यमुना का जलस्तर बढ़ा, गलियाँ बनीं दरिया, मथुरा की सुबह बदल गई आज तड़के सूरज उगा तो जरूर, मगर उसकी किरणें जमीन पर पहुँचने से पहले ही यमुना के फैल चुके पानी पर ठहर गईं। शहर के पुराने मोहल्ले, जहां तंग गलियाँ कभी गुलज़ार रहती थीं, अब नीले-भूरे पानी का रास्ता बन चुकी हैं। लोग छतों से झांकते दिखे, कुछ ने छोटी नावों का सहारा लिया। चौकी बाज़ार की घड़ी ने जैसे ही छह बजाए, लाउडस्पीकर से घोषणा हुई कि यमुना का जलस्तर खतरे के निशान से सवा मीटर ऊपर है। प्रशासन ने रात भर में छह जगह बैरिकेड लगाए, फिर भी पानी को रोक पाना नामुमकिन था। घरों की निचली मंज़िलें डूब चुकी हैं, दुकानों के शटर आधे बंद और आधे पानी के अंदर। **मथुरा बाढ़** इस समय हर बातचीत का पहला शब्द है, पर यहां के चेहरों पर घबराहट कम और जिज्ञासा ज्यादा दिखाई देती है।
आधे डूबे घरों में भी उम्मीद जिंदा, बृजवासी कह रहे- यमुना मैया का ही खेल
पानी कमर तक चढ़ चुका है, पर रमन रेती की 75-वर्षीय कपिला दादी मुस्कुरा कर कहती हैं, “ये तो मैया की लीला है, देखो कैसे सबको एक साथ बैठने का मौका मिला।” उनके घर का आँगन डूब गया, रसोई में बरतन तैरते दिख रहे हैं, फिर भी वे चूल्हे पर चाय चढ़ाने का इंतज़ाम करती हैं। पास ही 12-साल का मोनू स्कूल बैग को सिर पर रखे नाव की ओर भागता है, ताकि किताबें सूखी रहें। वह बताता है कि उसकी दादी ने सुबह पूजा की थाली पानी में तैराकर यमुना को अर्पित की। यहाँ का हर दूसरा घर किसी न किसी रूप में बाढ़ को उत्सव जैसा मान रहा है—कहीं लोग पानी में खड़े होकर मंगल-गीत गा रहे, कहीं बच्चे ट्यूब पकड़ कर सैर कर रहे। डर से कहीं ज्यादा, आस्था ही बातचीत पर हावी है।
संकट में श्रद्धा: नाव पर बैठकर मंदिर के दर्शन, दान का क्रम नहीं टूटा
दोपहर होते-होते द्वारकाधीश मंदिर के मुख्य द्वार तक भी पानी पहुँच गया। बावजूद इसके दर्शन रुके नहीं। पुजारी जी ने सीढ़ियों के ठीक ऊपर अस्थायी चबूतरा बना लिया है। श्रद्धालुओं की नाव आती है, वे बेल बंटाते हैं, आरती होती है और नाव दूसरी ओर सरक जाती है। मंदिर प्रबंध समिति ने “जल-दर्शन पास” का इंतज़ाम किया, ताकि एक समय में पाँच से अधिक लोग नाव लेकर अंदर न जाएँ। दिलचस्प यह कि चढ़ावे में अब नारियल या लड्डू की बजाय पानी की बोतल और मोमबत्तियाँ ज्यादा दी जा रही हैं; लोग मानते हैं कि यह संकट के समय में अधिक काम आएगा। प्रशासन ने चेतावनी दी कि धार्मिक गतिविधियों को फिलहाल सीमित रखें, पर बृजवासियों के लिए श्रद्धा रोकना आसान कहां।
राहत शिविर और प्रशासन के दावे, पर सवाल अभी बाकी हैं
जिलाधिकारी कार्यालय की रिपोर्ट बताती है कि 15 प्राथमिक विद्यालयों को राहत शिविर में बदला गया, दो मोबाइल स्वास्थ्य इकाईयाँ चलाई जा रही हैं और रोज़ाना पाँच हजार भोजन पैकेट बाँटे जा रहे हैं। ज़मीनी हकीकत थोड़ी अलग है। गोवर्धन चौराहा राहत शिविर में मिले सोहनलाल बताते हैं कि उन्होंने कल रात सिरहाने तक पानी चढ़ते देखा तो परिवार को छोड़ यहीं आ गए, लेकिन अब भी सूखा बिस्तर नहीं मिल पाया। डॉक्टरों की टीम दिन में दो बार आती है, पर मच्छरों का प्रकोप रात भर लगा रहता है। प्रशासन ने दावा किया कि हर मोहल्ले में नाव और जीवन-रक्षक जैकेट भेजे गए, पर कई जगह सिर्फ रबर ट्यूब से काम चल रहा है। सवाल यह भी उठ रहा है कि तटबंधों की मरम्मत समय पर क्यों नहीं हुई, और क्या पिछले साल जैसी स्थिति से प्रशासन ने कुछ सीखा?
बदलते मौसम का इशारा, क्या हर साल मिलेगी ऐसी बाढ़ की चुनौती?
मौसम विभाग कह रहा है कि इस बार यमुना बेसिन में औसत से 40 फ़ीसदी ज्यादा बारिश हुई और हरियाणा के हथिनी-कुंड बैराज से लगातार पानी छोड़ा गया। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के पैटर्न में तेजी से बदलाव आ रहा है। अगस्त-सितंबर में एक साथ अधिक वर्षा और पहाड़ियों से आने वाला सैलाब, दोनों मिलकर ऐसी स्थितियाँ बना रहे हैं। मथुरा-वृंदावन को धार्मिक पर्यटन का मुख्य केन्द्र माना जाता है; हर साल आने वाले लाखों श्रद्धालु अब इस नई प्राकृतिक चुनौती का सामना करेंगे। विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि नदी के पारंपरिक रास्तों और पुराने घाटों को फिर से जीवित किया जाए, ताकि पानी को फैलने की जगह मिल सके। साथ ही, आधुनिक जल-निकासी प्रणाली बनाना भी उतना ही जरूरी होगा।
बाढ़ की मार, पर आस्था अपार—मथुरा की ये कहानी यहीं नहीं रुकती
सांझ होते-होते गोकुलघाट पर आरती के वक्त दिया और पानी, दोनों एक ही सतह पर झिलमिलाते नजर आए। दूर-दूर से आए कैमरों ने इस अजीब संगम को कैद किया, पर मथुरा के लोगों के लिए यह रोज का दृश्य बन चुका है। बाढ़ ने जीवन की रफ्तार धीमी कर दी है, पर विश्वास को डिगा नहीं पाई। सवाल ढेर सारे हैं—सरकारी तैयारी से लेकर बदलते मौसम तक—लेकिन उनके बीच भी बृजवासियों की मुस्कान कायम है। शायद यही शहर की असली ताकत है। जब पानी उतरेगा, घरों की दीवारों पर दलदल का निशान रह जाएगा, मगर लोग इसे भी ‘मैय्या की रचना’ मान कर आगे बढ़ेंगे। और तब तक, नावें गलियों में चलती रहेंगी, मंदिरों की घंटियां बजती रहेंगी, तथा हर आवाज़ में यमुना मैया का नाम गूंजता रहेगा