रिटायरमेंट के बाद धन निकालने का सही तरीका: समझें 4% Withdrawal Rule का महत्व
हर व्यक्ति के जीवन में रिटायरमेंट प्लानिंग एक अहम वित्तीय लक्ष्य होता है। जीवन के सुनहरे दौर यानी रिटायरमेंट के बाद आर्थिक स्वतंत्रता बनाए रखना हर निवेशक का सपना होता है। घर खरीदना, कार लेना या बच्चों की उच्च शिक्षा का खर्च पूरा करने के साथ-साथ रिटायरमेंट फंड तैयार करना भी बेहद जरूरी है। कुछ निवेशक FIRE (Financial Independence Retire Early) यानी जल्दी रिटायर होकर वित्तीय स्वतंत्रता पाने की कोशिश करते हैं, जबकि कुछ लोग धीरे-धीरे एक बड़ा रिटायरमेंट कॉर्पस (Retirement Corpus) तैयार करते हैं ताकि जीवन के बाद के वर्षों में स्थिर आय बनी रहे।
लेकिन केवल बड़ा कॉर्पस बना लेना ही पर्याप्त नहीं है — पोस्ट रिटायरमेंट डिसिप्लिन यानी धन निकासी की समझ भी उतनी ही जरूरी है। अगर आप बिना योजना के खर्च करते हैं, तो जल्दी ही आपकी बचत खत्म हो सकती है। इसी समस्या के समाधान के लिए वित्तीय विशेषज्ञों ने एक प्रसिद्ध सिद्धांत बताया है — 4% Withdrawal Rule।
क्या है 4% Withdrawal Rule?
4% नियम 1994 में वित्तीय योजनाकार विलियम बेन्जेन (William Bengen) द्वारा विकसित किया गया था। यह नियम बताता है कि एक निवेशक अपने रिटायरमेंट कॉर्पस का अधिकतम 4% हिस्सा हर साल निकाल सकता है, जिससे उसका फंड कम से कम 30 वर्षों तक टिक सके — भले ही बाजार में मंदी जैसी स्थिति क्यों न आए।
इस नियम के अनुसार, अगर निवेशक हर साल केवल 4% राशि निकालते हैं और शेष धन को इक्विटी (Equity) और डेट इंस्ट्रूमेंट्स (Debt Instruments) में निवेशित रखते हैं, तो वे लंबे समय तक आर्थिक स्थिरता बनाए रख सकते हैं।
कैसे लागू करें 4% Withdrawal Rule?
पहले वर्ष में, निवेशक अपने रिटायरमेंट फंड का 4% हिस्सा निकाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपका रिटायरमेंट कॉर्पस ₹3 करोड़ है, तो पहले साल में आप ₹12 लाख तक निकाल सकते हैं। यह आपकी वार्षिक खर्च की सीमा होगी।
दूसरे वर्ष से, आपको मुद्रास्फीति (Inflation) को ध्यान में रखते हुए अपने खर्च को थोड़ा बढ़ाना चाहिए ताकि जीवन स्तर समान बना रहे। उदाहरण के लिए, यदि मुद्रास्फीति दर 5% है, तो दूसरे साल आपकी निकासी राशि ₹12.60 लाख हो सकती है। इस तरह, आपकी खरीदने की क्षमता बनी रहती है और खर्च आपकी आय के साथ संतुलित रहता है।
इसके अलावा, निवेश पोर्टफोलियो को इक्विटी और डेट के संतुलन में रखना जरूरी है। आमतौर पर सलाह दी जाती है कि 60% राशि इक्विटी में और बाकी फिक्स्ड डिपॉजिट, बॉन्ड्स, और सेविंग अकाउंट में रखी जाए। इससे आपके रिटायरमेंट फंड को बाजार की अस्थिरता से सुरक्षा मिलती है, जबकि आपको स्थिर रिटर्न मिलता रहता है।
4% नियम की सीमाएं क्या हैं?
हालांकि 4% Withdrawal Rule एक व्यावहारिक और सुरक्षित दिशा-निर्देश है, लेकिन यह हर व्यक्ति के लिए पूरी तरह सही नहीं हो सकता। यह नियम मानता है कि आपकी सेवानिवृत्ति के बाद की अवधि लगभग 30 साल तक की होगी, जबकि आज के समय में कई लोग इससे अधिक जीवन जी रहे हैं।
इसके अलावा, मेडिकल इमरजेंसी, अचानक बढ़े खर्च, या आर्थिक मंदी जैसी परिस्थितियाँ इस नियम की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकती हैं। कई वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि 4% की जगह 3% से 3.5% निकासी दर अधिक सुरक्षित रहती है, विशेषकर उन निवेशकों के लिए जिनकी उम्र 60 से कम है या जो जल्दी रिटायर होना चाहते हैं।
क्यों जरूरी है Withdrawal Planning?
रिटायरमेंट के बाद आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं होता, इसलिए खर्चों की योजना बनाना बेहद जरूरी है। सही Withdrawal Strategy अपनाकर आप अपनी पूंजी को लंबे समय तक टिकाए रख सकते हैं। 4% Withdrawal Rule आपको एक अनुशासित तरीका देता है ताकि आप अपनी बचत को अनावश्यक रूप से खत्म न करें और जीवन के हर चरण में आर्थिक आत्मनिर्भर बने रहें।
निष्कर्ष
रिटायरमेंट प्लानिंग सिर्फ फंड इकट्ठा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप उस फंड का उपयोग कितनी समझदारी से करते हैं। 4% Withdrawal Rule एक ऐसा सिद्धांत है जो निवेशकों को खर्च की सीमा तय करने और अपने धन को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करता है। हालांकि, हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति और जीवनशैली अलग होती है, इसलिए इस नियम को लागू करने से पहले एक अनुभवी वित्तीय सलाहकार से परामर्श लेना समझदारी होगी।
अगर आप रिटायरमेंट के बाद वित्तीय स्वतंत्रता (Financial Freedom) बनाए रखना चाहते हैं, तो अपने निवेश पोर्टफोलियो को संतुलित रखें, 4% नियम का पालन करें और समय-समय पर अपनी योजना की समीक्षा करें। यही है समझदार और सुरक्षित रिटायरमेंट की कुंजी।