बिहार चुनाव 2025 : जेडीयू ने बागियों पर सख्त कार्रवाई, पूर्व मंत्री और विधायक समेत 11 नेता पार्टी से निष्कासित

जेडीयू ने बागियों पर सख्त कार्रवाई करते हुए बिहार चुनाव 2025 से ठीक पहले बड़ा संदेश दिया है। पार्टी ने अपने अनुशासनहीन नेताओं पर शिकंजा कसते हुए पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक और सीनियर पदाधिकारियों समेत 11 को निष्कासित कर दिया। जेडीयू ने बागियों पर सख्त कार्रवाई और कहा कि पार्टी से बड़ा कोई नहीं। अब संगठन में अनुशासन से समझौता नहीं होगा।

बिहार चुनाव 2025 : जेडीयू ने बागियों पर सख्त कार्रवाई, पूर्व मंत्री और विधायक समेत 11 नेता पार्टी से निष्कासित

बिहार चुनाव 2025 जेडीयू का बागियों पर सख्त एक्शन, पूर्व मंत्री और विधायक समेत 11 नेताओं को पार्टी से निकाला

 

बिहार की राजनीति में शोर है। चुनाव सिर पर हैं, और ऐसे माहौल में जेडीयू का बागियों पर सख्त एक्शन किसी झटके जैसा आया। शुक्रवार शाम पार्टी के प्रदेश महासचिव चंदन कुमार सिंह की ओर से एक चिट्ठी जारी हुई। चिट्ठी में लिखा था—“ग्यारह नेताओं को तत्काल प्रभाव से निष्कासित किया जाता है।” बस, इतना भर। लेकिन यह एक लाइन चुनावी चर्चा के बीच सबसे बड़ी खबर बन गई।

 

जेडीयू के भीतर बढ़ती बेचैनी और अनुशासन का बिगड़ता स्वर

कहा जा रहा था कि जेडीयू के अंदर पिछले कुछ हफ्तों से सब ठीक नहीं चल रहा था। कोई नाराज़, कोई चुप, तो कोई बयान देकर सीमाएं लांघ रहा था। नीतीश कुमार शायद बहुत दिनों से देख रहे थे, पर अब मौन टूट गया। सभी 11 नेताओं पर ‘अनुशासनहीनता और संगठन विरोधी काम’ का आरोप लगा।

पत्र में साफ लिखा गया — “इन नेताओं ने पार्टी की विचारधारा और आचरण नियमों का उल्लंघन किया है।” यह कार्रवाई दर्शाती है कि जेडीयू अब किसी भी कीमत पर अपनी रेखा से बाहर जाने वालों को नहीं बख्शेगी।

 

पूर्व मंत्री और विधायक भी बाहर, पार्टी ने चौंकाने वाला कदम उठाया

इस लिस्ट में सबसे ऊपर कुछ ऐसे नाम हैं जो कभी नीतीश के भरोसेमंद माने जाते थे। अब पार्टी से बाहर हैं। उनमें से एक पूर्व मंत्री ने बताया, “हमें कोई कारण नहीं बताया गया, बस निष्कासन का पत्र मिला।” उनकी आवाज़ में नाराज़गी थी, पर हैरानी भी। कहा—“पार्टी अब अपने पुराने साथियों को पहचान नहीं पा रही।”

जेडीयू के प्रवक्ता ने जवाब में कहा, “देखिए, ये फैसला संगठन की एकरूपता के लिए है।” उन्होंने जोड़ा, “हम कमजोरियों को खत्म कर रहे हैं, गड़बड़ी फैलाने वालों को नहीं छोड़ेंगे।” संवाददाता सम्मेलन में यह बयान बार-बार दोहराया गया।

 

चंदन कुमार सिंह का पत्र बना चर्चा का केंद्र

पत्र छोटा था, लेकिन असर बड़ा। उसमें संगठन के अनुशासन और चरित्र की बात की गई। “जिन्होंने पार्टी के खिलाफ जाकर काम किया, वे अब बाहर हैं”—यही लहजा था। इस पत्र ने जेडीयू कैडर को भी झकझोर दिया, क्योंकि अब सबके लिए संदेश साफ था—“या तो साथ चलो, या बाहर निकलो।”

कार्रवाई की खबर जैसे ही मीडिया में आई, पार्टी दफ्तर में सन्नाटा छा गया। कोई कुछ बोल नहीं रहा था, बस फोन पर बातचीत जारी थी। नेताओं के चेहरे पर असमंजस साफ था।

 

अंदरूनी कलह या रणनीतिक सख्ती?

