अमेरिकी राजनीति और भारतवंशी समुदाय के बीच जुड़ा एक नया विवाद सामने आया है। डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के दौरान टैरिफ नीति पर विवादास्पद बयान जारी करने वाले पीटर नवारो की हालिया टिप्पणी ने अमेरिकी हिंदू समुदाय को आक्रोशित कर दिया। नवारो ने 'ब्राह्मणों को लाभ पहुंचाने' जैसी टिप्पणी की, जिसे कई हिंदू संगठनों ने न केवल आपत्तिजनक बल्कि 'हिंदूफोबिक' करार दिया। इस मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक पहचान और राजनीति में कटुता बढ़ाने की चर्चा को जन्म दिया है।
पीटर नवारो की विवादित टिप्पणी
पीटर नवारो, जो डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के दौरान व्यापार सलाहकार रहे, ने हाल ही में एक बयान में कहा कि ट्रम्प सरकार की कुछ टैरिफ नीतियां 'भारत के ब्राह्मणों या उच्च जाति के लोगों' को लाभ पहुंचाती हैं। इस टिप्पणी को कई लोगों ने जातीय और धार्मिक पूर्वाग्रह से प्रेरित बताया। आलोचकों का कहना है कि इसका उद्देश्य भारतवंशी समुदाय को विभाजित दिखाना और अमेरिकी समाज में हिंदू पहचान को कमजोर करना है।
हिंदू संगठनों की प्रतिक्रिया
अमेरिका के कई प्रमुख हिंदू संगठनों जैसे हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन और ग्लोबल हिंदू काउंसिल ने इस बयान की कड़ी निंदा की। उनका कहना है कि 'ब्राह्मण' का जिक्र कर नवारो ने न केवल भारतीय समाज की जटिलताओं को गलत ढंग से प्रस्तुत किया बल्कि इसे राजनीतिक हथियार बनाने की कोशिश की। इन संगठनों ने इसे 'हिंदूफोबिया का हथियारबंद इस्तेमाल' कहा। उनका मानना है कि इस तरह के बयान अमेरिकी हिंदुओं को निशाना बनाते हैं और उनके खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा दे सकते हैं।
हिंदूफोबिया पर बहस
अमेरिका में भारतीय और विशेष रूप से हिंदू समुदाय कई बार 'हिंदूफोबिया' का शिकार होने की बात उठाता रहा है। विश्वविद्यालय परिसरों और राजनीतिक बहसों में हिंदू पहचान पर सवाल उठाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। नवारो की टिप्पणी ने इसी बहस को और गहरा कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि धर्म और जाति का राजनीतिक लाभ उठाना समाज को और ज्यादा विभाजित कर सकता है।
ट्रम्प प्रशासन की पृष्ठभूमि
डोनाल्ड ट्रम्प के शासनकाल में अमेरिकी व्यापार नीतियों में कई बदलाव हुए थे, जिनमें भारत पर टैरिफ लगाना भी शामिल था। नवारो इन नीतियों के प्रमुख समर्थक थे। वह चीन और भारत के खिलाफ कठोर रुख अपनाने के लिए जाने जाते थे। अब जाकर उनकी इस बयानबाजी ने फिर से पुराने जख्म कुरेद दिए हैं। भारतीय-अमेरिकी समुदाय, जो अमेरिका में तेजी से प्रभावी वर्ग बन रहा है, इस पर बेहद नाराज है।
अमेरिकी राजनीति और भारतीय-अमेरिकी समुदाय
भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिकी राजनीति में धीरे-धीरे प्रभावी होता जा रहा है। चाहे ट्रम्प हो या बाइडेन, दोनों प्रशासन ने इस समुदाय से जुड़ाव बनाए रखने की कोशिश की। लेकिन इस तरह की टिप्पणियां उस भरोसे को कमजोर करती हैं। नवारो का बयान यह संकेत देता है कि अभी भी राजनीतिक वर्ग भारतीय समाज के भीतर की विविधताओं को समझने के बजाय सतही और पूर्वाग्रहपूर्ण नजर से देख रहा है।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर असर
यह विवाद केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहा। भारत में भी इस बयान पर प्रतिक्रिया सामने आई। कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इसे अमेरिका में भारतीयों के खिलाफ बढ़ते पूर्वाग्रह का उदाहरण कहा। विदेश मंत्रालय ने हालांकि आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन अंदरखाने इसे चिंता का विषय माना जा रहा है। इस तरह की टिप्पणियां दो देशों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्तों को प्रभावित कर सकती हैं।
मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका
नवारो का बयान मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बन गया। ट्विटर और अन्य प्लेटफॉर्म पर हजारों लोगों ने इस बयान की आलोचना की। हैशटैग #StopHinduphobia और #RespectHindus तेजी से ट्रेंड करने लगे। कई अमेरिकी सांसदों ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि किसी भी समुदाय को इस तरह निशाना बनाना गलत है।
शैक्षणिक जगत और हिंदू पहचान
अमेरिकी विश्वविद्यालयों में लंबे समय से हिंदू पहचान पर सवाल उठते रहे हैं। कई बार यह दावा किया गया कि हिंदू धर्म और उसकी परंपराओं को नकारात्मक ढंग से पेश किया जाता है। नवारो के बयान ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है कि मुख्यधारा अमेरिकी समाज हिंदुओं को लेकर एकतरफा धारणा बना रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में मामला
दिलचस्प रूप से यह मुद्दा भारत के सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा है। कुछ संगठनों ने याचिका दायर कर कहा है कि अमेरिकी नेताओं और अधिकारियों के ऐसे बयान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 में निहित धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान पर अप्रत्यक्ष आघात हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है और कहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नागरिकों की गरिमा और धार्मिक पहचान की रक्षा करना जरूरी है।
हिंदू समुदाय की अपेक्षाएं
भारतीय-अमेरिकी हिंदुओं की अपेक्षा है कि न केवल अमेरिका बल्कि भारत सरकार भी इस मामले पर स्पष्ट रुख अपनाए। उनका कहना है कि हिंदूफोबिया केवल लेबल नहीं बल्कि वास्तविकता है, जिसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। समुदाय चाहता है कि इस तरह के बयानों पर राजनयिक स्तर पर आपत्ति दर्ज की जाए और अमेरिकी राजनीति में हिंदुओं के प्रति सम्मानजनक वातावरण बनाया जाए।