भारत और वेस्टइंडीज के बीच हाल ही में खत्म हुई टेस्ट सीरीज ने क्रिकेट जगत में एक बार फिर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – क्या अब समय आ गया है कि टेस्ट क्रिकेट में ‘टू-टियर सिस्टम’ लागू किया जाए? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि कई सीरीज में देखने को मिल रहा है कि मजबूत टीमों और कमजोर टीमों के बीच मुकाबले बहुत असमान हो रहे हैं। दर्शकों की रुचि भी लगातार घटती जा रही है, खासकर तब जब मैच का नतीजा पहले से तय जैसा लगता है।
भारत-वेस्टइंडीज सीरीज के बाद शुरू हुई बहस
वेस्टइंडीज टीम कभी विश्व क्रिकेट की शान थी। उनके पास माइकल होल्डिंग, विव रिचर्ड्स जैसे दिग्गज खिलाड़ी हुआ करते थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। भारत के खिलाफ हालिया सीरीज में वेस्टइंडीज ना केवल कमजोर दिखी, बल्कि ऐसा लगा जैसे दोनों टीमों के बीच दर्जे का बहुत बड़ा फर्क है। यही वजह है कि क्रिकेट विशेषज्ञों का एक वर्ग मानता है कि टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए किसी नए ढांचे की जरूरत है।
क्या है टू-टियर सिस्टम का मतलब
टू-टियर सिस्टम का अर्थ है कि टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों को दो अलग-अलग स्तरों में बांटा जाए। पहले स्तर में वे टीमें हों जो लगातार अच्छा प्रदर्शन करती हैं — जैसे भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका। वहीं दूसरे स्तर में वो टीमें हों जिनका प्रदर्शन कमजोर रहा है, जैसे वेस्टइंडीज, जिम्बाब्वे या अफगानिस्तान। इस सिस्टम में कमजोर टीमों को प्रमोशन और मजबूत टीमों को डिमोशन का नियम भी रखा जा सकता है ताकि प्रतिस्पर्धा बनी रहे।
टू-टियर सिस्टम के समर्थन में तर्क
इस सिस्टम के समर्थन में कई पुराने खिलाड़ी और विश्लेषक हैं। उनका कहना है कि यह ढांचा टेस्ट क्रिकेट की गुणवत्ता को बनाए रखेगा। जब बराबरी की टीमों के बीच मुकाबले होंगे, तब खेल ज्यादा रोमांचक होगा और दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ेगी। साथ ही, इससे कमजोर टीमों को भी एक प्रेरणा मिलेगी कि वे बेहतर प्रदर्शन कर मुख्य स्तर में पहुंचे।
इसके अलावा, प्रसारण कंपनियां और स्पॉन्सर भी ऐसे मुकाबले चाहते हैं जो करीब-करीब हों। जब एकतरफा मैच होते हैं, तो व्यूअरशिप घटती है और खेल की लोकप्रियता पर असर पड़ता है। इसलिए, समर्थक मानते हैं कि टू-टियर सिस्टम क्रिकेट के कारोबारी पहलू को भी फायदा पहुंचा सकता है।
विरोध करने वालों के अपनी दलीलें
हालांकि टू-टियर सिस्टम के खिलाफ भी मजबूत आवाजें उठ रही हैं। इसका सबसे बड़ा तर्क यह है कि इससे कमजोर देशों का मनोबल टूटेगा। अगर वेस्टइंडीज या बांग्लादेश जैसी टीमें मुख्य स्तर के बाहर चली जाएंगी, तो उनके लिए टॉप टीमों के साथ खेलने का मौका कम हो जाएगा। यह बात वहां के क्रिकेट ढांचे को नुकसान पहुंचा सकती है।
कई पूर्व खिलाड़ियों का मानना है कि टेस्ट क्रिकेट का असली मजा तभी है जब हर टीम के पास दुनिया की किसी भी टीम को हराने का मौका हो। अगर हम स्तरों में बंटवारा कर देंगे, तो खेल की वैश्विक भावना पर आंच आएगी।
आईसीसी की भूमिका और चुनौतियां
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के सामने यह सबसे बड़ा सवाल है कि खेल के इस सबसे पुराने फॉर्मेट को कैसे जीवित रखा जाए। पिछले कुछ सालों में वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप जैसी पहलें की गईं, लेकिन उनका असर सीमित रहा। टू-टियर सिस्टम लागू करने के लिए आईसीसी को सभी सदस्य देशों की सहमति चाहिए, जो फिलहाल देखना मुश्किल है क्योंकि हर देश की आर्थिक और क्रिकेटीय स्थिति अलग है।
आईसीसी की चुनौती यह भी है कि टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता कई देशों में तेजी से गिर रही है। ऐसे में अगर कमजोर टीमें और भी हाशिए पर चली गईं, तो खेल का दायरा और छोटा हो जाएगा। इसलिए फैसला सोच-समझकर लेना होगा।
टेस्ट क्रिकेट का भविष्य किस दिशा में?
मौजूदा हालात में यह कहना गलत नहीं होगा कि टेस्ट क्रिकेट एक मोड़ पर खड़ा है। टी20 और फ्रेंचाइज़ी लीग क्रिकेट ने दर्शकों की रुचि को तो खींच लिया, लेकिन खेल का असली रोमांच अभी भी पांच दिन के फॉर्मेट में छिपा है। यह क्रिकेट की परीक्षा भी है और उसका आधार भी।
अगर टू-टियर सिस्टम लागू किया जाता है, तो यह कुछ देशों के लिए नई शुरुआत हो सकती है। मगर इससे जुड़े खतरे भी नजरअंदाज नहीं किए जा सकते। अब सबकी निगाहें इस पर होंगी कि आईसीसी और बड़े क्रिकेट बोर्ड इस मुद्दे को किस तरह आगे बढ़ाते हैं।
बदलाव जरूरी है लेकिन सोचकर
भारत-वेस्टइंडीज जैसी सीरीज हमें यही सोचने पर मजबूर करती है कि क्या पुराने ढांचे में सुधार का वक्त आ गया है। टेस्ट क्रिकेट की गरिमा को बनाए रखने के लिए एक संतुलित रास्ता निकालना जरूरी है। टू-टियर सिस्टम एक विचार हो सकता है, लेकिन इसे लागू करने से पहले व्यापक चर्चा और प्रयोग की जरूरत है। आखिरकार, क्रिकेट सिर्फ कुछ देशों का नहीं बल्कि पूरी दुनिया का खेल है। इसे बांटने के बजाय मजबूत करने की जरूरत है।