बारिश के लगातार कहर ने कई जिलों को घेरा, पर उम्मीद अब भी ज़िंदा चार दिन से रुक-रुक कर हो रही तेज़ बारिश ने पंजाब के लुधियाना, जालंधर और कपूरथला को पानी-पानी कर दिया है। खेत, सड़कें, स्कूल और छोटे बाज़ार सब जलमग्न हो गए। पुराने लोग बताते हैं कि ऐसी बाढ़ उन्होंने दशकों में नहीं देखी थी। बिजली के खंभे झुक गए, कच्चे घरों की दीवारें बह गईं और बच्चों की किताबें भीग कर बेकार हो गईं। इसी मुश्किल घड़ी में मदद के हाथ बढ़े हैं और लोगों में भरोसा भी जगा है कि संकट चाहे जितना गहरा हो, मिलकर सामना किया जा सकता है।
रिलायंस फाउंडेशन की त्वरित कार्रवाई ने बाढ़-पीड़ित गांवों में भरोसा लौटाया
बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, तभी Punjab Floods के बीच रिलायंस फाउंडेशन की टीम मौके पर पहुंची। सबसे पहले जालंधर के ताल्हन गांव में डॉक्टरों, स्वयंसेवियों और रसद से भरी वैनें उतारी गईं। टीम ने मोबाइल मेडिकल यूनिट लगाई, जहां बुज़ुर्गों और बच्चों का प्राथमिक उपचार किया गया। साथ ही, पानी साफ करने के लिये क्लोरीन टैबलेट और तुरंत खाने-पीने का सामान बांटा। राहत कार्य में स्पीड ही सबसे अहम थी, और यही वजह रही कि कई परिवारों को समय पर दवाइयां और दूध का पाउडर मिल सका।
अनंत अंबानी ने जलभराव वाले इलाकों का किया दौरा, कहा – “पंजाब की तकलीफ़ हमारी अपनी है”
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के निदेशक अनंत अंबानी खुद शनिवार सुबह जालंधर पहुँचे। कमर-भर पानी में उतर कर उन्होंने स्कूल के शरण-केंद्रों का निरीक्षण किया, जहां सैकड़ों लोग अस्थायी तौर पर रुके हुए हैं। पत्रकारों से बात करते हुए अनंत ने कहा, “हम किसी को भी अकेला महसूस नहीं होने देंगे। जितने संसाधन चाहिए, उतने भेजे जाएंगे। Punjab Floods से जूझ रहे हर नागरिक को राहत मिले, यही हमारी प्राथमिकता है।” उनके इस भरोसे ने स्थानीय प्रशासन को भी संबल दिया।
औद्योगिक संसाधन और मानवीय संवेदना का संगम, बना राहत कार्य का मजबूत आधार
रिलायंस ने अपने तेल शोधक केंद्रों से भारी-भरकम पंप मंगाकर निचली बस्ती के पानी को बाहर निकालना शुरू किया। मोबाइल नेटवर्क प्रभावित न हो, इसके लिये कंपनी की टेलिकॉम इकाई जियो ने फाइबर-लाइन की मरम्मत की और अस्थायी टावर खड़े किये। इस तरह, तकनीक और संवेदना दोनों ने मिलकर काम किया। गांव के सरपंच गुरप्रीत सिंह का कहना है कि अगर ये पंप और संचार साधन समय पर न आते, तो बचाव दल लोगों तक पहुँच ही नहीं पाते।
सरकारी एजेंसियों और निजी क्षेत्र की साझेदारी से बहाल होंगी टूटी सड़कें और खेतों की नहरें
