भारत के लोक पर्वों में Chhath Puja का एक अलग ही स्थान है। यह पर्व समर्पित है सूर्य देव और छठी मैया को, जो इस धरती पर जीवन और ऊर्जस्विता के प्रतीक हैं। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार भी पूरे भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और देश के कई हिस्सों में आज नहाय-खाय के साथ Chhath Puja की शुरुआत हो रही है।
नहाय-खाय के साथ श्रद्धा और पवित्रता की शुरुआत
Chhath Puja का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ कहलाता है। व्रती इस दिन प्रातःकाल नदी या तालाब में स्नान करके अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं। इसके बाद घर लौट कर शुद्ध देसी घी में बना सात्विक भोजन करते हैं। आमतौर पर इस दिन लौकी-भात और चने की दाल खाने की परंपरा होती है। इसे शरीर को शुद्ध करने और व्रत की तैयारी के रूप में माना जाता है।
नहाय-खाय के साथ ही घरों की साफ-सफाई भी पूरी कर ली जाती है। पूजा के लिए अलग स्थान को सजाया जाता है, जिसे ‘छठ घर’ कहा जाता है। इस दिन से घर का माहौल आध्यात्मिक हो जाता है और हर कोई छठ गीतों की धुन में मग्न दिखाई देता है।
दूसरे दिन खरना का महत्व और विधि
Chhath Puja का दूसरा दिन ‘खरना’ कहलाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम के समय सूर्यास्त के बाद खरना का प्रसाद बनाते हैं। यह प्रसाद मुख्य रूप से गुड़ से बनी खीर, रोटी और केले का होता है। व्रती पहले इस प्रसाद को सूर्य देव को अर्पित करते हैं और फिर स्वयं ग्रहण करते हैं।
कहा जाता है कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने से आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होते हैं। इस रात से व्रती अगले 36 घंटे का कठिन निर्जल व्रत आरंभ करते हैं, जिसे निभाना अत्यंत कठिन परंतु पवित्र माना गया है।
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य की भव्य परंपरा
तीसरे दिन छठ पर्व का सबसे सुंदर दृश्य देखने को मिलता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा इस दिन निभाई जाती है। व्रती अपने पूरे परिवार के साथ नदी, तालाब या पोखरे के किनारे जाते हैं और सूप में फल, ठेकुआ, नारियल और दऊरा में पूजन सामग्री लेकर सूर्य देव की आराधना करते हैं। जब डूबता हुआ सूर्य संध्या के रंगों में नहाया होता है, तब व्रती के चेहरे पर एक अलौकिक शांति झलकती है।
ऐसा माना जाता है कि संध्या अर्घ्य देने से सूर्य देव जीवन में सुख, संपन्नता और स्वास्थ्य का वरदान प्रदान करते हैं। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए महिलाएं लोकगीत गाती हैं और बच्चे उनके साथ दीप सजाते हैं।
अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा
Chhath Puja का चौथा और अंतिम दिन सबसे पवित्र माना गया है। इस दिन व्रती प्रातःकाल उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। कहा जाता है कि डूबते और उगते दोनों सूर्य को समान रूप से सम्मान देना जीवन के संतुलन और पूर्णता का प्रतीक है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती अपनी संकल्प पूजा को पूरा करते हैं और प्रसाद बांटते हैं।
इस अवसर पर घाटों पर अपार भीड़ उमड़ती है। हर कोई उस दृश्य का साक्षी बनता है जब अर्घ्य के जल में सूर्य की किरणें चमकती हैं। यह पल हर व्रती के लिए दिव्य और अविस्मरणीय होता है।
सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि
Chhath Puja की पूजा में मुख्य रूप से सूर्य देव, छठी मैया और प्रकृति के पांच तत्वों की आराधना की जाती है। व्रती सूप में फल, ठेकुआ, गन्ना, सिंघाड़ा, नारियल और केले रखकर अर्घ्य जल में अर्पित करते हैं। पूजन के दौरान व्रती अथवा पुरोहित सूर्य देव का स्मरण करके मंत्रोच्चारण करते हैं और परिवार की समृद्धि की कामना करते हैं।
छठी मैया को मातृत्व और शक्ति की देवी माना जाता है। यह विश्वास है कि उनके आशीर्वाद से संतान सुख, आरोग्य और सुख-शांति प्राप्त होती है। पूजा के प्रत्येक चरण में स्वच्छता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है क्योंकि यह पर्व भक्ति और अनुशासन दोनों की परीक्षा है।
परंपरा और संस्कृति का अनोखा संगम
Chhath Puja केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह भारतीय लोक संस्कृति का उत्सव है। इस पर्व में न लोकगीतों की मिठास है, नदियों के किनारे सजे दीपों की ज्योति है और निहित है वह आस्था जो पीढ़ियों से चली आ रही है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों में छठ पर्व के दौरान हर घर में भक्तिपूर्ण माहौल होता है और दूर-दराज रहने वाले लोग भी अपने गांव लौट आते हैं।
आज सोशल मीडिया और महानगरीय जीवन में भी इस पर्व की छाप दिखाई देती है। देश-विदेश में रहने वाले भारतीय इस पर्व को पूरे भाव से मनाते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति, परिवार और विश्वास तीनों का मेल ही जीवन का सच्चा आधार है।
Chhath Puja का संदेश और आस्था की ऊर्जा
Chhath Puja हमें यह याद दिलाता है कि सूर्य की गर्मी में भी जीवन की ठंडक है, और छठी मैया की ममता में हर दुख का समाधान। जब लाखों व्रती हाथ जोड़कर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो वह केवल पूजन नहीं, बल्कि संकल्प होता है—धैर्य, शुद्धता और निस्वार्थ भक्ति का।
इस छठ महापर्व पर जब सूर्य देव की किरणें जल में चमकती हैं, तब चारों ओर केवल एक ही भाव गूंजता है – समर्पण, आस्था और नवजीवन की ऊर्जा। यही इस पावन पर्व की सच्ची पहचान है।












