राधाकुंड: राधा-कृष्ण के प्रेम का पावन प्रतीक
जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर हम आपको मथुरा-वृंदावन की उस अद्भुत और दिव्य भूमि की ओर ले चल रहे हैं, जिसका नाम सुनते ही भक्तों के हृदय में भक्ति और प्रेम की तरंगें उठने लगती हैं—राधाकुंड। यह पावन सरोवर केवल जल का एक कुंड नहीं, बल्कि राधा और कृष्ण के अलौकिक प्रेम की जीवंत गाथा है, जो सैकड़ों वर्षों से भक्तों के लिए अनंत आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
राधाकुंड का निर्माण और कथा
राधाकुंड के जल में एक अद्वितीय पवित्रता और आध्यात्मिक ऊर्जा विद्यमान है। यहां की हर लहर, हर बूंद मानो राधा-कृष्ण की लीलाओं का मौन साक्षी है। कहा जाता है कि इस कुंड का निर्माण कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि एक गहन भावनात्मक और आध्यात्मिक कथा का परिणाम है।
जब अरिष्टासुर का वध करने के बाद श्रीकृष्ण के शरीर पर पाप का दोष बताया गया, तब राधारानी ने उन्हें पवित्र स्नान करने का परामर्श दिया। अपनी सखियों के साथ राधारानी ने अपने कंगनों, चूड़ियों और आभूषणों से भूमि खोदकर एक सुंदर और दिव्य सरोवर का निर्माण किया—जो आज राधाकुंड के नाम से पूजनीय है।
श्यामकुंड का निर्माण
इसके समीप ही श्रीकृष्ण ने अपने अद्वितीय प्रेम और भक्ति को अमर करते हुए श्यामकुंड का निर्माण किया। दोनों कुंड इतने समीप हैं कि लगता है मानो राधा और कृष्ण का प्रेम स्वयं जलरूप में एक-दूसरे से मिल रहा हो।
राधाकुंड का धार्मिक महत्व
संत-महात्मा कहते हैं कि यहां किया गया एक छोटा सा हरिनाम जप या एक दीपदान भी सहस्त्रों वर्षों के पुण्य के बराबर फल देता है।
अहोई अष्टमी पर राधाकुंड की पावन रात्रि
(मथुरा) – भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के पावन गोवर्धन क्षेत्र में स्थित राधा कुंड हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को अद्वितीय आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन जाता है।
इस दिन हजारों नि:संतान दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना लेकर यहां एकत्र होते हैं—हाथों में दीप, हृदय में विश्वास और आंखों में आशा के मोती लिए।
प्राचीन मान्यता
सदियों पुरानी मान्यता के अनुसार, जो दंपत्ति अहोई अष्टमी के दिन निर्जल व्रत रखकर मध्य रात्रि (12 बजे) राधा कुंड में एक साथ स्नान करते हैं, उन्हें शीघ्र संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह विश्वास केवल कथाओं में ही नहीं, बल्कि अनेक श्रद्धालु अपने व्यक्तिगत अनुभवों से इस चमत्कारी परंपरा की पुष्टि कर चुके हैं।
राधा कुंड का आध्यात्मिक महत्व
राधा कुंड को श्री राधारानी का हृदय कहा जाता है। मान्यता है कि इसे स्वयं राधारानी ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में अपने हाथों से बनाया था।
कार्तिक मास में यहां स्नान करना विशेष पुण्यकारी माना जाता है, लेकिन अहोई अष्टमी की रात इस पवित्र स्थल की आध्यात्मिक ऊर्जा अपने चरम पर होती है।
व्रत का महत्व
यह व्रत विशेषकर मातृत्व की आकांक्षा रखने वाली स्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो पूरे दिन निर्जल रहकर अपनी भावी संतान के सुखमय जीवन की कामना करती हैं।
पर्व का अद्भुत दृश्य
इस पावन रात्रि में राधा कुंड के तट पर भजन-कीर्तन, दीपदान और साधना का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
दीपों की सुनहरी आभा में कुंड मानो स्वर्गिक ज्योति से भर उठता है।