छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? जानिए इसका धार्मिक इतिहास और छिपा महत्व
भोर का वक्त। नदी किनारे की हवा में ठंडक और गीतों की मीठी गूंज। जल में उतरे व्रती, माथे पर दीया, आँखों में भक्ति की लाली। यह नज़ारा देख बस मन कह देता है – छठ पूजा आ गई। यह त्योहार इतना सरल है, फिर भी इतना गहरा। कोई शोर नहीं, कोई प्रदर्शन नहीं, बस आस्था की रोशनी जो हर चेहरे से झलकती है।
छठ पूजा का शुरू होना – बहुत पुरानी कहानी
कहा जाता है कि छठ पूजा सबसे पहले वैदिक काल में शुरू हुई। लोग तब प्रकृति की पूजा करते थे, सूरज को जीवन का आधार मानते थे। बाद में यह पूजा सिर्फ श्रद्धा नहीं, अनुशासन का प्रतीक बन गई। माना जाता है यह वो वक्त था जब मनुष्य ने सीखा – प्रकृति से रिश्ता बनाकर ही जीवन में संतुलन लाया जा सकता है।
रामायण का किस्सा जहां से छठ की परंपरा जुड़ी
पुराणों में वर्णन है कि जब भगवान राम चौदह साल का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे, तब माता सीता ने सूर्य देव की पूजा की थी। वह दिन था कार्तिक शुक्ल षष्ठी। लोगों का मानना है, यही दिन आगे चलकर छठ पूजा के रूप में जाना गया। सीता माता ने परिवार की सुख-शांति और देश के कल्याण की कामना की थी।
महाभारत में भी छठ की गूंज
महाभारत में भी छठ का ज़िक्र मिलता है। कथा है कि कर्ण प्रतिदिन भोर में उठकर नदी में स्नान करते और सूर्य देव को अर्घ्य देते। उसी असीम भक्ति से उन्हें शक्ति और तेज मिला। शायद इसलिए उन्हें ‘सूर्यपुत्र’ कहा गया। छठ पूजा उन सनातन भावनाओं की याद है, जब आस्था और प्रकृति साथ चलती थी।
इस पूजा का असली अर्थ
आम तौर पर लोग कहते हैं यह सूर्य की पूजा है, पर असल में यह जीवन की कृतज्ञता का पर्व है। छठ पूजा हमें सिखाती है कि जो मिला है, उसके लिए धन्यवाद जरूरी है। नदी, हवा, मिट्टी, सूरज – यही हमारे अस्तित्व की जड़ें हैं। यह पूजा बताती है, ईश्वर की आराधना दिखावे में नहीं, सादगी में है।
चार दिन की कड़ी साधना
यह पर्व जितना सुंदर है, उतना ही कठिन भी। चार दिनों तक व्रती तपस्या करते हैं। पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, फिर संध्या अर्घ्य और आखिर में उषा अर्घ्य। सब कुछ नियम से, बिना शोर। छठ पूजा में व्रती पूरी शुद्धता के साथ जल में खड़े होकर सूर्य को जल अर्पण करते हैं। उनके चेहरे की संतुष्टि में भक्ति का असली रूप दिखाई देता है।
छठ मइया कौन हैं
छठ मइया को सूर्य देव की बहन कहा गया है। हिंदू धर्म में उन्हें संतान की रक्षा और घर में सुख देने वाली देवी माना जाता है। व्रती जब व्रत रखती हैं, तो वे केवल अपने लिए नहीं, पूरे परिवार और समाज की भलाई के लिए करती हैं। छठ पूजा का यही विस्तार इसे सबसे पवित्र बना देता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी खास
अगर आप आस्था को विज्ञान से जोड़ना चाहें तो छठ पूजा का समय उसकी मिसाल है। इस दौरान सूर्य के अल्ट्रावायलेट किरणें शरीर पर सकारात्मक असर डालती हैं। नदी में खड़े होकर सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करना मन और तन दोनों को संतुलन देता है। शायद इसलिए इसे स्वास्थ्य का पर्व भी कहा गया है।
सामाजिक पहलू भी अनोखा
छठ की खूबसूरती यह है कि इसमें किसी ब्राह्मण या विशेष अनुष्ठान की जरूरत नहीं। हर कोई इसे कर सकता है। जाति, वर्ग या धन – किसी का फर्क नहीं दिखता। सब लोग एक घाट पर खड़े होते हैं, एक ही सूरज को प्रणाम करते हैं। यही असली जादू है छठ पूजा का। यह समाज को जोड़ती है, अलग नहीं करती।
तैयारी में झलकता है अपनापन
बिहार, झारखंड और यूपी के घरों में छठ की तैयारियाँ दिनों पहले शुरू हो जाती हैं। मिट्टी के दीये, बांस की टोकरी, केले के पत्ते और ठेकुआ की खुशबू हवा में फैल जाती है। और फिर वो घड़ी आती है जब घाट पर लोग एक-दूसरे से बिना किसी परिचय के मुस्कुराकर मिलते हैं। यही तो है छठ पूजा की असली भावना – अपनापन और शांति।
क्यों मनाई जाती है यह पूजा
लोग सूरज को जीवन का आधार मानते हैं। और छठ पूजा इसी कृतज्ञता को दर्शाने का सबसे अनोखा तरीका है। यह बताती है कि रोशनी सिर्फ आसमान से नहीं आती, भीतर से भी आती है। यह एक धन्यवाद है उस प्रकृति के नाम, जो हमें जीवन देती है।












