भारत की हर रसोई में कुछ ऐसी मिठाइयाँ होती हैं जो सिर्फ खाने की चीज़ नहीं, बल्कि भावनाओं का हिस्सा बन चुकी हैं। ऐसी ही एक मिठाई है मोहनथाल। यह गुजरात और राजस्थान की पारंपरिक डिश है, लेकिन अब पूरे भारत में पसंद की जाती है। इसका स्वाद और सुगंध इतनी खास होती है कि यह हर त्योहार की शान बन जाती है।
मोहनथाल का इतिहास और परंपरा
मोहनथाल का नाम सुनते ही घी और बेसन की खुशबू दिमाग में घूमने लगती है। पुराने समय में राजघरानों और मंदिरों में मोहनथाल को भगवान श्रीकृष्ण को भोग के रूप में चढ़ाया जाता था। इसलिए इसका नाम "मोहन" (श्रीकृष्ण) और "थाल" (थाली या व्यंजन) के मेल से बना है। यह मिठाई आराधना और प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। आज भी गुजरात, राजस्थान, और उत्तर भारत के घरों में यह विशेष अवसरों और व्रत-त्योहारों पर बनाई जाती है।
मोहनथाल में लगने वाली हल्की मेहनत और खास सामग्री
कहावत है कि अच्छी चीज़ें समय लेकर बनती हैं। मोहनथाल भी उन्हीं में से एक है। इसमें थोड़ी मेहनत जरूर लगती है, लेकिन जब तैयार होकर थाल में आती है तो हर निवाले के साथ उसकी मेहनत भी मीठी लगती है।
इसे बनाने के लिए सामग्री बहुत साधारण लेकिन स्वादिष्ट होती है — बेसन, घी, चीनी, दूध और इलायची मुख्य रूप से लगते हैं। सजाने के लिए बादाम और पिस्ता का उपयोग किया जाता है। किसी-किसी जगह पर केसर या गुलाबजल भी मिलाया जाता है ताकि रंग और खुशबू दोनों बढ़ जाएं।
मोहनथाल बनाने की आसान घरेलू विधि
मोहनथाल बनाने की प्रक्रिया थोड़ी समय लेने वाली जरूर है, लेकिन कदम दर कदम चले तो इसे हर कोई बना सकता है। सबसे पहले बेसन को घी में भूनना होता है। यही इस मिठाई का असली जादू है। जब सुनहरी खुशबू आने लगे और बेसन का रंग हल्का सुनहरा हो जाए, तो उसे उतारकर थोड़ी देर ठंडा होने देते हैं। इसके बाद चीनी की चाशनी बनाई जाती है — न ज्यादा पतली, न ज्यादा गाढ़ी। एक तार की स्थिरता पर यह मीठी चाशनी तैयार करनी होती है।
अब भुना हुआ बेसन धीरे-धीरे चाशनी में मिलाया जाता है और लगातार चलाते रहना जरूरी होता है ताकि कोई गुठली न बने। जब मिश्रण गाढ़ा होने लगे और बर्तन के किनारे छोड़ दे, तभी समझिए मोहनथाल तैयार है। इसे घी से ग्रीस की हुई थाली में डालें और बादाम-पिस्ता से सजाकर ठंडा करें। जमने के बाद चौकोर टुकड़ों में काट लें।
मोहनथाल का स्वाद और सुगंध जो याद रह जाए
जब मोहनथाल का पहला टुकड़ा मुंह में जाता है, तो बेसन की महक और घी का स्वाद तुरंत दिल जीत लेता है। यह न तो रसगुल्ले की तरह बहुत मीठा होता है और न ही बर्फी की तरह सख्त। इसका ठहरावदार स्वाद बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को पसंद आता है। इसकी एक खास बात यह है कि इसे कई दिनों तक बिना फ्रिज के भी रखा जा सकता है, जिससे यह यात्रा या प्रसाद के लिए भी एकदम उपयुक्त होता है।
त्योहारों में मोहनथाल की अपनी जगह
दीवाली, जन्माष्टमी या रक्षा बंधन हो — मोहनथाल हर त्योहार की मिठाई की थाली में जरूर दिखाई देता है। गुजरात में इसे “महालक्ष्मी पूजा” के दिन खासतौर पर बनाया जाता है। वहीं राजस्थान में शादी-ब्याह और उत्सवों में इसे शुभ मिठाई माना जाता है। यह मिठाई न सिर्फ पर्व का स्वाद बढ़ाती है, बल्कि अपने घर का अपनापन भी जाहिर करती है।
मोहनथाल को परोसने और सजाने के खास तरीके
अगर आप मोहनथाल को और खूबसूरत बनाना चाहते हैं, तो उसके ऊपर चांदी का वर्क लगाएं और हल्की सी इलायची पाउडर छिड़क दें। कुछ लोग इसे सूखे मेवों के चूरन के साथ भी सजाते हैं ताकि हर टुकड़ा खास लगे। इसे गर्म दूध या चाय के साथ परोसा जाए तो स्वाद और भी बढ़ जाता है।
आज के समय में मोहनथाल की लोकप्रियता
बाजार में भले ही सैकड़ों नई मिठाइयाँ आ गई हों, लेकिन मोहनthाल आज भी अपनी पहचान बनाए हुए है। बड़ी मिठाई की दुकानों से लेकर छोटे मोहल्लों तक, हर जगह इसे पसंद किया जाता है। कई जगह तो इसे पैक करके विदेशों में भी भेजा जाता है क्योंकि भारतीय लोग विदेश में भी अपने पुराने स्वाद को याद रखते हैं।
घर पर बना मोहनथाल – स्वाद से बढ़कर एक याद
जब आप अपने हाथों से मोहनथाल बनाते हैं, तो वह स्वाद सिर्फ मिठास नहीं, बल्कि आपकी मेहनत और प्यारेपन का प्रतीक बन जाता है। बच्चे जब पूछते हैं “माँ, यह मिठाई कौन सी है?”, तो जवाब होता है — यह हमारे बचपन की याद है। इसलिए हर व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी इसे खुद बनाकर ज़रूर देखना चाहिए।
मिठास जो पीढ़ियों को जोड़ती है
मोहनथाल सिर्फ एक रेसिपी नहीं है, यह भारतीय संस्कृति और पारिवारिक परंपरा का हिस्सा है। इसकी मिठास में वो अपनापन है जो लोगों को एक साथ जोड़ देता है। चाहे त्योहार हो या पारिवारिक मिलन, मोहनथाल हर खुशियों में मिठास घोल देता है। इसलिए अगली बार जब आप कोई विशेष अवसर मनाने बैठें, तो इस पारंपरिक मिठाई का स्वाद ज़रूर शामिल करें।