राजस्थान के अजमेर में MDSU यूनिवर्सिटी पर छात्रों का फूटा गुस्सा, बोले—“कॉपी जांची ही नहीं, फिर रिजल्ट कैसे निकला?” रिचेकिंग में नंबर ऐसे बढ़े जैसे किसी ने रीसेट बटन दबा दिया हो।
अगर आपको लगता है कि रिजल्ट आने के बाद बस मिठाई बांटने या रोने की बारी होती है, तो ज़रा ठहरिए। राजस्थान की महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी (MDSU) में तो रिजल्ट खुद एक थ्रिलर मूवी बन गया है। एमएससी मैथेमेटिक्स के छात्रों ने दावा किया है कि यूनिवर्सिटी ने कॉपियां जांचे बिना ही रिजल्ट निकाल दिया! और जब रिचेकिंग हुई, तो नंबर ऐसे उछले जैसे किसी ने क्रिकेट में सुपर ओवर खेल दिया हो।
कॉपियों की जांच में ‘क्लासिक लापरवाही’: जब लाल पेन तक ने नहीं छुआ पन्ने, और जीरो नंबर बन गए 50!
कहानी की शुरुआत दिसंबर 2024 की परीक्षा से होती है, जो किसी कारणवश 2025 में आयोजित हुई। रिजल्ट 14 सितंबर 2025 को आया और बस फिर क्या था—छात्रों की आंखें खुली की खुली रह गईं। कई बच्चों को जीरो या एक नंबर दिए गए, वो भी अमूर्त बीजगणित और टेंसर जैसे सब्जेक्ट्स में। अब भला मैथ्स में जीरो कौन लाता है जब पूरा साल इंटीग्रल्स और लिमिट्स में डूबे रहे हों?
छात्रों ने रिचेकिंग के लिए ₹300 प्रति विषय देकर कॉपियां फिर से जांच के लिए दीं। और वहां सामने आई सच्चाई किसी फिल्म के ट्विस्ट से कम नहीं थी। 90% कॉपियों में लाल पेन का एक निशान तक नहीं था। यानी साफ है—कॉपी जांचने वाला शायद बस चाय पीकर वापस चला गया!
“मुझे 24 से 56 मिल गए!” — जब रिचेकिंग ने कर दिया मैथ्स का ‘मैजिक शो’
एमएससी की छात्रा निकिता चौधरी ने बताया कि पहले उन्हें चार विषयों में फेल कर दिया गया था, लेकिन रिचेकिंग के बाद एक विषय में 24 की जगह 56 और दूसरे में 20 की जगह 54 नंबर मिले। वहीं निशा रावत का कहना है कि जहां उन्हें 70 नंबर की उम्मीद थी, वहां 22 मिले, और रिचेकिंग में “नो चेंज” दिखाया गया। अब ये “नो चेंज” वाला सिस्टम भी किसी मैजिक ट्रिक से कम नहीं!
नियमों के मुताबिक छात्र सिर्फ दो विषयों की रिचेकिंग करा सकते हैं, लेकिन मामला इतना बड़ा निकला कि बाकी सब्जेक्ट्स पर भी शक की सुई घूमने लगी। छात्रों का कहना है कि अगर दो कॉपियां ही ऐसी हैं, तो बाकी में क्या गारंटी?
छात्र बोले: “हमारा भविष्य खिलौना नहीं है”, प्रशासन पर गंभीर आरोप और गुस्से में उबलते कैंपस का माहौल
छात्रसंघ अध्यक्ष महिपाल गोदारा ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर कड़े आरोप लगाए। उनका कहना है कि कुलपति, परीक्षा नियंत्रक और कोऑर्डिनेटर सब इस लापरवाही के जिम्मेदार हैं। जब वे कुलपति से मिलने पहुंचे, तो सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया और फिर पूरे गेट पर ताला जड़ दिया—जैसे यूनिवर्सिटी नहीं, जेल का गेट हो!
महिपाल की मांग है कि कॉपियों की जांच प्रक्रिया की पारदर्शी जांच हो और इसके लिए राज्यपाल के नेतृत्व में कमेटी बनाई जाए। उनका कहना है कि “जब तक सच्चाई सामने नहीं आती, तब तक हम चुप नहीं बैठेंगे।” और सच कहें तो इस बार छात्रों की आवाज़ सोशल मीडिया पर भी गूंज रही है।
“अगर हमारी बात नहीं सुनी गई तो सड़कों पर उतरेंगे!” — छात्रों की चेतावनी ने बढ़ाई यूनिवर्सिटी की मुश्किलें
छात्रों का कहना है कि रिजल्ट में हुई ये गड़बड़ी उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है। कई बच्चे पीएचडी या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में हैं, और ऐसे में झूठे रिजल्ट का असर सीधा उनके करियर पर पड़ रहा है। अब वे आंदोलन की चेतावनी दे चुके हैं—“या तो पारदर्शिता लाओ, वरना कैंपस का गेट खुलेगा, और हम अंदर आएंगे!”
अब सवाल यही है कि कॉपी जांच में लापरवाही थी या कोई बड़ा घोटाला? छात्रों की लड़ाई अब सम्मान और सच्चाई की हो चुकी है, और राजस्थान का यह मामला देशभर की यूनिवर्सिटियों के लिए एक सबक बन सकता है।
देखा जाए तो यह कहानी सिर्फ नंबरों की नहीं है, बल्कि उस भरोसे की है जो हर छात्र अपने संस्थान पर करता है। जब कोई मेहनत से पढ़े और सिस्टम ही गलत खेल जाए, तो गुस्सा आना तो लाजमी है। अब देखना ये है कि MDSU इस “रिजल्ट स्कैम” को किस तरह संभालती है—क्या सच्चाई सामने आएगी या फिर ये मामला भी “नो चेंज” की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
Bottom line: MDSU में रिजल्ट का खेल चल रहा है, और इस बार कैलकुलेटर भी कह रहा है—“भाई, ये मैथ्स नहीं, मिस्ट्री है!”