राज्य सरकार ने जिन मुख्य सड़कों को ‘रेड जो़न’ घोषित किया था, वहां अब भारतीय सेना के इंजीनियर और रिलायंस की निर्माण टीम एक साथ काम कर रहे हैं। मलबा हटाकर नया मेटल डाला जा रहा है, ताकि एंबुलेंस और दूध टैंकर आसानी से गुजर सकें। सिंचाई विभाग के अनुसार, 40 से ज़्यादा नहरों के तट टूटे हैं। रिलायंस फ़ाउंडेशन ने इनको भरने के लिये 2000 से ज़्यादा सैंडबैग मुहैया कराए हैं। इससे आने वाले रबी सीज़न में किसानों को थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।
स्थानीय स्वयंसेवकों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चला राहत अभियान
कोई भी बाहरी मदद तब तक पूरी नहीं होती, जब तक स्थानीय लोग उसका हिस्सा न बनें। यही कारण है कि रिलायंस टीम ने गुरुद्वारों के लंगर सेवकों और कॉलेज के युवाओं को जोड़ कर सामुदायिक रसोई शुरू की। दिन में तीन बार गरम खाना परोसा जा रहा है। उधर, जियो के टावर से मिला वाई-फाई सिग्नल इस्तेमाल कर बच्चे अपनी स्कूल की ऑनलाइन कक्षाएँ फिर से करने लगे हैं। छोटे-छोटे ये कदम बताता है कि राहत सिर्फ पेट भरने तक सीमित नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की normalcy लौटाने का भी नाम है।
पीड़ित परिवारों की कहानियाँ: खोए दस्तावेज़, टूटी यादें, फिर भी अटूट साहस
कपूरथला के ढिल्लों खुर्द में रहने वाली 70 साल की गुरदयाल कौर अपना कच्चा घर बहते देख रोने लगीं। उनके पास शादी का एलबम और जमीन के काग़ज़ ही पूँजी थे, जो पानी में बह गए। वहीं दूसरी ओर, दस साल के लखविंदर ने अपनी किताबें सूखने के लिए धूप में फैला दीं और कहा, “मैं फिर से लिखूँगा।” ऐसी कहानियाँ बार-बार याद दिलाती हैं कि Punjab Floods ने बहुत कुछ छीना, पर हिम्मत नहीं तोड़ पाई।
लंबी दूरी का सफ़र: पुनर्वास, मानसिक स्वास्थ्य और जल-प्रबंधन की नई चुनौतियाँ
विशेषज्ञ मानते हैं कि बाढ़ खत्म होने के बाद असली काम शुरू होता है। जलजनित रोगों का खतरा, खेती की मिट्टी में जमा रसायन और बच्चों का मानसिक तनाव—ये सब अगले छह महीने तक चिंता का कारण रहेंगे। रिलायंस फाउंडेशन ने पहले ही मनोवैज्ञानिकों की एक टीम तैनात कर दी है, जो राज्य सरकार की हेल्पलाइन के साथ मिलकर काम करेगी। इसके साथ ही, ग्रामीण स्तर पर ग्लोबल पोजिशनिंग डिवाइस लगाकर नए जल-निकासी मार्गों का नक़्शा तैयार किया जा रहा है, ताकि भविष्य में ऐसी तबाही दोबारा न हो।
एकजुटता से मिलेगी जीत, फिर खिलेगा पंजाब
जब पानी उतर जाएगा और खेत फिर हरे दिखेंगे, तब भी यह दौर याद रहेगा—एक ऐसा वक़्त जब उद्योग, सरकार और आम लोग कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े हुए। अनंत अंबानी ने जाते-जाते कहा, “पंजाब ने हर मुश्किल घड़ी में देश को दहाई दी है, अब हमारी बारी है कि हम पंजाब का हाथ थामें।” यह भरोसा ही है जो राहत शिविरों में बैठे बच्चों को मुस्कुराने पर मजबूर कर रहा है। आने वाले महीनों में सड़कें दुरुस्त होंगी, स्कूल फिर भरेंगे और जिन खेतों में आज पानी भरा है, वहीं कल सरसों और गेंहू लहराएँगे। संकट बड़ा है, पर साहस उससे भी बड़ा।