार रहा है। यह एक संतुलित नजरिया है जो लंबे समय में फायदेमंद साबित हो सकता है।