जन्माष्टमी पर मुस्लिम कारीगरों की कला ठाकुरजी की पोशाकों के पीछे की कहानी
मथुरा में जन्माष्टमी का त्यौहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द्र और कला का जादू भी बिखेरता है। मुस्लिम कारीगर हर साल भगवान श्रीकृष्ण (लड्डू गोपाल) की पोशाकें तैयार करते हैं, जो रंग-बिरंगी, जरी और मोतियों से सजी होती हैं।
कला और मेहनत का संगम
पोशाकों में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों में रेशमी धागे, जरी, सेक्विन, मोती और स्टोन वर्क शामिल हैं। इनकी नाजुक कढ़ाई और खूबसूरती इतनी है कि लोग विदेशों तक से ऑर्डर करते हैं।
पीढ़ियों की सेवा
करीब पचास वर्षों से सलीम मियाँ और उनके परिवार ने ठाकुरजी की पोशाकों का निर्माण किया है। उनके अनुसार यह काम सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि सेवा है।
"हम इसे कारोबार नहीं, सेवा मानते हैं। हमारे अब्बा भी यही काम करते थे और अब हमारे बच्चे भी। हम श्रीकृष्ण को अपना भी मानते हैं।" – सलीम मियाँ
आर्थिक महत्व
मथुरा–वृंदावन में सिर्फ ठाकुरजी की पोशाकों का वार्षिक कारोबार ₹200–300 करोड़ रुपये का है। पोशाक की कीमत ₹50 से ₹12,000 तक होती है और कारीगरों की औसत मासिक आय ₹10,000–₹15,000 होती है।
एकता और समरसता का प्रतीक
यह परंपरा यह दिखाती है कि धार्मिक भेदभाव के बावजूद, ईश्वर के प्रति प्रेम और कला सभी धर्मों के लिए समान हैं। जब दुनिया के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर दूरी बढ़ रही है, मथुरा की यह तस्वीर हमें यह सिखाती है कि सेवा, श्रद्धा और कला के जरिए समाज में एकता और भाईचारा कायम रखा जा सकता है।
वैश्विक पहचान
मथुरा और वृंदावन में बनी ठाकुरजी की पोशाकें न केवल देशभर में लोकप्रिय हैं, बल्कि अमेरिका, जापान, इंग्लैंड, नेपाल और मॉरीशस जैसे देशों में भी भेजी जाती हैं।