वाराणसी में अचार की बाल्टियों में छिपी शराब पकड़ी गई — फर्जी आईडी और बिहार के पते से हुआ था बुकिंग का खेल
सुबह का वक्त था। कैंट स्टेशन पर हमेशा की तरह हलचल थी। ट्रेनों की सीटी, यात्रियों की भीड़ और पार्सल गोदाम की भागदौड़। लेकिन उस दिन कुछ अलग था। पैकिंग के बीच एक अजीब‑सी गंध थी, जिससे सारा मामला बदल गया। किसी को पता नहीं था कि अचार के डिब्बों में कहानी कुछ और छिपी है।
अचार के डिब्बों में निकली शराब की बोतलें
पार्सल विभाग के एक कर्मी को शक हुआ। उसने एक कनस्तर को हल्के से हिला कर देखा। आवाज आई – तरल जैसी। ढक्कन थोड़ा टेढ़ा था। उसने इशारा किया, और कुछ ही मिनटों में डिब्बे का सच खुल गया। अचार नहीं, शराब थी। महक इतनी तेज थी कि सबने एक साथ सांसें रोक लीं। कोई बोला – "हे भगवान! ये तो नई चाल है!"
बिहार के फर्जी पते से बुक हुए कनस्तर
जांच में सामने आया कि यह सारा खेल बिहार के फर्जी पते से किया गया था। नाम भी नकली, पहचान भी झूठी। 32 कनस्तर, सब अचार के नाम पर बुक हुए थे। वाराणसी कैंट स्टेशन से यह पार्सल पटना के लिए भेजा जाना था। शायद मंज़िल वही थी — शराबबंदी वाला इलाका, जहां तस्करों की कमाई छिपी रहती है।
सतर्क कर्मचारियों ने बिगाड़ा खेल
कर्मचारियों की सूझबूझ ने बड़ा झटका दे दिया। अगर वे ध्यान नहीं देते तो ये सारी खेप आराम से निकल जाती। पार्सल में जहाज की तरह बुकिंग होती है, हर डिब्बा दर्ज होता है। पर धोखा वहीं से शुरू हुआ जहाँ भरोसा था। कर्मचारियों ने फौरन जीआरपी को खबर की, और देखते ही देखते कैंट स्टेशन पर भीड़ जुट गई।
पुलिस पहुंची, हर डिब्बा खोला गया
जब पुलिस आई तो पूरी पार्सल लाइনে खामोशी थी। एक‑एक डिब्बा खोला गया। कहीं अचार था, मगर अधिकतर में शराब। छोटी बोतलों में भरी विदेशी शराब। सारे कनस्तर इस तरह सील थे जैसे किसी ने रिसर्च कर पैकिंग की हो। सबको लगा ये कोई साधारण मामला नहीं है।
फर्जी आईडी और असली गड़बड़ी
बुकिंग के लिए इस्तेमाल हुई आईडी की जांच की गई तो सब झूठ निकला। नाम था "रवि सिंह, पटना सिटी – बिहार," पर पता फर्जी पाया गया। अब पुलिस बुकिंग एजेंट्स और पार्सल कर्मियों की भूमिका जांच रही है। सवाल यह भी है कि क्या उन्हें पहले से पता था या यह सब किसी और की सेटिंग थी।
स्कैनिंग मशीन से लगी चूक
सबसे बड़ा झटका तब लगा जब पता चला कि स्कैनर मशीन उस वक्त ठीक से काम ही नहीं कर रही थी। यानी पूरा माल बिना अलार्म के निकल ही जाता। एक अधिकारी ने कहा, “शायद तस्करों को यह जानकारी पहले से थी।” अब मशीन की टेस्टिंग फिर से की जा रही है, और निगरानी बढ़ाई जा रही है।
सीसीटीवी फुटेज ने बताई कहानी
जांच के दौरान पुलिस ने सीसीटीवी खोला। दो संदिग्ध दिखे — एक बोरा उठाए हुए, दूसरा फोन पर बात करते हुए। दोनों जल्दी में थे, जैसे डर हो कि पकड़े गए तो गया काम। चेहरों पर मास्क थे, लेकिन चाल‑ढाल ने शक पक्का कर दिया। अब उनकी पहचान खोजी जा रही है।
बिहार कनेक्शन ने बढ़ाई सरगर्मी
बहरहाल, पुलिस को यकीन है कि यह नेटवर्क सिर्फ वाराणसी तक सीमित नहीं। यह पूरा रूट बिहार तक जुड़ा है। और जहां शराब पर रोक हो, वहां मुनाफा दोगुना होता है। बिहार की शराबबंदी ने तस्करों के लिए नया बाजार खोल दिया, और यह उसी का ताजा उदाहरण है।
रेलवे प्रशासन हाई अलर्ट पर
रेलवे ने तुरंत सभी पार्सल बुकिंग्स पर रोक लगा दी है। अधिकारियों ने तय किया है कि अब हर बॉक्स को मैनुअल और स्कैनर दोनों से चेक किया जाएगा। अचार या घरेलू सामान के लेबल वाले पार्सल की जांच और कड़ी होगी। एक अधिकारी ने कहा, “इस बार गलती सिस्टम की थी, अगली बार नहीं होगी।”
पुलिस छापेमारी में जुटी
वाराणसी पुलिस ने कई जगह छापेमारी शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि इस नेटवर्क में बिहार, उत्तर प्रदेश और शायद झारखंड तक के लोग शामिल हैं। कुछ संदिग्धों के नाम पुलिस की लिस्ट में हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य सरगना का ठिकाना अब खोजा जा रहा है।
शराब तस्करी और सरकारी जिम्मेदारी
हर बड़ी घटना के बाद सवाल खड़े होते हैं। ये भी वैसा ही मामला है। निगरानी कैमरे हैं, स्कैनर हैं, फिर भी तस्कर पकड़ से बाहर रहते हैं। सवाल यह कि सिस्टम की कमजोरी उनके लिए हथियार क्यों बन रही है। इस पूरे मामले ने बिहार की शराबबंदी और रेल सुरक्षा दोनों पर सवाल खड़े किए हैं।
नतीजा — सतर्कता की जीत, तस्करों की हार
अगर पार्सल कर्मियों ने ध्यान नहीं दिया होता तो अचार के नाम पर शराब की यह खेप बिहार पहुँच जाती। लेकिन इस बार किस्मत और समझदारी दोनों ने काम किया। तस्करों ने चाल चली, पर सिस्टम ने मात दी। और यह वाकई राहत की बात है – कभी-कभी ईमानदारी जीतती है, चाहे छोटी ही क्यों न लगे।