तिरुपति मंदिर बोर्ड का भूमि विनिमय समझौता विवादों में
तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) एक बार फिर से बड़े विवाद में घिर गया है। इस बार मामला भूमि अदला-बदली से जुड़ा है। दरअसल, टीटीडी के पूर्व अध्यक्ष भुमना करुणाकर रेड्डी ने गंभीर आरोप लगाया है कि हाल ही में आंध्र प्रदेश पर्यटन प्राधिकरण (एपीटीए) के साथ हुआ भूमि विनिमय समझौता किसी घोटाले से कम नहीं है। उनका कहना है कि इस करार से मंदिर को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ेगा और असली फ़ायदा निजी होटल समूह को पहुँचाया जा रहा है।
विवाद की जड़ कहाँ है?
मामला दो ज़मीनों की अदला-बदली का है। टीटीडी ने तिरुपति शहर की सीमा पर स्थित अपनी क़ीमती 25 एकड़ ज़मीन दी है और बदले में पेरूरु गाँव की 24.68 एकड़ ज़मीन ली है, जो अपेक्षाकृत ग्रामीण क्षेत्र में आती है।रेड्डी और उनके समर्थकों का कहना है कि ये अदला-बदली दरअसल ओबेरॉय समूह को बचाने और पुराने विवाद को सुलझाने की एक चाल है।
ओबेरॉय होटल प्रोजेक्ट से जुड़ा विवाद
दरअसल, यह पूरा मामला नया नहीं है। 24 नवंबर, 2021 को पिछली वाईएसआरसीपी सरकार ने ओबेरॉय समूह को अलीपिरी में 20 एकड़ ज़मीन होटल बनाने के लिए दी थी। लेकिन हजारों श्रद्धालु और कई हिंदू संगठन इसका विरोध करने लगे। उनका कहना था कि तिरुमाला की पवित्र पहाड़ियों के आसपास किसी भी तरह के व्यावसायिक होटल का निर्माण धार्मिक आस्था का अपमान होगा।
लगातार बढ़ते विरोध को देखते हुए, मार्च 2025 में नई बनी चंद्रबाबू नायडू सरकार ने उस होटल परियोजना की मंज़ूरी ही रद्द कर दी। इसके बाद टीटीडी ने सरकार से कई प्रस्ताव रखकर माँग की कि वह पवित्र भूमि वापस मंदिर बोर्ड को सौंप दी जाए।
भूमि विनिमय समझौता कैसे हुआ?
18 नवंबर, 2024 को टीटीडी ने प्रस्ताव पारित कर सरकार से औपचारिक रूप से माँग की कि विवादित ज़मीन ओबेरॉय समूह को न देकर टीटीडी को दी जाए।इसके बाद 7 मई, 2025 को पर्यटन विभाग और टीटीडी के बीच भूमि अदला-बदली के एक प्रारंभिक समझौते पर सहमति बनी, जिसे 22 जुलाई, 2025 को अंतिम रूप दिया गया।
टीटीडी का पक्ष
टीटीडी ने सभी आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया है। बोर्ड का कहना है कि जिस भूमि को उन्होंने पर्यटन विभाग से लिया है, वह तिरुमला पहाड़ियों से सटी हुई है। आगे चलकर यहाँ श्रद्धालुओं के लिए नई सुविधाएँ और व्यवस्थाएँ बनाई जा सकती हैं। इसके विपरीत, जिस ज़मीन को पर्यटन विभाग को दिया गया है, वहाँ पहले से ही निर्माण कार्य जारी है और उसका धार्मिक महत्व भी अपेक्षाकृत कम है।
बोर्ड का दावा है कि यह विनिमय पूरी तरह से तिरुमला की पवित्रता की रक्षा और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए किया गया है। ऐसे में इसे राजनीतिक रंग देना अनुचित है।