नीतीश कुमार की राजनीति का नया पल: अरुण कुमार ने JDU में फिर से संभाला स्थान
नीतीश कुमार की राजनीति में ताजी हवा, पुराना दोस्त अरुण कुमार लौटे JDU में
अब ये कहानी है उन राजनेताओं की जो समय-समय पर अपनी छवि और रणनीति बदलते रहते हैं, और यह राजनीति का खेल है। जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार ने बड़ा कदम उठाया। एक बार फिर से अपने सियासी घर जेडीयू में लौट आए। मामला सिर्फ वापसी का नहीं था, बल्कि नीतीश के लिए यह एक बड़ी जीत भी है। क्योंकि अरुण कुमार के साथ उनके समर्थकों का भी झुंड है, जो अब जेडीयू को और मजबूत करेगा।
राजनीति के बीच मैदान में आया एक नया चेहरा, ऋतुराज घोसी की उम्मीदें
अरुण कुमार के बेटे ऋतुराज घोसी को लेकर खबरें ऐसी हैं कि वह भी विधानसभाक चुनावों में उतर सकते हैं। अब यह देखना मजेदार होगा कि युवा और पुरानी पीढ़ी कैसे मिलकर बिहार politics में नए संतुलन बनाते हैं। ये युवा चेहरे नीतीश के लिए एक और बढ़त साबित हो सकते हैं।
बीजेपी के बिहार बंद के बीच टला जेडीयू में अरुण कुमार का स्वागत
बात करें तो अरुण कुमार के स्वागत कार्यक्रम को पहले रोक दिया गया था। वजह थी बीजेपी का बिहार बंद। ऐसे हालात में यह सियासी वापसी और भी नाटकीय हो गई। लेकिन फिर, देश की राजनीति में ऐसे फैसले आते-जाते रहते हैं। अब सबकी निगाहें उस सियासी खेल पर हैं जहां नीतीश और अरुण कुमार की जोड़ी किस तरह से बिहार के चुनावी परिदृश्य को बदलती है।
भूमिहार वोट बैंक पर नीतीश का नया दांव
नीतीश कुमार जहानाबाद समेत पूरे बिहार में राजद के भूमिहार वोट बैंक को साधने के लिए हर संभव कोशिश में हैं। अरुण कुमार की वापसी इस दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। यह राजनीतिक महाशक्ति की ओर एक चाल है। अगर ये सफलता मिलती है तो बिहार में सियासी समीकरण बदल सकते हैं। जनता इस वक्त गहरी नजर से देख रही है क्या होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय, क्या नीतीश की यह चाल कामयाब होगी?
विश्लेषक कहते हैं कि जेपी नड्डा और नीतीश कुमार के लिए यह वापसी मौका है अपनी पकड़ मजबूत करने का। अरुण कुमार जैसा पुराना साथी उनके लिए प्लस पॉइंट बन सकता है। पर राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं। यह कहानी जल्द ही जवाब देगी कि गठबंधन की रणनीति कितनी सफल होती है।
नतीजा
तो इस कहानी में देखिए, जेडीयू में अरुण कुमार की वापसी ने बिहार की राजनीति को एक नया आयाम दिया। उसके साथ नीतीश कुमार की ताकत भी बढ़ी है। आने वाले विधानसभा चुनाव 2025 में इस बदलाव का असर साफ दिखेगा। सभी की उम्मीदें इस गठबंधन से जुड़ी हैं, जो फिर एक बार बिहार politics में ताज़गी ला सकता है।