AI की गूंज से बदल रहा है युद्ध का मैदान, भारत पूरी तरह तैयार बीते कुछ वर्षों में इंडियन आर्मी, नेवी और एयरफोर्स ने पारंपरिक हथियारों से आगे बढ़कर कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी AI को अपने रणनीतिक तंत्र में शामिल करना शुरू कर दिया है। यह बदलाव सिर्फ तकनीक जोड़ने तक सीमित नहीं है; इससे युद्धक्षेत्र की पूरी परिभाषा बदल रही है। अब हमारे सैनिकों को ऐसे उपकरण मिल रहे हैं जो तुरंत डेटा पढ़कर निर्णय लेने में मदद करते हैं। इससे मिशन तेज़, सुरक्षित और सटीक हो रहे हैं।
ड्रोन से लेकर अंडरवॉटर रोबोट तक, हर मोर्चे पर AI का असर
सेना के आसमान में मंडराते ड्रोन अब सिर्फ निगरानी के लिए नहीं हैं। यह छोटे आकार के स्वचालित विमान लगातार वीडियो फ़ीड भेजते हैं, दुश्मन की हलचल पहचानते हैं और खतरा आते ही चेतावनी जारी करते हैं। नेवी ने स्वचलित अंडरवॉटर रोबोट तैनात किए हैं जो समुद्र में छिपी पनडुब्बियों का सुराग तलाशते हैं। एयरफोर्स की नई फाइटर जेट सीरीज़ में AI-चालित रडार है जो पलभर में लक्ष्य को लॉक कर देती है। यह तीनों अंगों को एक साझा डिजिटल नेटवर्क में जोड़ता है, जिससे सूचनाएँ रियल टाइम में पहुँचती हैं।
डेटा सेंटर से रणक्षेत्र तक सेना की डिजिटल रीढ़
AI उपकरण तभी कामयाब होते हैं जब उनके पीछे मज़बूत डेटा सेंटर हों। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में राजस्थान और कर्नाटक में आधुनिक डेटा हब स्थापित किए हैं। ये हब उपग्रह, रडार और जमीनी सेंसर से आने वाले करोड़ों डेटा बिंदुओं को संग्रहीत कर त्वरित विश्लेषण करते हैं। परिणामस्वरूप कमांडर के पास मिशन शुरू होने से पहले ही मौसम, दुश्मन की लोकेशन और जमीनी हालात की पूरी तस्वीर मौजूद रहती है।
सुरक्षा बढ़ाने के साथ जवानों की जान बचाना मुख्य लक्ष्य
AI की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह जोखिम वाले काम इंसानों की जगह कर सकता है। बॉर्डर पर बिछी स्मार्ट बाड़ में लगे सेंसर रात के अँधेरे में हलचल पकड़ लेते हैं और अगले ही क्षण नज़दीकी पोस्ट को अलर्ट भेजते हैं। इससे फायरिंग की ज़रूरत घटती है और हमारी टुकड़ियाँ सुरक्षित रहती हैं। ऐसे ही, नेवी के स्वचालित खोजी जहाज़ खतरनाक इलाकों में माइन साफ़ करने में मदद कर रहे हैं, जिससे गोताखोरों को जीवन जोखिम में नहीं डालना पड़ता।
वैश्विक मंच पर भारत का बढ़ता दबदबा
जब संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारतीय टुकड़ियाँ अपने AI-समर्थित संचार सिस्टम के साथ पहुँचीं, तो कई देशों ने इसकी तारीफ़ की। हाल ही में आयोजित इंडो-पैसिफिक डिफेंस कॉन्फ्रेंस में भारत के AI-चलित कमांड प्लेटफ़ॉर्म ने अलग पहचान बनाई। इससे साफ़ है कि तकनीक अपनाने की रफ़्तार ने भारत को वैश्विक सैन्य मानचित्र पर एक नई ऊँचाई दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले पाँच साल में भारतीय रक्षा निर्यात में 40 प्रतिशत तक उछाल आ सकता है क्योंकि दुनिया भारतीय डिफेंस-टेक सॉल्यूशन को खरीदना चाहती है।
रक्षा अनुसंधान में निजी कंपनियों और स्टार्ट-अप की एंट्री
पहले रक्षा अनुसंधान सरकारी प्रयोगशालाओं तक सीमित रहता था, लेकिन अब बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद के स्टार्ट-अप AI आधारित समाधान बना रहे हैं। एक स्टार्ट-अप ने ऐसा सॉफ़्टवेयर तैयार किया है जो ड्रोन के कैमरे से मिली तस्वीरों में छिपे धमकी भरे पैटर्न पढ़ लेता है। दूसरी ओर, एक निजी कंपनी ने AI-समर्थित हेलमेट विकसित किया है जो जवान की थकान और पल्स रेट मापकर कमांड सेंटर को सतर्क करता है। इस सहयोगी माहौल से भारत का इनोवेशन इकोसिस्टम भी मजबूत हो रहा है।
युद्ध नहीं, शांति का प्रहरी AI का मानवीय पहलू
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि AI सिर्फ हमले का साधन नहीं है। यह आपदा राहत और मानवीय मदद में भी अहम है। केरल में आई बाढ़ के दौरान सेना ने AI-ड्रोन से प्रभावित इलाकों का नक्शा बनाया, जिसके आधार पर राहत सामग्री सही जगह पहुँचाई गई। उत्तराखंड के पहाड़ों में भूस्खलन के बाद AI-आधारित भू-सेंसर ने समय रहते खतरे का संकेत दिया और दर्जनों जानें बचाईं। ऐसे उदाहरण दिखाते हैं कि तकनीक युद्ध से ज़्यादा मानवता की सेवा कर सकती है।
भविष्य की झलक स्वचालित टैंक से लेजर शील्ड तक
रक्षा शोधकर्ता पहले से ही अगली पीढ़ी के स्वचालित टैंक, लेजर शील्ड और हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम कर रहे हैं। यहाँ AI का उपयोग लक्ष्य पहचान, मार्ग निर्देशन और आत्मरक्षा प्रणालियों में होगा। माना जा रहा है कि 2030 तक सेना के पास ऐसे टैंक होंगे जो खुद तय करेंगे कि किस दिशा में बढ़ना सुरक्षित है। एयरफोर्स भी AI-युक्त लेजर शील्ड पर काम कर रही है जो आने वाली मिसाइल को रास्ते में ही निष्क्रिय कर देगी।
चुनौतियाँ भी कम नहीं, लेकिन समाधान तैयार
AI सिस्टम साइबर हमलों के लिए आकर्षक निशाना बन सकते हैं। इसी कारण रक्षा साइबर कमांड 24×7 निगरानी करता है और हर अपडेट को कई स्तरों पर सत्यापित करता है। दूसरा पहलू है डेटा की गोपनीयता। सरकार ने क्लियर गाइडलाइन जारी की है कि संवेदनशील जानकारी केवल भारत स्थित सर्वर पर ही रहेगी। साथ-साथ, जवानों को नए तकनीकी उपकरणों की नियमित ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि वे तकनीक पर निर्भर रहने के बजाय उसे नियंत्रित कर सकें।