अफगानिस्तान के सामने कमजोर पड़ा पाकिस्तान, शहबाज शरीफ ने कतर और सऊदी अरब से मांगी मदद

सीमा पर बढ़े तनाव के बीच शहबाज शरीफ ने कतर और सऊदी अरब से मांगी मदद। पाकिस्तान की सेना कमजोर पड़ी और अफगानिस्तान का पलड़ा भारी दिख रहा है। आर्थिक संकट, गोलाबारी और बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता के बीच शहबाज शरीफ ने कतर और सऊदी अरब से मांगी मदद, ताकि देश की बिगड़ती हालत संभाली जा सके।

अफगानिस्तान के सामने कमजोर पड़ा पाकिस्तान, शहबाज शरीफ ने कतर और सऊदी अरब से मांगी मदद

अफगानिस्तान के सामने कमजोर पड़ा पाकिस्तान, शहबाज शरीफ ने मांगी मदद कतर और सऊदी अरब से

 

रात का वक्त था। सीमा पार गोलियों की आवाजें गूंज रही थीं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हालात फिर बिगड़ गए। इस बार मामला अलग था। पाकिस्तान के सैनिकों की थकान साफ दिख रही थी। और अफगानिस्तान के सैनिक? उनके हौसले ऊँचे थे। ऐसा लगा मानो हालात एक नई कहानी लिख रहे हों — जहां मजबूत अफगानिस्तान के सामने पाकिस्तान पूरी तरह बेदम पड़ चुका है।

 

सीमा पर बढ़ा तनाव और डर

तुर्रा-सी हवा चल रही थी। फायरिंग की आवाज़ों के बीच चीखें गूंज रहीं थीं। अफगान पोस्ट से हुए हमले ने पाकिस्तान की चौकियों को हिला डाला। पाक मीडिया चुप था, जबकि अफगान चैनलों पर यह खबर हेडलाइन बन गई। कुछ गांवों से लोग सामान समेट कर निकल गए। and हां, ये डर असली था।

 

शहबाज शरीफ की लाचारी

इस बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का चेहरा भी थका हुआ दिखा। उन्होंने कहा, “हम जल्द स्थिति सुधार लेंगे।” मगर सबको पता था, हालात उनके हाथ से निकल चुके हैं। अफगानिस्तान के सामने पाकिस्तानी सेना बेदम दिख रही थी। अंत में शरीफ ने फोन उठाया — और मदद मांगी। कतर से भी, सऊदी अरब से भी। मदद में उन्होंने क्या मांगा, यह अब भी राज है। पर बात खुल चुकी है।

 

अफगानिस्तान की बदलती चाल

तालिबान के शासन में अफगानिस्तान अब पहले जैसा नहीं रहा। पहले जो देश दूसरों की बात मानता था, अब वही अपनी शर्तों पर खेल रहा है। विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी जब भारत के दौरे पर थे, उसी वक्त सीमा पर धूल उड़ रही थी। शायद इत्तेफाक नहीं था। मुत्तकी ने कहा था, “हम अपनी सरज़मीन की इज़्ज़त करना जानते हैं।” ये अल्फ़ाज़ पाकिस्तान के लिए एक इशारा थे।

 

पाकिस्तानी सेना की कमजोरी उजागर

वो सेना, जो कभी दक्षिण एशिया की ताकत मानी जाती थी, आज सांसें गिन रही है। आर्थिक संकट गहराया, हथियारों की कमी बढ़ी। सिपाही निराश हैं। पिछले साल जिनका मनोबल आसमान छू रहा था, अब वही कह रहे हैं — "अब बहुत मुश्किल है, साहब।"

 

सऊदी और कतर से उम्मीदें

शहबाज शरीफ ने सऊदी अरब और कतर को जो संदेश भेजा है, उसमें सिर्फ सैन्य मदद नहीं, बल्कि आर्थिक सहारा भी मांगा गया है। सऊदी अरब ने जवाब नहीं दिया तो माहौल और उदास हो गया। कतर ने कहा कि वो “स्थिति पर नज़र” रख रहा है। लेकिन असल में सब जानते हैं कि इस बार पाकिस्तान को अपने ही दम पर खड़ा होना होगा।

 

भारत के दौरे से अफगानिस्तान मजबूत दिखा

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी का भारत दौरा पाकिस्तान के लिए दर्दनाक इशारा था। भारत ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। वहीं पाकिस्तान खुद अपने पुराने दोस्तों से मदद मांगता दिखा। विश्लेषकों का कहना है — यही फर्क है पुरानी अफगान नीति और अब की हकीकत में।

 

जनता का बढ़ता गुस्सा

इस पूरे तनाव का असर पाकिस्तान के अंदर भी दिखने लगा है। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और पेशावर के इलाकों में लोग अब बोल रहे हैं। “हमारे अपने शहर सुरक्षित नहीं रहे,” एक बुजुर्ग ने कैमरे पर कहा। बच्चे स्कूल नहीं जा रहे, दुकानों पर सन्नाटा है। माहौल डर और मायूसी से भरा है।

 

सरकार पर बढ़ा दबाव

विपक्ष ने शरीफ सरकार को घेरा। कहा, “जब देश जल रहा था, पीएम को भाषण देने की पड़ी थी।” सोशल मीडिया पर एक शब्द ट्रेंड कर रहा है — “कमजोर पाकिस्तान।” कुछ लोग कह रहे हैं कि अब सेना को नहीं, जनता को आगे आना होगा। पर सवाल ये है, जनता भी कब तक सहती रहेगी?

 

पाकिस्तान के लिए कठिन समय

अफगानिस्तान की सीमा पर जो आग जल रही है, उसका धुआं अब पूरे देश में फैल चुका है। पाकिस्तान की एक पुरानी पहरेदारी ढहती दिख रही है। अफगान सैनिक अब वहीं खड़े हैं जहां कभी पाकिस्तानी झंडा लहराता था। हालात बदले हैं और इस बार उनका पलड़ा भारी है। शहबाज शरीफ की बातें सुनकर अब किसी में भरोसा नहीं बचा। सबको पता है — पाकिस्तान मुश्किल में है।

 

आगे क्या?

विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर अब हालात नहीं संभाले गए तो यह झड़प बड़ा युद्ध बन सकती है। शायद पाकिस्तान एक और मोर्चा झेल नहीं पाएगा। अफगानिस्तान ने इशारा कर दिया है, अब खेल उनके हाथ में है। और पाकिस्तान? वो फिर से इंतजार में है — किसी के मदद करने के। बस फर्क इतना है, इस बार कोई जल्दी नहीं करेगा।