उपराष्ट्रपति चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था बहुत ही मजबूत और विशिष्ट मानी जाती है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों से लेकर बड़े नगर निकाय चुनावों तक हर जगह आजकल **ईवीएम मशीन** का उपयोग होता है। ईवीएम से वोट डालने और गिनती करने का काम तेज़ और सुविधाजनक हो चुका है। लेकिन जब बात उपराष्ट्रपति चुनाव की आती है, तो यहां ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यह बात कई लोगों को चौंका देती है कि आखिर आज के डिजिटल और तकनीकी दौर में उपराष्ट्रपति जैसे बड़े पद के चुनाव में मशीनों का उपयोग क्यों नहीं हो रहा है। दरअसल, इसका कारण संविधान और चुनाव प्रक्रिया की गंभीरता से जुड़ा हुआ है। संसद के दोनों सदनों के सांसद इस चुनाव में वोट डालते हैं और यह वोट गुप्त मतपत्र यानी बैलेट पेपर से कराए जाते हैं। इस परंपरा को इसलिए बनाए रखा गया है ताकि किसी भी तरह का दबाव या बाहरी हस्तक्षेप चुनाव पर असर न डाल सके और हर सांसद पूरी स्वतंत्रता से अपने विवेक का इस्तेमाल कर सके। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह केवल तकनीक का सवाल नहीं बल्कि संवैधानिक और लोकतांत्रिक परंपरा से जुड़ा हुआ निर्णय है।
गुप्त मतदान की परंपरा को क्यों माना जाता है जरूरी
उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर सबसे अहम नियम यह है कि मतदान गुप्त बैलेट पेपर से ही होगा। यह नियम संविधान और संसद द्वारा तय किए गए चुनावी कानूनों पर आधारित है। गुप्त मतदान इसलिए जरूरी माना गया है क्योंकि सांसदों को अपने पार्टी व्हिप से हटकर भी वोट करने की स्वतंत्रता दी जाती है। इसका मतलब होता है कि अगर किसी सांसद को अपनी पार्टी की लाइन से हटकर किसी दूसरे उम्मीदवार को चुनना है, तो वह ऐसा बिना किसी डर या दबाव के कर सके। अगर यह प्रक्रिया ईवीएम में होती, तो आशंका रहती कि कहीं वोट पब्लिक तरीके से ट्रेस न हो जाए। गुप्त बैलेट सिस्टम सांसदों की निजता की सुरक्षा करता है और पूरे चुनाव को गरिमा के साथ संचालित करता है। यही कारण है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे ऊंचे संवैधानिक पदों के चुनाव में गुप्त मतदान की परंपरा को आज भी पूरी तरह कायम रखा गया है और इसे बदलने पर अब तक विचार भी नहीं किया गया है।
मतदान की प्रक्रिया कैसे होती है और कौन करता है निगरानी
जब उपराष्ट्रपति चुनाव की घोषणा होती है तो सबसे पहले उम्मीदवार अपने नामांकन दाखिल करते हैं। इसके बाद चुनाव आयोग द्वारा तय तारीख पर संसद भवन में मतदान की व्यवस्था की जाती है। मतदान में केवल सांसद हिस्सा लेते हैं और उन्हें बैलेट पेपर दिया जाता है। इस बैलेट पेपर पर उम्मीदवारों के नाम लिखे होते हैं और सांसद अपने पसंदीदा उम्मीदवार के सामने की जगह पर अंकित संख्या यानी प्राथमिकता चिन्ह लगाते हैं। यह चुनाव प्राथमिकता आधारित मतदान प्रणाली से चलता है, जिसमें केवल पहला चुनावी विकल्प ही नहीं बल्कि दूसरे और तीसरे विकल्प भी दर्ज किए जाते हैं। पूरी प्रक्रिया की देखरेख सुप्रीम कोर्ट के किसी वरिष्ठ अधिकारी या चुनाव आयोग की ओर से नियुक्त पर्यवेक्षक करते हैं ताकि निष्पक्षता बनी रहे। संसद में मतदान का माहौल बेहद गंभीर और सख्त निगरानी के बीच होता है और किसी तरह की मीडिया कवरेज या बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं होती। यह प्रक्रिया बताती है कि संवैधानिक पदों के चुनाव को आम चुनावों से अलग क्यों रखा गया है।
वोटों की गिनती का तरीका और अंतिम नतीजे कैसे आते हैं
बैलेट पेपर से वोट डालने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सबसे अहम चरण आता है वोटों की गिनती का। उपराष्ट्रपति चुनाव में गिनती प्रक्रिया भी विशेष तरीके से होती है। गिनती में सबसे पहले पहले विकल्प यानी ‘पहली प्राथमिकता’ वाले वोटों को देखा जाता है। यदि कोई उम्मीदवार इन वोटों की गिनती में आवश्यक बहुमत (कुल वैध वोटों का आधा से अधिक) हासिल कर लेता है, तो उसे तुरंत विजेता घोषित कर दिया जाता है। अगर कोई भी उम्मीदवार ऐसा नहीं कर पाता, तो फिर दूसरे विकल्प यानी ‘दूसरी प्राथमिकता’ के वोट जोड़े जाते हैं। यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक किसी उम्मीदवार को बहुमत न मिल जाए। इस पूरी प्रक्रिया को चुनाव आयोग के अधिकारी बेहद सावधानी से करते हैं। गिनती पूरी तरह मैनुअल होती है और हर वोट का हिसाब कई बार चेक करने के बाद ही फाइनल रिजल्ट घोषित किया जाता है। यही कारण है कि यहां मशीनों पर निर्भरता नहीं रखी जाती ताकि किसी गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे।
उपराष्ट्रपति चुनावों में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्य क्यों अहम हैं
भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि यहां संवैधानिक पदों के चुनाव को बेहद गरिमामय और पारदर्शी तरीके से अंजाम दिया जाता है। जब हम सामान्य चुनावों की बात करते हैं तो वहां तेज़ी और तकनीक का महत्व है, लेकिन उपराष्ट्रपति जैसे पद पर पारदर्शिता और गुप्त मतदान की परंपरा ज्यादा अहम हो जाती है। यहां जो भी सांसद वोट डालते हैं, उन पर यह भरोसा किया जाता है कि वे अपने विवेक और संविधान की भावना के अनुसार सही निर्णय करेंगे। उपराष्ट्रपति चुनाव nकेवल एक पद भरने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का उत्सव भी है। बैलेट पेपर से कराई जाने वाली वोटिंग सांसदों को अपनी स्वतंत्र राय प्रकट करने का मौका देती है और यह सुनिश्चित करती है कि चुनाव किसी दबाव, तकनीकी गड़बड़ी या विवाद से प्रभावित न हो। यही कारण है कि आज भी उपराष्ट्रपति चुनाव को एक अलग और सम्मानजनक चुनाव माना जाता है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के बजाय एक पारंपरिक लेकिन पूर्णतया निष्पक्ष प्रणाली अपनाई जाती है।