करवा चौथ 2025: मथुरा के रामनगला गांव में करवा चौथ न मनाने का सच
देश के कोने-कोने में करवा चौथ का बड़ा धूमधाम से मनाया जा रहा है। सब महिलाएं अपने पति के लिए व्रत रखती हैं। लेकिन, मथुरा के रामनगला गांव की सुहागिनों की बात कुछ अलग है। यहां की महिलाएं करीब 200 सालों से करवा चौथ का व्रत खत्म कर चुकी हैं। अजीब सा है, है ना? पीछे एक पुरानी कहानी छुपी है।
सती के श्राप ने बदली महिलाओं की जिंदगी
कुछ जमाने पहले की बात है। एक नवविधवा महिला से कुछ भयंकर हुआ। उसका पति मार दिया गया। वो दुल्हन बहुत दुखी हुई और उसने श्राप दिया। कुछ इस तरह का कि इस मोहल्ले की कोई भी सुहागन करवा चौथ का व्रत न रखे। सोचा भी नहीं होगा किसी की कहानी इतनी गहरी हो सकती है। यह श्राप आज तक लोगों के दिलों में बसा हुआ है।
कैसे बढ़ा भय और विधवाओं का अंबार
श्राप के बाद गांव में अजीब तरह की घटनाएं होने लगीं। कई युवक अचानक मर गए। फिर महिलाओं का परिवार टूटने लगा। विधवाओं की संख्या भी बहुत बढ़ गई। लोगों के लिए ये समय बहुत डरावना था। डर ऐसा कि उन्होंने इस परंपरा को मानना शुरू कर दिया। डर तो मन में बैठ ही जाता है, छोड़ता नहीं।
करवा चौथ का व्रत क्यों छोड़ा गया, इसका सच
सती माता का मंदिर बनवाने के बाद थोड़ा चैन मिला। लेकिन उस दिन से अब तक यह परंपरा खत्म हो गई। यहां की महिलाएं न तो सजती हैं, न व्रत रखती हैं। चंद्रमा की पूजा भी नहीं करतीं। इस परंपरा को तोड़ना शायद यहां की पहली गलती होती। इसलिए सब पीढ़ियों से इसे बदलने से डरते आ रहे हैं। ऐसा माहौल है।
सामाजिक असर, जो गांव की रीत बनी
इस श्राप की वजह से दूसरे कस्बों का पानी पीना भी यहां के लोग पसंद नहीं करते। त्योहारों पर यहां की महिलाओं का शिरकत न करना गांव की खास बात बन गई है। अगर कोई नई दुल्हन आती है, तो वह भी इसे तोड़ने की हिमाकत नहीं करती। ये कहानी सुनकर सोचने पर मजबूर कर देती है कि परंपरा के नाम पर कितनी मजबूरी छुपी हो सकती है।
देशभर में जो उत्सव है, उसका मतलब
दूसरे जगहों पर करवा चौथ का मतलब होता है प्रेम और समर्पण। पति के लिए प्यार दिखाने का दिन है। मगर मथुरा के इस गांव की कहानी हमें उनका दर्द बताती है। यहां की महिलाएं करवा चौथ का उल्लास नहीं मना पातीं। एक संगीन घटना ने सब कुछ बदल दिया। ये सच बहुत कुछ कह जाता है।
परंपरा और इतिहास की दिलचस्प सीख
ये कहानी सिर्फ गांव की नहीं, हमारी सांस्कृतिक जड़ों की भी है। जब एक घटना पूरी परंपरा को बदल देती है, तो सोचनी चाहिए कि इंसान और उनकी भावनाएं कितनी ताकतवर होती हैं। साथ ही ये दिखाता है कि समय के साथ परंपराएं कैसे बदली जाती हैं। आखिरकार, इंसानी जीवन में भावनाओं से बड़ा नियम नहीं है।