दाऊजी के रूप में राधा रानी – वृंदावन की अनुपम लीला का केंद्र बना गोरे दाऊजी मंदिर
वृंदावन का आध्यात्मिक आकर्षण
वृंदावन, वह पावन धाम, जहां हर गली, हर कण में राधा-कृष्ण की लीलाओं की गूंज सुनाई देती है। यहां की हवा में कान्हा की बांसुरी का मधुर स्वर घुला हुआ है और प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक राधा रानी का नाम हर भक्त के हृदय में बसता है।
गोरे दाऊजी मंदिर – बलराम जी और राधा रानी की अद्भुत उपस्थिति
वृंदावन के परिक्रमा मार्ग पर स्थित गोरे दाऊजी मंदिर अपने आप में अनूठा है। यहां भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलराम जी विराजमान हैं, लेकिन इस मंदिर से जुड़ी एक ऐसी कथा है जो इसे अद्वितीय बना देती है।
मंदिर के महंत गोविंद दास महाराज बताते हैं कि यह स्थान केवल दाऊजी की उपस्थिति का प्रतीक नहीं, बल्कि वह स्थल है जहां राधा रानी ने स्वयं दाऊजी का रूप धारण कर अद्भुत लीला रची थी।
द्वापर युग की लीला – जब राधा रानी बनीं दाऊजी
द्वापर युग में एक दिन श्रीकृष्ण गौचारण के लिए यमुना तट की ओर गए, लेकिन बलराम जी किसी कारणवश उनके साथ नहीं गए। जब यह समाचार राधा रानी तक पहुंचा, तो उनकी सखियों ने उन्हें यह बताया।
राधा रानी ने हंसते हुए एक दिव्य लीला रचने का निश्चय किया। उन्होंने बलराम जी का रूप धारण किया और यमुना तट पर श्रीकृष्ण के पास पहुंच गईं।
कृष्ण की हैरानी और रहस्य का खुलासा
कृष्ण ने आश्चर्य से पूछा,
"दादा, आपने तो मना किया था, फिर यहां कैसे आ गए?"
खेल-खेल में कृष्ण ने ‘दादा’ का हाथ थामा, लेकिन तभी उन्हें महसूस हुआ कि यह स्पर्श तो परिचित है — यह दाऊजी का नहीं, बल्कि राधा रानी का है। इस क्षण में श्रीकृष्ण मुस्कुराए और लीला का रहस्य उजागर हो गया।
आज भी जीवित है यह परंपरा
तभी से यह स्थान राधा रानी की लीलामयी उपस्थिति का प्रमाण बन गया। आज भी जब श्रद्धालु गोरे दाऊजी मंदिर में दर्शन करते हैं, तो वे केवल बलराम जी की मूर्ति नहीं देखते, बल्कि उस दिव्य क्षण की अनुभूति करते हैं, जब राधा रानी ने स्वयं दाऊजी का रूप धारण किया था।
भक्तों के लिए संदेश
यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति और प्रेम की कोई सीमा नहीं होती। राधा रानी का यह रूपांतरण केवल एक लीला नहीं, बल्कि इस बात का प्रमाण है कि भगवान और उनके प्रिय भक्तों के बीच संबंध सदा प्रेम और आनंद से भरे रहते हैं।