कांग्रेस डाल रही कुशवाहा पर डोरे अखिलेश सिंह का ऑफर, बिहार की राजनीति में नई हलचल
बिहार की हवा फिर बदली है। शाम जैसे‑जैसे गहराई, वैसे‑वैसे सियासत में नई चर्चा फैल गई। कांग्रेस अब खामोश नहीं है। उसने खुलकर कदम बढ़ाया और उपेंद्र कुशवाहा को सीधा ऑफर दे डाला। खबर इतनी अचानक आई कि पूरे राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई। अफवाहें पहले भी थीं, पर इस बार मामला कुछ पक्का‑सा लग रहा है।
अखिलेश का बयान जिसने सबका ध्यान खींचा
कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने मीडिया से कहा, “अगर उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़ते हैं, तो महागठबंधन में उनका स्वागत है।” उनका चेहरा पूरी आत्मविश्वास से भरा था। बोले, “उनके आने से ताकत बढ़ेगी, दिशा साफ होगी।” इतना सुनते ही कैमरे क्लिक करने लगे। कमरे का शोर बढ़ गया। किसी ने फुसफुसाकर कहा “अब खेल दिलचस्प होगा।”
महागठबंधन की मीटिंग और सीट बंटवारा कहानी
महागठबंधन के अंदर सीट बंटवारे को लेकर चर्चा पहले से चल रही थी। अखिलेश ने कहा – सब तय है, बस घोषणा बाकी। अंदर की खबर ये है कि कांग्रेस ने पहले ही रालोसम के कुछ पुराने इलाकों में तैयारी शुरू कर दी है। इसका मतलब साफ था — उम्मीद है कि उपेंद्र कुशवाहा के आने की संभावना पर सबने काम पहले ही शुरू कर दिया है।
कुशवाहा का चुप रहना और सोच में डूबना
राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा इस बार कुछ ज़्यादा ही चुप हैं। न ट्वीट, न बयान। बस अटकलें। राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि वो चीज़ों को ध्यान से देख रहे हैं। उनके करीबी नेताओं ने बताया कि कई हफ्तों से पार्टी कार्यकर्ता अंदर के माहौल से खुश नहीं हैं। शायद कुशवाहा अब राह बदलने की सोच में हैं। कौन जाने, राजनीति में इशारे कभी बेवजह नहीं होते।
कांग्रेस की मंशा क्या है
कांग्रेस जानती है कि बिहार में उसका जनाधार कमजोर पड़ा है। इसलिए उसे किसी ऐसे नेता की जरूरत है जो बड़ी जातीय पकड़ रखता हो। उपेंद्र कुशवाहा उस खाली जगह को भर सकते हैं। कांग्रेस के भीतर कहा जा रहा है कि पार्टी अब 2025 की लड़ाई पूरे दम से लड़ना चाहती है। और इसके लिए हर मजबूत चेहरा जरूरी है।
एनडीए के अंदर बढ़ी बेचैनी
एनडीए में ये खबर सुनते ही सन्नाटा। कोई खुलकर कुछ नहीं बोल रहा, पर भीतर घबराहट है। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि अगर कुशवाहा कांग्रेस के साथ जाते हैं, तो एनडीए को कई सीटों पर भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। खासकर वहां, जहां कुशवाहा समाज की पकड़ सबसे मजबूत है। एक बीजेपी विधायक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “सियासत में कोई हमेशा साथ नहीं रहता।”
कुशवाहा के फैसले पर टिकी निगाहें
अब सबकी निगाहें पटना और दिल्ली के बीच दौड़ रही हैं। ये सवाल हर जुबान पर है — कुशवाहा क्या करेंगे? क्या वो एनडीए छोड़कर महागठबंधन का हिस्सा बनेंगे? जानकार बताते हैं कि बातचीत का सिलसिला चुपचाप जारी है। बस सही वक्त का इंतज़ार है।
बिहार की राजनीति फिर मोड़ पर
इस वक्त बिहार की राजनीति वैसे भी करवट ले रही है। नीतीश कुमार के बयान, तेजस्वी के दौरे और अब कांग्रेस की पेशकश। इन सबके बीच एक नाम लगातार सुर्खियों में है – उपेंद्र कुशवाहा। सियासी मंच पर अब वही केंद्र में हैं। जैसे‑जैसे चुनाव पास आ रहे हैं, वैसे‑वैसे गठबंधन की चालें तेज हो रही हैं।
मतलब साफ है राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी दोनों वक्त की देन
आज जो साथ हैं, कल सामने होंगे। यही बिहार की राजनीति की खासियत है। कांग्रेस की यह चाल दिखाती है कि वो एक बार फिर सत्ता की दौड़ में वापसी के लिए तैयार हो रही है। अब फैसला कुशवाहा को लेना है। और शायद वो जानते हैं – यह मौका दोबारा नहीं आएगा।
नतीजा सब कुछ अब कुशवाहा के इशारे पर टिका
बिहार की सड़कों पर पोस्टर लगने लगे हैं। लोग पूछने लगे हैं, “अब कुशवाहा कहाँ जाएंगे?” एनडीए में बने रहना या कांग्रेस के साथ नया भविष्य चुनना, यह आने वाले हफ्तों में तय हो जाएगा। बस एक बात सबको समझ आ गई है – बिहार की राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं। और यही इस कहानी की सबसे दिलचस्प बात है।