भारतीय विज्ञापन जगत का वो जाना-माना नाम जिसने देश के विज्ञापनों को एक नई सोच और ताजगी दी, पीयूष पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे। 70 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। यह खबर सुनते ही पूरे एड जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनका जाना सिर्फ एक व्यक्ति का खोना नहीं, बल्कि एक युग का अंत है।
पीयूष पांडे की शुरुआती जिंदगी और सफर
राजस्थान के जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे शुरू से ही शब्दों और कहानियों के प्रेमी थे। उन्होंने अपनी शिक्षा सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से की। शुरुआत में वह क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें विज्ञापन की दुनिया में ला खड़ा किया। वो ओगिल्वी इंडिया (Ogilvy India) से जुड़े और धीरे-धीरे उन्होंने इस संस्था को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
विज्ञापन मास्टर जिनकी सोच ने बदली तस्वीर
विज्ञापन मास्टर कहलाने वाले पीयूष पांडे ने भारतीय विज्ञापनों को आम लोगों के दिलों से जोड़ा। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि विज्ञापन कोई महज़ बेचने का जरिया नहीं, बल्कि भावना और कहानी का माध्यम है। उनके अभियान जैसे "फेयर एंड लवली", "कैडबरी डेयरी मिल्क", और "फेवीकॉल" ने लोगों को हंसाया, रुलाया और जोड़ा भी।
फेवीकॉल के मशहूर टीवी विज्ञापन "झट से पट" से लेकर क्रिकेट मैच के दौरान चलने वाले मजेदार कैडबरी के विज्ञापन—हर जगह उनकी रचनात्मक सोच झलकती थी। उन्होंने देश के लोगों को यह समझाया कि विज्ञापन केवल बड़ी-बड़ी अंग्रेजी लाइनों से नहीं, बल्कि आम बोलचाल की भाषा से असर डाल सकते हैं।
भारतीय एड इंडस्ट्री को दी नई पहचान
पीयूष पांडे ने अपने करियर के दौरान भारतीय एड इंडस्ट्री को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुँचाया। उनके बनाए गए कई विज्ञापनों को कान्स (Cannes Lions) जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर सम्मान मिला। भारत में उन्होंने ओगिल्वी को एक रचनात्मक संस्थान के रूप में खड़ा किया।
उनके कई विज्ञापन भारत की पहचान बन गए। चाहे अमूल के मजेदार प्रिंट विज्ञापन हों या सरकार के जनसंदेश वाले कैंपेन, हर जगह उनकी सोच की छाप थी। उन्होंने लोगों को बताया कि विज्ञापन समाज की सोच बदल सकता है, व्यक्ति की भावना को छू सकता है।
सादगी से भरी शख्सियत और जोश से भरा दिल
जो लोग उन्हें जानते थे, वे कहते हैं कि पीयूष पांडे बेहद सादगी भरे इंसान थे। उनकी हंसी, उनका अंदाज और काम के प्रति उनका जुनून लोगों को प्रेरित करता था। वह युवाओं को हमेशा कहते थे कि विज्ञापन बनाना सिर्फ एक पेशा नहीं, यह एक जिम्मेदारी है — लोगों की बातों को समझने और उन्हें सच्चाई के साथ पेश करने की कला।
उनका काम करने का तरीका बहुत मानवीय था। वह हमेशा टीम को साथ लेकर चलते थे और हर विचार पर खुलकर चर्चा करते थे। उनकी यह आदत थी कि वह हर विज्ञापन को पहले इंसान की तरह महसूस करते, फिर उसे एक पेशेवर की तरह बनाते। यही कारण था कि उनके विज्ञापन सीधे दिल में उतरते थे।
कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजे गए
अपने चार दशक लंबे करियर में पीयूष पांडे को अनगिनत पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो भारत के उच्च नागरिक सम्मान में से एक है। वह एशिया के पहले व्यक्ति थे जिन्हें "Lifetime Achievement Award" कान्स लायंस में मिला। यह भारतीय विज्ञापन की दुनिया के लिए गर्व का पल था।
उन्होंने कई बार कहा था, "सम्मान तब खास होता है जब लोग आपका काम याद रखते हैं, न कि आपका चेहरा।" यही उनका नजरिया था — काम से पहचान बनाना, नाम से नहीं।
अंतिम दिनों तक जुड़े रहे अपने काम से
भले ही उनकी उम्र 70 के पार चली गई थी, लेकिन विज्ञापन मास्टर पीयूष पांडे ने कभी काम के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। आखिरी समय तक वह युवा टीमों का मार्गदर्शन करते रहे। ओगिल्वी इंडिया के चेयरमैन एमेरिटस के रूप में उन्होंने नई पीढ़ी के विज्ञापनकारों को सिखाया कि कैसे भावनाओं, संवेदनाओं और सादगी से लोगों का दिल जीता जाता है।
स्मृतियों में हमेशा रहेंगे पीयूष पांडे
उनका जाना भारतीय एड इंडस्ट्री के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। उन्होंने सिर्फ विज्ञापन नहीं बनाए, बल्कि भावनाओं की तस्वीर खींची। चाहे टीवी स्क्रीन हो या बिलबोर्ड – हर जगह उनका नाम एक मिसाल की तरह रहेगा।
पीयूष पांडे को याद करते हुए ओगिल्वी इंडिया के कई साथियों ने कहा कि उन्होंने हमें यह सिखाया कि क्रिएटिविटी कोई जादू नहीं, बल्कि यह एक सोचने का तरीका है। उनकी बनाई विज्ञापनों की कहानियां आने वाले वर्षों तक लोगों को प्रेरित करती रहेंगी।
विज्ञापन मास्टर की विरासत आगे भी जिंदा रहेगी
विज्ञापन मास्टर की विरासत केवल उनके बनाए पोस्टर्स या टीवी विज्ञापनों में नहीं, बल्कि उस सोच में भी है जो उन्होंने उद्योग को दी। उन्होंने जो रास्ता दिखाया, उसी पर आज की नई पीढ़ी के विज्ञापनकार चल रहे हैं।
उनका मानना था कि एक अच्छा विज्ञापन वही है जो लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला दे या उन्हें सोचने पर मजबूर कर दे। उनके शब्दों में, "विज्ञापन सिर्फ बिकाऊ चीज नहीं, यह लोगों की जिंदगी का हिस्सा है।"
अंतिम सलाम एक युगपुरुष को
भारतीय विज्ञापन जगत अब उनका नाम बड़े गर्व से याद करेगा। पीयूष पांडे का जाना एक अंत नहीं, बल्कि नई प्रेरणा की कहानी की शुरुआत है। उनके बनाए कैम्पेन, उनके चुने शब्द और उनकी सोच आने वाले दशकों तक भारतीय एड जगत का चेहरा बनी रहेंगी।
आज जब हम किसी सुंदर विज्ञापन को देखते हैं जो हमारे दिल को छू जाता है, तो यह समझ लेना चाहिए कि उसकी जड़ में कहीं न कहीं पीयूष पांडे की सीख छिपी है। उन्होंने हमें यह सिखाया कि विज्ञापन सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि कला है, और यह कला भारत की आत्मा से जुड़ी है।
पीयूष पांडे को भारत सदैव याद रखेगा – एक सच्चे विज्ञापन मास्टर, जिन्होंने भारतीय एड जगत का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया।












