सोशल मीडिया पर थोड़ी सी लाइक और शेयर पाने के लिए अक्सर लोग रेलवे ट्रैक या प्लेटफॉर्म पर कैमरा निकाल लेते हैं. दिखाई तो देता है कि बस कुछ सेकेंड की शूट है, लेकिन इस छोटी सी रील के पीछे कानून का बड़ा डंडा छिपा है. भारतीय रेलवे एक्ट साफ कहता है कि स्टेशन, ट्रैक या पुल के भीतर बिना लिखित अनुमति के किसी भी तरह की शूटिंग करना अपराध है. इस गलती पर न सिर्फ भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है, बल्कि जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है. आइये समझते हैं कि मामला इतना गंभीर क्यों है और आप कैसे बच सकते हैं.
रेलवे एक्ट में छिपे सख्त नियम जिन्हें अधिकांश लोग भूल जाते हैं
भारतीय रेलवे एक्ट, 1989 की धारा 143 से 147 तक उन गतिविधियों का ज़िक्र करती है जिन्हें बिना मंजूरी करने पर दंड तय है. इसमें प्लेटफॉर्म पर कैमरा लेकर घूमना, ट्रैक पर उतर कर शूटिंग करना, या ट्रेन के बहुत नज़दीक पहुंच कर पोज़ बनाना भी शामिल है. कानून कहता है कि ऐसा करते पकड़े जाने पर 1,000 से 5,000 रुपये तक का जुर्माना लग सकता है.
यहां तक कि अगर कोई दोबारा पकड़ा जाता है तो जुर्माने के साथ छह महीने तक की जेल का प्रावधान भी है. रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) और Government Railway Police (GRP) को मौके पर ही गिरफ्तारी का अधिकार है. कई बार युवाओं को लगता है कि वीडियो डिलीट कर देने से मामला खत्म हो जाएगा, लेकिन प्रक्रिया शुरू होने के बाद वीडियो हटाना भी राहत नहीं दिला पाता.
कानून का मकसद केवल आय का स्रोत बनाना नहीं है. असली चिंता यात्रियों की सुरक्षा, ट्रेन संचालन की निरंतरता और रेलवे संपत्ति को नुकसान से बचाना है. प्लेटफॉर्म पर भीड़ बढ़ने से अक्सर भगदड़ की स्थिति बन जाती है, जिससे हादसे का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
कैमरा ऑन करते ही आपको घेर सकती है आरपीएफ, जुर्माना और जेल दोनों तय
आरपीएफ के सिपाही लगातार प्लेटफॉर्म और ट्रैक पर निगाह रखते हैं. सीसीटीवी और वॉकी-टॉकी की मदद से संदिग्ध गतिविधि की सूचना फौरन कंट्रोल रूम पहुंचती है. जैसे ही कोई शख्स ट्रेंडिंग गाना बजाकर रील बनाने को फोन उठाता है, स्टाफ अलर्ट हो जाता है. ऐसे मामलों में पूछताछ, पहचान पत्र जाँच और फिर चालान की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
कई उदाहरण सामने आए हैं जहां छात्रों ने मस्ती-मजाक में रील बनाई और उसी दिन थाने पहुंच गए. काशी, मुंबई सेंट्रल, हावड़ा, दिल्ली जंक्शन—सभी बड़े स्टेशनों पर रोज़ाना ऐसे मामलों में चालान कट रहे हैं. सादे कपड़ों में तैनात कर्मी भीड़ में मिलकर निगरानी करते हैं, इसलिए कैमरे से बच निकलना लगभग नामुमकिन है.
याद रखिए, रेलवे स्टेशन पर रील बनाते वक्त अगर आपके साथ बच्चे या बुज़ुर्ग भी हों, तो पूरे परिवार को स्टेशन मास्टर के ऑफिस तक ले जाया जा सकता है. इससे न सिर्फ आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि सामाजिक बदनामी भी झेलनी पड़ती है.
अनुमति के बिना शूटिंग क्यों है अपराध, रेलवे का तर्क क्या कहता है
रेलवे के अनुसार प्लेटफॉर्म पर हर मिनट यात्रियों का भारी आवागमन रहता है. कोई भी अतिरिक्त भीड़ या अचानक का शोर ट्रेन संचालन को बाधित कर सकता है. रील बनाते समय लोग ट्रैक के बहुत नज़दीक खड़े हो जाते हैं, जिससे ड्राइवर की विज़िबिलिटी कम हो जाती है. इससे इमरजेंसी ब्रेक लगाने की नौबत आ सकती है, जो सैकड़ों यात्रियों की जान संकट में डाल देता है.
