पिछले कुछ वर्षों में तकनीक के क्षेत्र में सेमीकंडक्टर की भूमिका लगातार बढ़ी है। मोबाइल फोन से लेकर कंप्यूटर, कार से लेकर घरेलू उपकरण तक, हर जगह सेमीकंडक्टर चिप की ज़रूरत है। वैश्विक स्तर पर इस उद्योग की मांग इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इसे 21वीं सदी का "तेल" कहा जा रहा है। सवाल यह है कि इस मुश्किल और महंगी दौड़ में भारत कितना मज़बूत है और दुनिया के बड़े बाज़ार में उसका स्थान कहाँ है।
सेमीकंडक्टर दुनिया का सबसे अहम उद्योग बन चुका है और भारत इसमें अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है
आज दुनिया के हर कोने में सेमीकंडक्टर उद्योग को सबसे अहम माना जाता है। अमेरिका, ताइवान, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया इस क्षेत्र में सबसे आगे हैं। भारत ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं और सरकार ने कई बार कहा है कि देश को इस उद्योग का वैश्विक हब बनाया जाएगा। इसके लिए बड़े निवेश और नीति सुधारों का काम जारी है।
दुनिया की सप्लाई चेन में सेमीकंडक्टर की अहमियत और भारत की चुनौती
सेमीकंडक्टर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनके बिना कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन ठीक से काम नहीं कर सकती। यही कारण है कि कोरोना महामारी के दौरान जब उत्पादन प्रभावित हुआ तो पूरी दुनिया की सप्लाई चेन हिल गई। कार कंपनियों से लेकर मोबाइल निर्माता तक सभी प्रभावित हुए। भारत के सामने चुनौती यह है कि अभी तक वह ज्यादातर चिप्स आयात पर निर्भर है, जबकि उसकी घरेलू मांग दिन-ब-दिन बढ़ रही है।
भारत की नीतियां और सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर मिशन की शुरुआत
पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए "सेमीकंडक्टर मिशन" की शुरुआत की। इसके तहत 70 हजार करोड़ रुपये का प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया गया ताकि कंपनियां भारत में निवेश कर सकें। गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में सेमीकंडक्टर पार्क बनाने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है।
वैश्विक खिलाड़ी भारत की जमीन पर फैक्ट्री लगाने में रुचि दिखा रहे हैं
ताइवान की टीएसएमसी, अमेरिका की इंटेल और दक्षिण कोरिया की सैमसंग जैसी कंपनियां दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता हैं। भारत ने इन कंपनियों के साथ बातचीत शुरू की है और कई ग्लोबल खिलाड़ी भारत में निवेश करने के लिए इच्छुक दिख रहे हैं। हालांकि, अभी भी बड़ी फैक्ट्री यानी "फैब यूनिट्स" बनाने का काम शुरुआती दौर में है।
तकनीकी ज्ञान, कुशल कामगार और अनुसंधान भारत की सबसे बड़ी ताकत साबित हो सकते हैं
भारत के पास एक बड़ा लाभ है कि यहां तकनीकी शिक्षा और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भारी संख्या में नए लोग आते हैं। दुनिया की कई बड़ी टेक कंपनियों में काम करने वाले भारतीय इंजीनियर सेमीकंडक्टर तकनीक से भली-भांति परिचित हैं। अगर इस ज्ञान का सही उपयोग किया जाए तो भारत इस क्षेत्र में तेजी से अपनी पकड़ बना सकता है।
देश की कमजोर कड़ी है भारी निवेश और लंबे समय की जमीन तैयार करना
सेमीकंडक्टर उद्योग सबसे महंगा और पूंजी-गहन उद्योग माना जाता है। एक चिप बनाने वाली फैक्ट्री की लागत अरबों डॉलर में होती है और इसे खड़ा करने में पांच से सात साल का समय लग जाता है। भारत की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इतने बड़े निवेश को आकर्षित करना और लंबे समय तक धैर्य से परियोजनाओं को पूरा करना।
भारत की कंपनियां भी इस दौड़ में उतर रही हैं और सरकार से समर्थन मांग रही हैं
भारतीय कंपनियां जैसे वेदांता, टाटा ग्रुप और रिलायंस ने सेमीकंडक्टर निर्माण में कूदने की इच्छा जताई है। वे सरकार के साथ मिलकर काम कर रही हैं ताकि भारत धीरे-धीरे आयात पर निर्भरता कम करके घरेलू उत्पादन बढ़ा सके। यह कदम भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा संकेत है।
दुनिया में भारत की स्थिति और आगे की राह को लेकर उम्मीदें और सवाल दोनों
दुनिया में इस समय सेमीकंडक्टर की सबसे अधिक मांग है और इसमें भारत की यात्रा अभी नई है। जहां एक ओर मौजूदा हालात बताते हैं कि भारत अभी पीछे है, वहीं दूसरी ओर विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले 10 वर्षों में भारत बड़े खिलाड़ियों की कतार में शामिल हो सकता है। यह पूरी तरह इस पर निर्भर करेगा कि निवेश, रणनीति और तकनीक को कैसे जोड़ा जाता है।