महाराष्ट्र के बीड ज़िले में मंगलवार दोपहर ऐसा हादसा हुआ जिसने पूरे मोहल्ले को सन्न कर दिया। महज़ 7 महीने की बच्ची ने खेल-खेल में चॉकलेट का छोटा सा टुकड़ा खा लिया, लेकिन वही टुकड़ा उसके गले में अटक गया और कुछ ही मिनटों में उसकी साँसें थम गईं। घरवालों ने आनन-फानन में अस्पताल पहुँचाया, मगर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। घटना ने यह सवाल फिर खड़ा कर दिया है कि हम शिशुओं को कैसे और क्या खिलाएँ, ताकि मिठास चॉकलेट बनी जानलेवा न हो जाए।
घटना का पूरा सिलसिला
दोपहर करीब साढ़े तीन बजे बच्ची अपनी माँ के साथ आँगन में खेल रही थी। इसी दौरान पड़ोस की एक किशोरी ने उसे बाज़ार से लाकर छोटी सी डेरी मिल्क थमा दी। माँ कपड़े समेटने में लगी थी, आँखें पलटीं तो देखा कि बच्ची ने रैपर फाड़ कर आधा इंच का टुकड़ा मुँह में डाल लिया है। माँ ने तुरंत निकालने की कोशिश की, लेकिन टुकड़ा गले के पिछले हिस्से में फँस गया। बच्ची का चेहरा नीला पड़ने लगा और वह छटपटाने लगी। पड़ोसी मोटरबाइक पर लेकर सरकारी अस्पताल भागे, पर रास्ते में ही दिल की धड़कनें कमज़ोर पड़ गईं। इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टरों ने सुक्शन पाइप से टुकड़ा निकालने की कोशिश की, पर तब तक ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से गिर चुका था।
परिवार का दर्द और पड़ोसियों की दास्तां
बच्ची के पिता, जो कि बीड-परी के पास एक छोटी टायर-पंचर की दुकान चलाते हैं, बेसुध होकर ज़मीन पर बैठ गए। माँ ने बेटी की गुलाबी ड्रेस अपने सीने से लगाई और घंटों रोती रही। पड़ोस की वही किशोरी, जिसने चॉकलेट दी थी, सदमे में है। वह बार-बार यही कहती रही, “मैंने तो बस प्यार से दिया था, ऐसा कभी सोचा नहीं था।” इलाके के बुज़ुर्ग रमेश काका बताते हैं कि गाँव में पहली बार किसी ने मिठाई से जान गंवाई है, इसलिए सबको यक़ीन करना मुश्किल हो रहा है।
डॉक्टरों की चेतावनी: किस उम्र में क्या न दें
बी.जे. मेडिकल कॉलेज, पुणे के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय पाटिल के मुताबिक छह महीने से दो साल की उम्र तक ठोस या चिपचिपी चीज़ें सीधे मुँह में देना बेहद ख़तरनाक है। इस उम्र के शिशु चबाने की काबिलियत ठीक से नहीं सीख पाते, इसलिए छोटा सा कण भी गले की वायुनली को जाम कर सकता है। डॉक्टर कहते हैं कि अगर बच्चे का चेहरा अचानक लाल या नीला पड़ने लगे, खाँसी के बाद भी साँस न निकले तो तुरंत ‘हीमलिच मैन्युवर’ अपनाएँ या बिना देर किए अस्पताल जाएँ।
बीड के पुराने मामले भी डराते हैं
यह कोई पहला हादसा नहीं है। पिछले तीन साल में बीड ज़िले के ग्रामीण इलाकों से ऐसी पाँच घटनाएँ दर्ज हुई हैं, जिनमें मूँगफली, भेल, नट, यहाँ तक कि खिलौने का पार्ट भी फँसने से बच्चों ने दम तोड़ा। हालाँकि हेल्थ विभाग जागरूकता शिविर चलाता है, पर छोटे गाँवों तक सही जानकारी कम ही पहुँच पाती है। इस बार मामला चॉकलेट का होने से शहर के स्कूलों और आँगनवाड़ी केन्द्रों में भी हलचल मच गई है।
सावधान रहने के आसान कदम
विशेषज्ञों का सुझाव है कि छह महीने से दो साल के बीच बच्चों को सिल्क-जैसे मुलायम दूध-आधारित प्यूरी या थोड़ा-बहुत दलिया ही दें। अगर कोई बड़ा बच्चा मिठाई खिला रहा हो तो उसे रोका जाए। घर में चॉकलेट रखें तो ऊँची अलमारियों में बंद डिब्बों में रखें। खिलाने से पहले हमेशा छोटे-छोटे टुकड़े करें और बच्चे के मुँह में डालने के बाद भी कुछ मिनट तक नज़र रखें। याद रखें, हादसा अक्सर पलक झपकते ही होता है।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी
बीड जिला परिषद ने तत्काल प्रभाव से आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वे घर-घर जाकर ‘खाद्य सुरक्षा कार्ड’ बाँटें, जिसमें साफ़ लिखा हो कि किस उम्र के बच्चों को क्या खिलाना सुरक्षित है। स्थानीय स्वयंसेवी संगठन “आरोह” ने गुरुवार से नुक्कड़ नाटक की श्रृंखला शुरू की है, ताकि कम पढ़े-लिखे अभिभावकों को भी यह संदेश सरल भाषा में पहुँचे। स्कूलों में मॉर्निंग असेंबली के दौरान शिक्षकों को पाँच मिनट का ‘सुरक्षा संवाद’ करना होगा।