रेलवे संपत्ति भी राष्ट्रीय संपत्ति है. पिलर, पोल, इलेक्ट्रिक वायर या सिग्नल पर चढ़ कर शॉट लेने से उपकरणों को नुकसान पहुंच सकता है. अगर कोई हादसा हो जाए तो बीमा कवरेज भी अवैध गतिविधि के चलते अमान्य माना जाता है. इसीलिए रेलवे ने बिना परमिट शूटिंग को आपराधिक श्रेणी में रखा है.
मीडिया हाउस, डॉक्यूमेंट्री मेकर या फिल्म यूनिट को भी पहले फॉर्म भर कर सुरक्षा शुल्क जमा करना पड़ता है. उन्हें निश्चित समय, प्लेटफॉर्म नंबर और क्रू सदस्यों की संख्या तक बतानी होती है. रेलवे कहता है—जब प्रोफेशनल यूनिट को मंजूरी लेनी पड़ती है तो सोशल मीडिया क्रिएटर को छूट कैसे दी जाए?
सोशल मीडिया की दौड़ और पुलिस केस के बीच कहाँ खड़ा है आपका शौक
इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स और फेसबुक वीडियो की दुनिया में ‘वायरल’ होना नया क्रेज़ है. लेकिन कुछ सेकेंड के फेम के लिए कानून तोड़ना समझदारी नहीं. आजकल ऑडियंस भी जागरूक है; उसे अगर पता चले कि वीडियो गैरकानूनी जगह पर शूट हुआ है तो नेगेटिव कमेंट्स की बाढ़ आ सकती है. साथ ही, प्लेटफॉर्म की पॉलिसी भी ऐसी सामग्री पर पाबंदी लगा सकती है.
मार्केटिंग एक्सपर्ट मानते हैं कि रोज़मर्रा के सादे लोकेशन पर भी क्रिएटिव वीडियो बन सकते हैं. पब्लिक पार्क, होम सेट-अप या स्टूडियो लाइट में बढ़िया कंटेंट तैयार करना संभव है. कैमरा हैंडलिंग, स्क्रिप्ट और एडिटिंग पर ध्यान दें; लोकेशन के लिए कानून तोड़ना अनिवार्य नहीं.
पुलिस केस का हर्जाना केवल जुर्माना भरने तक सीमित नहीं. कोर्ट में पेशी, वकील की फीस, और फिर पुलिस वेरिफिकेशन जैसी बाधाएं भविष्य की नौकरी या वीज़ा प्रक्रिया तक प्रभावित कर सकती हैं. एक छोटी सी चूक जीवन-भर का टैग बन सकती है.
सेल्फी सेफ्टी: स्टेशन पर रील बनाने से बेहतर विकल्प क्या हैं
अगर आपकी कहानी में ट्रेन जरूरी है तो लाइसेंस प्राप्त मॉडल रेल म्यूज़ियम या थीम पार्क का विकल्प चुनें, जहां शूटिंग की अनुमति मिल जाती है. कई शहरों में पुराने इंजन को प्रदर्शनी के तौर पर सजाया गया है; वहां टिकट लेकर आप आराम से शूट कर सकते हैं. यह किफ़ायती भी है और कानूनी भी.
यात्रा ब्लॉग बनाना चाहते हैं? तो सफर के बाद ट्रेन से उतर कर बाहर निकलते ही आसपास का व्यू रिकॉर्ड करें. टिकट काउंटर, एस्केलेटर, पार्किंग एरिया—ये सब सार्वजनिक जगहें हैं, जहां कोई रोक-टोक नहीं. ट्रेन के सफर को दिखाने के लिए विंडो शॉट लें, पर खिड़की से हाथ या मोबाइल बाहर न निकालें.
आख़िर में याद रखिए, रील बनाने का मकसद मनोरंजन और जानकारी देना है. अगर वही रील आपकी पहचान को नुकसान पहुंचा दे या आपको जेल भिजवा दे तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है. थोड़ी सी सावधानी आपको भारी मुसीबत से बचा सकती है. इसलिए अगली बार ट्रिप प्लान करें तो लोकेशन का नियम पहले पढ़ें, फिर शूटिंग का प्लान बनाएं.