पहली बार कर रहे हैं छठ पूजा? जानिए पूरे नियम, विधि और आस्था के चार दिनों की पूजा का महत्व

अगर आप पहली बार कर रहे हैं छठ पूजा, तो यह आस्था और संयम का पहला अनुभव होगा। जानिए नहाय-खाय से उषा अर्घ्य तक के सारे नियम और विधियाँ। पहली बार कर रहे हैं लोग अक्सर छोटी बातों को अनदेखा कर देते हैं, इसलिए यह लेख सरल तरीके से बताता है कि व्रत कैसे किया जाता है और इसका गहरा अर्थ क्या है।

पहली बार कर रहे हैं छठ पूजा? जानिए पूरे नियम, विधि और आस्था के चार दिनों की पूजा का महत्व

पहली बार कर रहे हैं छठ पूजा? नियम, विधि और आस्था की कहानी ऐसे समझिए

 

सुबह की हल्की ठंड, हवा में गुड़ और मिट्टी की महक। यही वो संकेत है कि छठ पूजा शुरू होने वाली है। बिहार और उत्तर प्रदेश में तो लोग हफ्तों पहले से तैयारी में जुट जाते हैं। लेकिन बहुत लोग ऐसे भी हैं जो पहली बार छठ का व्रत रखने जा रहे हैं। उनके मन में कई सवाल हैं – कैसे करें, क्या करें, और क्या न करें। आइए इन्हीं बातों को थोड़ा आसान शब्दों में समझते हैं।

 

छठ पूजा का असली मतलब क्या है

छठ पूजा सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि आत्मसंयम की एक यात्रा है। यह चार दिन चलता है। हर दिन कुछ सिखा जाता है – शुद्धता, धन्यवाद, धैर्य और कृतज्ञता। यह पूजा सूर्य देव और छठ मइया के प्रति आभार का प्रतीक है। लोग मानते हैं कि इसके नियमों का पालन करने से सुख-शांति और संतान सुख प्राप्त होता है।

 

नहाय-खाय – पहला कदम सबसे पवित्र

छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन लोग नदी में स्नान करते हैं। घर की सफाई होती है, रसोई को पवित्र बनाया जाता है। खाना केवल एक बार बनता है – सादा चावल, लौकी और चना दाल। इतना ही। लेकिन उसमें जितना पवित्र भाव है, उतना किसी बड़े भोज में नहीं होता। कहते हैं, “पहला दिन शुद्ध हुआ तो बाकी सारे दिन खुद-ब-खुद सफल हो जाएंगे।”

 

खरना – तप का असली मतलब

खरना वाला दिन हर व्रती के लिए यादगार होता है। पूरे दिन बिना भोजन और पानी के उपवास, बस मन में एक ही संकल्प – शाम को सूर्य अस्त होते ही भगवान को अर्पण करना है। मिट्टी के चूल्हे पर खीर बनती है – दूध, गुड़, चावल और गन्ने के रस से। उस खुशबू से पूरा घर भक्ति में डूब जाता है। छठ पूजा की यही ख़ासियत है – कम चीज़ें, पर अनंत भावना।

 

संध्या अर्घ्य – जब सूरज को प्रणाम किया जाता है

शाम ढलते ही लोग घाटों की ओर चल देते हैं। घाटों पर सैकड़ों दीए, ढोल की धुन और पारंपरिक गीतों की आवाज़। व्रती जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। उस पल की शांति शब्दों में नहीं कही जा सकती। छठ पूजा वही क्षण है जब इंसान अपने भीतर झांकता है – और कहता है, “धन्यवाद प्रभु, जो कुछ दिया।”

 

उषा अर्घ्य – सूरज के साथ नई शुरुआत

सबसे खूबसूरत दृश्य उषा अर्घ्य का होता है। रातभर जागे लोग, भोर की ठंड में जल में खड़े। जैसे ही सूरज उगता है, सब की आँखों से हल्की चमक फैल जाती है। यह खत्म नहीं, बल्कि नई शुरुआत होती है। छठ पूजा बताती है कि हर अंधेरे के बाद रोशनी आती है – बस विश्वास बनाए रखो।

 

पहली बार व्रत रख रहे हैं तो ये बातें याद रखें

अगर आप पहली बार छठ पूजा कर रहे हैं, तो जल्दबाज़ी से बचें। यह व्रत त्याग और शुद्धता का है, प्रदर्शन का नहीं। पूजा स्थल और रसोई को हमेशा साफ रखें। किसी से बहस या अपशब्द न बोलें। यह सब छोटी बातें लगती हैं, पर छठ की आत्मा इन्हीं में छिपी है।

 

छठ मइया कौन हैं – और क्यों होती हैं खास

मान्यता है कि छठ मइया सूर्य देव की बहन हैं। वे संतान की रक्षा करती हैं और घर में समृद्धि लाती हैं। लोग कहते हैं, जब कोई छठ मइया से सच्चे मन से मांगता है, तो वो कभी खाली हाथ नहीं लौटाता। यही कारण है कि छठ पूजा सिर्फ व्रत नहीं, प्रेम और विश्वास का उत्सव है।

 

तैयारी की छोटी-छोटी बातें जो जरूरी हैं

छठ में इस्तेमाल होने वाली हर वस्तु का संबंध प्रकृति से होता है – बांस की टोकरी, मिट्टी का दीया, गन्ना, केले का पत्ता, ठेकुआ और नारियल। इन चीजों से घर की पूजा सजती है। लोगों का मानना है कि कृत्रिम वस्तुओं से पूजा की भावना पूर्ण नहीं होती। छठ पूजा में सादगी ही सबसे बड़ा सजावट है।

 

छठ पूजा पंजाब से पटना तक – अब सिर्फ सीमित नहीं

पहले यह पर्व बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित था, लेकिन अब हर जगह इसकी धूम है। दिल्ली, मुंबई से लेकर कनाडा तक लोग छठ पूजा मना रहे हैं। इससे साबित होता है कि आस्था सीमाओं में नहीं बंधती। जहां पानी और सूरज है, वहां छठ है।

 

आस्था के इस पर्व का असली सबक

यह व्रत बताता है कि ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता कठिन जरूर है, पर खूबसूरत भी। इसमें दिखावा नहीं, दिल से निकली भक्ति है। जब जल में खड़ी महिला अपने दोनों हाथ जोड़कर सूर्य से प्रार्थना करती है, तो लगता है जैसे दुनिया एक पल को शांत हो गई हो। यही तो है छठ पूजा का असली जादू।