अब सवाल उठ रहा है कि यह कार्रवाई अचानक हुई या पहले से तय थी। सूत्र बताते हैं कि पिछले एक महीने से ये सब पक्का था। 11 में से ज़्यादातर नेता उच्च स्तर पर बैठकों के दौरान विरोधी लाइन पर बोले थे। कुछ खुले आम बयान दे रहे थे—“संगठन कमजोर हुआ है।”

शायद यही वह वक्त था जब नीतीश ने मन बना लिया। एक वरिष्ठ नेता का कहना है—“ये कदम जरूरी था, वरना अनुशासन सिर्फ किताबों में रह जाता।”

 

बागियों की प्रतिक्रिया – “हमें निशाना बनाया गया”

निष्कासित नेताओं की पहली प्रतिक्रिया आई। कई ने दावा किया कि उन्हें जानबूझकर हटाया गया है। एक पूर्व विधायक ने कहा—“हम पार्टी को मज़बूत करना चाहते थे, लेकिन नेतृत्व सवालों से डर गया।” सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रियाएं आईं—कुछ नेताओं ने तंज कसते हुए लिखा कि “पार्टी के भीतर चर्चा नहीं, आदेश चलता है।”

हालांकि, पार्टी सूत्रों का कहना है कि जिन नेताओं पर कार्रवाई हुई, वह सबके सामने थे—बोलने से, बयान देने से, आयोजन में हिस्सा लेने से। कोई छिपा नहीं था। इसलिए अब किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

 

चुनाव से पहले अनुशासन का संदेश, जेडीयू का साफ इरादा

यह बात तय है कि नीतीश कुमार की जेडीयू चाहती है कि चुनाव से पहले हर शाखा, हर कमेटी एकजुट दिखे। किसी तरह की दरार जनता को साफ नज़र आ सकती है, और विपक्ष उसे भुना सकता है। यही डर इस एक्सन के पीछे की मुख्य वजह बताई जा रही है।

एक नेता ने हंसते हुए कहा, “नीतीश जी को पार्टी में फौजी अनुशासन पसंद है, और इस बार उन्होंने वही दिखाया।” चुनावी मौसम में पार्टी का ठोस कदम अब विरोधी खेमे के लिए भी चेतावनी है।

 

राजनीतिक विश्लेषकों की राय – ये कार्रवाई दोधारी तलवार साबित हो सकती है

राजनीतिक विश्लेषक मनोज झा का कहना है—“इस फैसले से अनुशासन का संदेश तो गया है, लेकिन इसका खतरा भी है कि बागी नेता अब खुलकर विपक्षी मंच से खेल सकते हैं।” उनका कहना है कि “कभी-कभी अनुशासन का डंडा पार्टी की ऊर्जा को भी तोड़ देता है।”

वहीं जेडीयू खेमे का मानना है कि इस बार समय बदल गया है और जनता अनुशासन को पसंद करती है। “लोग ऐसे दलों पर भरोसा नहीं करते जो अंदर से बंटे हुए हों।”

 

नीतीश कुमार की चुप्पी भी बोलती रही

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस विषय पर कुछ नहीं कहा। लेकिन उनके चेहरे पर ठंडा आत्मविश्वास था। सूत्र बताते हैं कि उन्होंने बस इतना कहा—“संगठन चलाने के लिए कभी-कभी कठोर होना ही पड़ता है।” उनके शब्द कुछ नहीं, पर संदेश सब कुछ।

यह बयान नहीं था, लेकिन समझने वालों के लिए साफ संकेत था कि वे अब किसी राजनीतिक समझौते के मूड में नहीं हैं।